श्री दत्तात्रेय के २४ गुरु और कथा...



प्राचीनकाल से ही सद्गुरु भगवान दत्तात्रेयने अनेक ऋषि-मुनियों तथा विभिन्न सम्प्रदायों के प्रवर्तक आचार्यो को सद्ज्ञान का उपदेश देकर कृतार्थ किया है। इन्होंने परशुरामजीको श्रीविद्या-मंत्र प्रदान किया था। त्रिपुरारहस्य में दत्त-भार्गव-संवाद के रूप में अध्यात्म के गूढ रहस्यों का उपदेश मिलता है। ऐसा भी कहा जाता है कि शिवपुत्रकार्तिकेय को दत्तात्रेयजीने अनेक विद्याएं प्रदान की थीं। भक्त प्रह्लाद को अनासक्ति-योग का उपदेश देकर उन्हें अच्छा राजा बनाने का श्रेय इनको ही जाता है। सांकृति-मुनिको अवधूत मार्ग इन्होंने ही दिखाया। कार्तवीर्यार्जुनको तन्त्रविद्याएवं नार्गार्जुनको रसायन विद्या इनकी कृपा से ही प्राप्त हुई थी। गुरु गोरखनाथ को आसन, प्राणायाम, मुद्रा और समाधि-चतुरंग योग का मार्ग भगवान दत्तात्रेयने ही बताया था। परम दयालु भक्तवत्सल भगवान दत्तात्रेयआज भी अपने शरणागत का मार्गदर्शन करते हैं और सारे संकट दूर करते हैं। मार्गशीर्ष-पूर्णिमा इनकी प्राकट्य तिथि होने से हमें अंधकार से प्रकाश में आने का सुअवसर प्रदान करती है।

तन्त्रशास्त्रके मूल ग्रन्थ रुद्रयामल के हिमवत् खण्ड में शिव-पार्वती के संवाद के माध्यम से श्रीदत्तात्रेयके वज्रकवचका वर्णन उपलब्ध होता है। इसका पाठ करने से असाध्य कार्य भी सिद्ध हो जाते हैं तथा सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं। इस कवच का अनुष्ठान कभी भी निष्फल नहीं होता। इस कवच से यह रहस्योद्घाटनभी होता है कि भगवान दत्तात्रेयस्मर्तृगामीहैं। यह अपने भक्त के स्मरण करने पर तत्काल उसकी सहायता करते हैं। ऐसी मान्यता है कि ये नित्य प्रात:काशी में गंगाजीमें स्नान करते हैं। इसी कारण काशी के मणिकर्णिकाघाट की दत्तपादुकाइनके भक्तों के लिये पूजनीय स्थान है। वे पूर्ण जीवन्मुक्त हैं। इनकी आराधना से सब पापों का नाश हो जाता है। ये भोग और मोक्ष सब कुछ देने में समर्थ हैं। 


हमें अपने जीवन में हर एक वास्तु , प्राणी और मनुष्य से उनकी अच्छी बात सीख लेना चाहिए ; जैसे भगवान् दत्तात्रेय ने किया .

दत्तात्रेय भगवान के २४ गुरु



दत्त गुरु ने अपने जीवन में २४ गुरु माने । २४ की सूची में सब स्तर के मानवही नहीं पशु, पक्षी और अन्य स्थावर-जंगम वस्तुएँ भी है। जब जीवनदर्शन का मूल तत्व पकड़ में आ जाता है तो उसे आचरण में लाने की शिक्षा सभी से ली जा सकती है। यह महाशिष्यत्व सामाजिक कार्यकर्ता के लिये अनिवार्य है। समाज के प्रत्येक व्यक्ति व जीवन के प्रत्येक अनुभव से शिक्षा प्राप्त करने की तत्परता व क्षमता दोनों ही हमारे लिये आवश्यक है। साथही जब हमको पता होता है कि हमने कितने लोगों की कृपा से यह ज्ञान व कौशल प्राप्त किया है तो अहंकार के बढ़ने की सम्भावना भी कम होती है। सीखते तो हम सभी है अपने परिवेष से, पर उसका भान नहीं रखते और इस कारण श्रेय को भी बाँटने की जगह स्वयं का ही मान लेते है। दत्तात्रेय का जीवन हमे बताता है कि छोटी से छोटी शिक्षा को देने वाले के गुरुत्व को स्वीकार करों। इसी गुण के कारण वे स्वयं आदर्श गुरु भी है। प्रत्येक कार्यकर्ता को ये दोनों दायित्व निभाने होते है। सारे जीवन पर्यन्त हम शिष्य भी बने रहते है और गुरु भी।जिससे भी हमें कुछ भी सीखने को मिले उसे गुरु मान कर सम्मान दे ; यही हमें दत्त गुरु ने सिखाया .

उनके २४ गुरु थे __


पृथ्वी, हवा, आकाश, अग्नि, सूर्य, कबूतर,अजगर, समुद्र, कीट, हाथी , चींटी, मछली , वेश्या, तीर निर्माता, शिशु, चंद्र, मधुमक्खी , हिरन , शिकारी पक्षी, युवती,साप, मकड़ी ,इल्ली और पानी
पृथ्वी - धैर्य और क्षमा की शिक्षा ली

हवा -यह हर जगह बहती है पर किसी के गुण अवगुण नहीं लेती , निरासक्त रहती है . प्राणवायु मात्र भोजन की कामना करती है और प्राण बचाने के लिए मात्र भोजन की अपेक्षा करती है और संतुष्ट रहती है .

आकाश - जिस प्रकार आकाश में सब कुछ है उसी तरह हर आत्मा में एकता को देखना चाहिए .

जल - जिस तरह गंगाजल दर्शन , नामोछारण और स्पर्श से ही पवित्र कर देता है , हमें भी वैसा ही बनाने का प्रयत्न करना चाहिए .

अग्नि - की तरह तेजमय रहे और किसी के तेज से दबे नहीं . अग्नि की तरह सब का भोग करते हुए भी सब कुछ हजम कर जाए उसमे लिप्त ना होवे .

चन्द्र - जिस प्रकार चन्द्र कला घटती बढती है पर मूल चन्द्रमा तो वही रहता है ; वैसे ही शरीर की कोई भी अवस्था हो आत्मा पर उसका कोई असर ना हो .

सूर्य - जिस प्रकार सूर्य अपने तेज से पानी खिंच लेता है और समय पर उसे बरसा भी देता है वैसे ही हमें इन्द्रियों से विषय भोग कर समय आने पर उसका त्याग भी कर देना चाहिए .

कबूतर - जिस तरह कबूतर अपने साथी , अपने बच्चों में रमे रहकर सुख मानता है और असली सुख परमात्मा के बारे में कुछ नहीं जानता , मूर्ख इंसान भी ऐसे ही अपनों के मोह में उनके संग को ही सुख मानता है .

अजगर - जिस प्रकार अजगर को पड़े पड़े जो शिकार मिल गया उसे खाकर ही संतुष्ट रहता है अन्यथा कई दिनों तक भूखा भी रह लेता है , हमें भी जो प्रारब्ध से मिल जाए उसमे सुखी रहना चाहिए .

समुद्र - की तरह सदा प्रसन्न और गंभीर, अथाह , अपार और असीम रहना चाहिए .

पतंगा - जिस प्रकार अग्नि से मोहित हो कर उसमे जल मरता है , वैसे ही इन्द्रियसुख से मोहित प्राणी विषय सुख में ही जल मरते है .

भौरा - जिस प्रकार हर फुल का रस लेता है उसी प्रकार हमें भी जीवन में हर घर से कुछ उपयोगी मांग लेना चाहिए.अनावश्यक संग्रह नहीं करना चाहिए .

मधुमक्खी - जिस प्रकार संग्रह कर के रखती है और अंत में उसी के कारण मुसीबत में पद जाती है , हमें भी अनावश्यक संग्रह से बचना चाहिए .

हाथी - जिस प्रकार काठ की स्त्री का स्पर्श कर उसी से बांध जाता है कभी स्त्री को भोग्या ना माने .

मधु निकालने वाले से - जैसे मधुमक्खी का संचित मधु कोई और ही भोगता है ; वैसे ही हमारा अनावश्यक संचित धन कोई और ही भोगता है .

हिरन - जिस प्रकार गीत सुन कर मोहित होजाल में फंस जाते है वैसे ही सन्यासियों को विषय भोग वाले गीत नहींसुनाने चाहिए .

मछली - जिस प्रकार कांटे में लगे भोजन के चक्कर में प्राण गंवाती है ; मनुष्य भी जिव्हा के स्वाद के लालच में अपने प्राण गंवाता है .

पिंगला वेश्या -के मन में जब वैराग्य जागा तभी वो आशा का त्याग कर चैन की नींद सो सकी .आशा ही सबसे बड़ा दुःख है और निराशा सबसे बड़ा सुख .

शिकारी पक्षी -जब अपनी चोंच में मांस का टुकडा ले कर जा रहा था तो दुसरे पक्षी उसे चोंच मारने लगे . जब उसने उसटुकड़े को छोड़ दिया तभी सुख मिला . वैसे ही प्रिय वस्तु को इकट्ठा करना ही दुःख का कारण है .

युवती - धान कुटती हुई युवती के हाथ कीचूड़ियाँ जब शोर कर रही थी तो उसने परेशान हो कर सब निकाल दी सिर्फ १-१ हाथ में रहने दी .जब कई लोग साथ में रहते है तो कलह अवश्यम्भावी है .

बाण बनाने वाला -आसन और श्वास जीत कर वैराग्य और अभ्यास द्वारा मन को वश करलक्ष्य में लगाना .

सर्प - की तरह अकेले विचरण करना . मठ - मंडली से दूर रहना.

मकड़ी - जैसे अपने मुंह से जाल फैलाती है , उसी में विहार करती है और फिर उसे निगल लेती है इश्वर बी जग को बना कर, उसमे रह कर , फिर अपने में लीन कर लेते है .

इल्ली -इल्ली जिस प्रकार ककून में बंदहो कर दुसरे रूप का चिंतन कर वह रूप पालेती है , हम भी अपना मन किसी अन्य रूप से एकाग्र कर वह स्वरूप पा सकते है .

कथा :-


ब्रह्माण्ड पुराण में वर्णित है कि सत्ययुग में गुरुपदेशपरम्परा के क्षीण एवं श्रुतियों के लुप्तप्रायहोने पर अपनी विलक्षण स्मरण-शक्ति द्वारा इनके पुनरुद्धार एवं वैदिक धर्म की पुनस्र्थापना हेतु भगवान् श्रीविष्णु दत्तात्रेय के रूप में अवतीर्ण हुए। कथानक है कि श्रीनारदजीके मुख से महासती अनसूयाके अप्रतिम सतीत्व की प्रशंसा सुनकर उमा,रमा एवं सरस्वती ने ईष्र्यावशअपने-अपने पतियोंको उनके पातिव्रत्य की परीक्षा लेने महर्षि अत्रि के आश्रम भेजा। सती शिरोमणि अनसूयाने पातिव्रत्य की अमोघ शक्ति के प्रभाव से उन साधुवेशधारीत्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु व महेश) को नवजात शिशु बनाकर वात्सल्य भाव से स्तनपान कराया और तदनन्तर तीनों देवियों की क्षमा-याचना व प्रार्थना पर उन्हें पूर्ववत् स्वरूप प्रदान कर अनुगृहीत किया। अत्रि व अनसूयाका भाव समझकर त्रिदेव ने ब्रह्मा के अंश से रजोगुणप्रधानसोम, विष्णु के अंश से सत्त्‍‌वगुणप्रधानदत्त और शंकर के अंश से तमोगुणप्रधानदुर्वासा के रूप में माता अनसूयाके पुत्र बनकर अवतार ग्रहण किए। अत्रि मुनि का पुत्र होने के कारण आत्रेय और दत्त एवं आत्रेय के संयोग से दत्तात्रेय नामकरण हुआ।

यज्ञोपवीत संस्कार के उपरान्त सोम व दुर्वासाने अपना स्वरूप एवं तेज दत्तात्रेयको प्रदान कर तपस्या के निमित्त वन-प्रस्थान किया। वे त्रिमुख, षड्भुज, भस्मभूषित अंग वाले मस्तक पर जटा एवं ग्रीवा में रुद्राक्ष माला धारण किए हैं। त्रिमूर्तिस्वरूप में उनके निचले, मध्य व ऊपरी दोनों हाथ क्रमश: ब्रह्मा, महेश एवं विष्णु के हैं। वे योगमार्गके प्रव‌र्त्तक,अवधूत विद्या के आद्य आचार्य तथा श्री विद्या के परम आचार्य हैं। इनका बीजमन्त्र द्रां है। सिद्धावस्थामें देश व काल का बन्धन उनकी गति में बाधक नहीं बनता। वे प्रतिदिन प्रात:से लेकर रात्रिपर्यन्तलीलारूपमें विचरण करते हुए नित्य प्रात: काशी में गंगा-स्नान, कोल्हापुर में नित्य जप, माहुरीपुरमें भिक्षा ग्रहण और सह्याद्रिकी कन्दराओंमें दिगम्बर वेश में विश्राम (शयन) करते हैं। उन्होंने श्रीगणेश, कार्तिकेय, प्रह्लाद, यदु, सांकृति, अलर्क, पुरुरवा, आयु, परशुराम व कार्तवीर्यको योग एवं अध्यात्म की शिक्षा दी। त्रिमूर्ति स्वरूप भगवान् श्री दत्तात्रेय सर्वथा प्रणम्य हैं: जगदुत्पत्तिकत्र्रे चस्थितिसंहारहेतवे। भवपाशविमुक्तायदत्तात्रेयनमोऽस्तुते॥




Sayings of Shirdi Saibaba



॥ ॐ सांई राम ॥

॥ अनंत कोटी ब्रम्हांड नायक राजाधिराज योगीराज परं ब्रम्हं श्री सच्चिदानंद
सदगुरू श्री साईनाथ
महाराज की जय॥

॥ॐ सांई राम॥

हमारे मन में सबके प्रति प्रेम, सहानुभूति, मित्रता और शांतिपूर्वक साथ रहने का भाव हो.



 II  11 Sayings of Sai Baba II


1. Whoever puts his feet on Shirdi soil, his sufferings would come to an end.
2. The wretched and miserable would rise into plenty of joy and happiness, as
soon as they climb steps of my samadhi.
3. I shall be ever active and vigorous even after leaving this earthly body.
4. My tomb shall bless and speak to the needs of my devotees.
5. I shall be active and vigorous even from the tomb.
6. My mortal remains would speak from the tomb.
7. I am ever living to help and guide all who come to me, who surrender to me
and who seek refuge in me.
8. If you look to me, I look to you.
9. If you cast your burden on me, I shall surely bear it.
10. If you seek my advice and help, it shall be given to you at once.
11. There shall be no want in the house of my devotees.

How to do Diwali Pooja & Smart Tips...



Lakshmi Pooja, or the worship of the goddess of wealth, is the main event on Diwali in India. It is extremely important to keep the house spotlessly clean and pure on Diwali. Goddess Lakshmi likes cleanliness, and she will visit the cleanest house first. This is also the reason why the broom is worshiped on this day with offerings of haldi and kumkum (turmeric and vermilion). Lamps are lit in the evening to welcome the goddess. They are believed to light up her path. Ganesha is worshiped at the beginning of every auspicious act as Vighnaharta

First and foremost step is to clean the house. Through the puja we are inviting Goddess Lakshmi to our house and she likes everything to be neat and clean. In some communities, even the broom is worshipped on the Lakshmi Puja day. This symbolically represents the need for cleanliness. 

Three forms of Shakti – Goddess Lakshmi, Goddess Saraswathi and Goddess Durga –Lord Ganesh and Lord Kubera are worshipped on the day. No puja is performed without paying customary tributes to Lord Ganesha. Lord Kubera, represents wealth, and he is the treasurer of Gods. In homes, usually the locker or safe in which gold and cash is kept symbolically represents the seat of Kubera. 


Important Items Needed For Lakshmi Puja

  • Kalash
  • Mango leaves
  • Idol or picture of Goddess Lakshmi
  • Milk, curd, honey, ghee
  • Puffed rice
  • Usual puja Sweets
  • Coriander seeds
  • Cumin seeds
  • And other daily puja items



Lakshmi Puja Process

  • First decide on a place to perform the puja.
  • Spread a clean cloth and create a bed of rice.
  • A Kalash (pot) is placed on the bed of rice.
  • Fill about 75% of the Kalash with water.
  • Put a betel nut, flower, a clean coin, and some rice in the Kalash.
  • Now arrange mango leaves around the opening of the Kalash.
  • Place a Thaali (a small plain plate) on the Kalash.
  • On the Thaali, draw a lotus with turmeric powder and place the idol or small photograph of Goddess Lakshmi.
  • Place some coins on the Thaali.
  • On the right of Kalash, place the idol of Lord Ganesha.
  • If you need, you can also place the idols of Saraswathi and your favorite deities.
  • Create a peaceful and calm atmosphere. The best way is to close the eyes and meditate on ‘om.’
  • Take some water and sprinkle on all puja items to purify them.
  • Do puja with haldi, kumkum and flowers on the Kalash.
  • Light a lamp.
Now take some flower and rice in the hands and close the eyes and meditate on Goddess Lakshmi. You are now invoking Goddess Lakshmi. If you know mantras, recite them. Otherwise just simply meditate on Goddess Lakshmi. Here is a simple Sanskrit mantra dedicated to Goddess Lakshmi.

Namosthesthu Maha Maye,
Shree padee, sura poojithe,
Shanka, Chakra, Gadha hasthe,
Maha Lakshmi Namosthuthe

  • Now sprinkle the flowers and rice on the idol of Goddess Lakshmi.
  • Take out the idol of Goddess Lakshmi and place it on a Thaali. Clean the idol with water, then with milk, curd, ghee, honey and sugar. Then clean the idol again with water.
  • Place the idol back on the Kalash.
  • Now offer garlands made of marigolds or leaves of bel tree, sandalwood paste, kumkum and other daily puja items including lighting incense and agarbhatis.
  • Now make offerings of coconut, fruits, sweets, betel nuts and betel leaves.
  • Next make offerings of Batasha sweets, puffed rice, coriander and cumin seeds.
  • Lastly, perform a silent Arati for Goddess Lakshmi. And meditate on Goddess Lakshmi.
  • Take some of the ‘prasad’ (that will stay for long period of time) and place it at the place where ornaments and cash is usually kept.

Business people also worship the account books on this day along with Goddess Lakshmi. 



9 Smart Tips for a Better Diwali

  • Listed below are some nine tips to make your diwali safe and enjoyable:
  • Wear Cotton Clothes: Always wear cotton clothes and make sure that everyone in the family does so. That’s the most sensible thing to do when you are playing with fire.
  • Stock water: We all should be careful as Diwali in some ways means playing with fire. Therefore, if a fire mishap takes place you should be able to stop it very quickly. You can only do it when you have stocked water or sand.
  • Educate Children: Give proper instructions and information to your children about the potential hazards of using firecrackers without parental supervision. Even after educating them they might be out of control, so, always check what they are up to.
  • Disposal of Used Fire-crackers: Always make it a point to dispose off used fireworks properly. Best, you put sand or water on them right after use.
  • No Noise Pollution: This is primarily for all those people who have patients or old people at homes or in their neighbourhood. Please refrain from buying fire crackers which create noise pollution.
  • First-Aid: In case, a small accident occurs like burns, etc use an antiseptic cream immediately after putting the affected part under water for sometime.
  • Buy High Quality Firecrackers: When you are buying fire crackers it is best to go for a reputed brand which uses good materials. This lessens the risk of a fire out break to a great extent.
  • No Playing with Fire in Closed Place: Always use crackers outside your house. An open space ensures that at a time of emergency the fire will not spread.
  • Pets: If you have pets at home, tie them up inside your home and do not let them come near fire.

इसे श्राद्ध कहते हैं ?

बजुर्गों का तिरस्कार बाद के लाखों त्र्प्नों से भी क्षमा योग्य नही हो सकता,न हो पायेगा...


आज मुझे स्मरण कर रहे हो ?
या पारिवारिक मिलन ?
या मिलन के नाम पर तर्पण ?
शायद इसे श्राद्ध कहते हैं |


पर जब मैं भूलोक पर था,
तुम्हारी यह श्रद्धा कहीं खो गयी थी,
हम बूढ़े हो गए थे,शायद अधूरे रह गए थे,
जीवन की संध्या में हम त्रस्त थे,
तुम हर संध्या में व्यस्त थे...


जीवन की शाम भी बढ़ी अजीब होती है,
इंसा तनहा होते हैं,जब मौत करीब होती है...


हम अटके हुए थे,अब एक शून्य में,
पहले लटके हुए थे,
अपने ही आशियाने के वृधाश्रम में...


बुदापे से गुजरता हर किसी का सफर है,
पर आज इस हकीकत से हर बच्चा बेखबर है...


सिमट गए थे एकाकी हो एक कमरे में,
जीते जी असमय ही अपने ही समय में,
एक बिता हुए समय सा हो गए थे...


कितने प्रसंग जुर्ढे थे तुम्हारे जन्म से,
तुम्हारे जवान होने तक,
नौकरी से लेकर घोडी चड़ने/डोली चड़ने तक...
और हम एक दम अप्रसांगिक हो गए थे...


जाती हुई धुप में तुम सेकते रहे,
अपना वर्तमान,तलाशते रहे अपनी संतान का भविष्य,
और हम हो चुके थे शून्य...


कितने अकेले थे उस कमरे में,
न कोई आता न कोई जाता,
महीने बतियाने को तरसते थे हम...


आँखे थक जाती तुम्हें निहारने को,
बस मोबाइल की घंटी बन चुकी थी,
तुम्हारे हमारे बीच का रिश्ता...


बचपन में तुम नहीं सह सकते थे,
एक पल की भी दूरी,
जीवन की सांझ में हम बन गए,
तुम सब की मजबूरी...


एक गिलास पानी को तरस गए हम,
आज तुम मंदिर में कभी नदी के घात पर,
हमें दे रहे हो तिलांजली,
धन्य है तुम्हारी श्रद्धा,तर्पण और समर्पण 


इसी श्रद्धा और तर्पण को हम जीते जी तरसते रहे,
काश हमारी जीवित आत्मायों को,
यह तृप्ति भूलोक में मिल जाती,
तो यह आत्मा आज शून्य में न तडपती...

SHRADH PUJA and Its great significance for everyone

Meaning of Shradh-Pitr Paksha

Shradh is a pooja done for atma shanti for your departed paternal and maternal near and dear ones. It is a ritual for expressing one's respectful feelings for the ancestors with devotion. It allays the sufferings of your departed dear ones. Delighting ancestors before God is promoting or enhancing well-being. Pitra Kriya is more rich in significance or implication than Dev Kriya. Garud Purana, Matsya Purana, Vishnu Purana, Vayu Purana and other sacred scriptures as Manu Smriti etc. give an account or representation of Shraddh.

Pitru Paksha:
Pitru Paksha (Sanskrit: पितृ पक्ष), also spelt as Pitr paksha or Pitri paksha, (literally "fortnight of the ancestors") is a 16–lunar day period when Hindus pay homage to their ancestors (Pitrs), especially through food offerings. The period is also known as Pitru PakshyaPitri PokkhoSola Shraddha ("sixteen shraddhas"), KanagatJitiyaMahalaya Paksha and Apara paksha
Pitru Paksha is considered by Hindus to be inauspicious, given the death rite performed during the ceremony, known as Shraddha or tarpan. In southern and western India, it falls in the Hindu lunar month ofBhadrapada (September–October), beginning with the full moon day (Purnima) that occurs immediately after the Ganesh festival and ending with the new moon day known as Sarvapitri amavasyaMahalaya amavasya or simply Mahalaya. In North India and Nepal, this period corresponds to the dark fortnight of the month Ashvin, instead of Bhadrapada.

SHRADH PUJA has a great significance for everyone

In Indian tradition, the word ‘Shradh Puja' has a great significance for everyone. This puja is performed on the death anniversary of nearest and dearest one in the family for giving respect or devotion to him/her. In other words, it is a ritual in which individuals express their feelings and show loyalty towards theirancestors.Shradh Puja exists on each day of the ‘PitraPaksha' (dark fortnight) in which people cook some favourite and special food of the departed person. As per the Hindu mythology, there are 12 types of ‘Shradh Puja' available, which are performed by people with complete faith.
It is the fact that if someone takes birthsthen he or she must die on some day. So, this is the life-cycle and everyone is bound to follow the procedure as well. Individuals can see the unbelievable growth in their life in terms of wealth, joy, pleasure, job, children and health by providing respect and satisfaction along with their offerings to the person, who died in the family. Thus, it is advisable to all the individuals that they should take participation in ShradhPuja withfull faith and pure heart to get the better prospectus from the dead person. And, in Hinduism, after the death of a person, Shradh must be performed within the time frame of 11 to 13 days.
Hindus believe that a soul that is not pacified will continue to remain in this world and will not find salvation. So, each and every person should perform the Shradh ceremony every year by offering Anna Daan to Brahmins as well as to the poor people. In this manner, he/she can make sure that the soul of the loved ones will re visit to bless them and then will depart happily. Along with this, there are some rules and regulations, which individuals need to follow during Shradh Puja as once in a day, they must offer proper food to five Brahmins with ‘Dakshina' (Money), clothes, and other items or things of their choice.
Significance of Shradh Chaturdashi Tithi

For ancestors who may have died due to any weapon, poison or accidents, their Shradh is performed on Chaturdashi and for ancestors who died on Chaturdashi, their Shradh is performed on Amavasya

Benefit of Ancestor Puja

Performing this pooja for ancestors will bring good fortune to their descendants and thereby receiving positive energies for progress. The descendant also receives blessings from the pitra/forefathers to help him materially. This can greatly help the individual to progress spiritually as the material obstacles or problems are eradicated. This pooja is very powerful and effects on health and curing serious diseases. This is being done for getting recovery from chronic diseases and other body aliments. Those who are invariably suffering from any aliments shall get this pooja done for early recovery. This pooja is specifically suitable for Success in Business or Career , Protection from Evils and Enemies.

Pitra Dosh

Malefic effects of Jupiter are also considered due to pitra dosh. It is not a curse of ancestors. It appears in the horoscope of a person due to the previous bad karmas of his forefathers. In simple terms, he has to pay for those actions by going through the suffering that has been decided for those karmic deeds. This will continue until these karmic debts are cleared either by suffering or by the good deeds that have been done by the person who has the pitra dosha. It is just like a child inherits the assets and liabilities of his forefathers in this materialistic world, the results of past karmas are also passed on to the descedents. To relieve yourself of pitra dosha we should do shraadh/pitrapaksh pooja on every Amavasya and also in the shraadh days in the month of Ashwin to get benefit to the greatest possible degree.

Remedy for malefic effects of jupiter

If Jupiter is in his sign of debilitation and associated with a malefic one can find his life ruined in all respects due to malefic effects of planet Jupiter. The Pitra Dosha created by the Jupiter, in horoscope, is related to the Sins committed by ancestors. Appeasing deity of the relevant planet causing Pitra Dosha in horoscope of a person is must, to get rid of the problems originated due to them. Otherwise, the implications of Pitra Dosha will continue to reflect in the birth charts of ongoing generation. Further the persons going through the main and sub period of jupter ( Brahaspati mahadasha and antardasha) are suggested to conduct the shraadh pooja so that quantum of suffering or debt is reduced.

Kalsarp Dosha

This dosha is also minimized and fruitful results are obtained by doing the shraadh pooja by procuring the blessings of ancestors. Childless couples and persons facing hinderance in getting monetary benefits when perform this pooja are benefitted to a great extent.

Remembering loved Ancestors

Unfortunately this important death ceremony(shraadh) is one of the most neglected Hindu rituals in the present day society.vedic phrase 'jiva jivasya jivanam' the living entity survives by feeding upon another living entity who in turn survives by feeding on another living entity. . .

Performing Shradh Puja

This ceremony is performed by 2 sadhaks(brahmin) as per the prescribed rituals by offering clothes and food, etc and blessings are sought. After that it is customary to do poor feeding. We give lunch to the 108/1008 poor people. We conduct both types of offerings for maximum 'tarpan' (relief).

Time to Perform Pitra Paksha Tarpan 2012

Every year in the month of Ashwin (hindu month), Krishna Paksh i. e. , 15 days commencing from Purnima(fullmoon) to Amavasya (darknight) "Shraadh" days are performed. In the year 2012 it will be from 1st october 2012 to 15th october 2012.

How to perform Ganesh Chaturthi Puja...


Ganesh Chaturthi is one of the major festivals of the Hindus. It is celebrated as the birthday of Lord Ganesha. It falls on the Shukla Chaturthi during the Hindu month of Bhadrapada. The festival is usually celebrated between 20th August and 19th of September. It ends on the Anant Chaturdashi. In 2012, Ganesh Chaturthi will be celebrated on 19th of September

Legend:

Traditional stories tell that Lord Ganesha was created by goddess Parvati, consort of Lord Shiva. Parvati created Ganesha out of sandalwood paste that she used for her bath and breathed life into the figure. She then set him to stand guard at her door while she bathed. Lord Shiva returned and, as Ganesha didn't know him, he didn't allow him to enter. Lord Shiva became enraged, severed the head of the child and entered his house. After realizing that he had beheaded his own son, Lord Shiva fixed the head of an elephant in place of Ganesha's head. In this way, Lord Ganesha came to be depicted as the elephant-headed God.

Date:

The festival is observed in the Hindu calendar month of Bhaadrapada, starting on the shukla chaturthi (fourth day of the waxing moon). The date usually falls between 19 August and 20 September. The festival lasts for 10 or 12 days, ending on Anant Chaturdashi. This festival is observed in the lunar month of bhadrapada shukla paksha chathurthi madhyahana vyapini purvaviddha. If Chaturthi prevails on both days, the first day should be observed. Even if chaturthi prevails for the complete duration of madhyahana on the second day, if it prevails on the previous day's madhyahana period even for one ghatika (24 minutes), the previous day should be observed

How to perform Ganesh Chaturthi Puja

Ganesh Chaturthi or Vinayaka Chaturthi is one of the most colorful and widely celebrated festivals in India. Large number of people observe Ganesha Chaturthi poojas at home. Here is an explanation on how to perform Ganesha puja at home as mentioned in Hindu scriptures.

Ganesha puja on the Chaturthi day is usually performed at noon but nowadays people perform it when all the family members are present. 

Requirements

  • A Clay image of Lord Ganesha.
  • Red flowers
  • Druva Grass blades
  • Modak (jaggery filled sweet)
  • Coconut
  • Red chandan (Sandalwood paste)
  • Incense and agarbathis

The Puja


  • First clean the house and take a bath.
  • A Clay image of Lord Ganesha is installed in a raised platform.
  • Pray to Lord Ganesh and you can recite mantras or bhajans dedicated to Lord Ganesha.
  • Next step is to invoke Ganesha into the image. This is known as pran-prathishta. The Pran Prathista mantra in Sanskrit to be invoked is found in the Rig Veda and is part of Ganesh Sukth

ganananh tva ganapatim havamahe kavim kavinam - upamashravastamam |
jyeshhtharajam brahmanan.h brahmanaspata A nah shrivnvannutibhih sida sadanam || 
ni shhu sida ganapate ganeshhu tvamahurvipratamam kavinam |
na rite tvat.h kriyate kinchanare mahamarkam maghavan.h chitramarcha || 

We invoke You, O Ganapati of the ganas (Lord Shiva attendants), Who are Brahmana-spati of the brahmas (prayers), the wisest among the wise, Who abound in treasure beyond all measure, the most brilliant one. Do listen to our prayers, come with Your blessings and assurances of protection into our home, and be seated. 

Sit down among the worshippers, O Ganapati, the best sage among the sages. Without You nothing can be done here or far. Accept with honor, O wealthy One, our great and variegated hymns of praise. 

Now Ganesha is installed in the idol and one can perform arati and light the lamps. Some people perform the shhodashopachara, which are 16 forms of paying tribute to Ganesha. 
Offer 21 blades of Druva Grass.
Offer 21 modakas
Offer red flowers
Apply a tilak using red Sandalwood paste.
Break the coconut or just keep it along with the idol. You can also keep fried grains. (The food of the rat – the vehicle of Ganesha).
You can also recite the 108 salutations dedicated to Lord Ganesha or read the Ganesha Upanishad or just simply pray.

The number 21 signifies - the five organs of perception, five organs of action, five vital airs (pranas), five elements, and the mind.

Arti For Ganesha Chaturthi

Jai Ganesha Devaa


Jai ganesha jai ganesha jai ganesha devaa
Maataa jaakii paarvatii, pitaa mahaadevaa
Eka danta dayaavanta, caara bhujaa dhaarii
Maathe sinduura sohai, muuse kii savaari
Jai ganeshaa...

Andhana ko aankha deta
Korhina ko kaayaa
Baanjhana ko putra deta
Nirdhana ko maayaa
Jai ganeshaa...

Paana carhe, phuula carhe
Aura carhe mevaa
Ladduana ko bhoga lage
Santa karen sevaa
Jai ganesha...

कुछ उपयोगी टोटके...

छोटे छोटे उपाय हर घर में लोग जानते हैं,पर उनकी विधिवत जानकारी के अभाव में वे उनके लाभ से वंचित रह जाते हैं |यहाँ कुछ उपयोगी टोटकों कि विधिवत जानकारी दी जा र्ही है |

परीक्षा में पास होने के लिए:

जेहि पर कृपा करहीं जनु जानी |
कवि उर अजिर नवावहिं बानी |
मोरी सुधारिहि सो सब भांति
जासु कृपा  नहीं कृपा अघाती ||

आकर्षण के लिए :

जेहि के जेहिं पर सत्य सनेहू |
सो तेहि मिलइ न कछु संदेहू ||

खोई हुई वस्तु पुन:प्राप्त करने के लिए :

गयी बहोर गरीब नेबाजू |
सरल सबल साहिब रघुराजू ||

जीविका प्राप्त करने के लिए :

विस्व भरन पोषण कर जोई |
ताकर नाम भरत अस होई ||

दरिद्रता दूर करने के लिए :

अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारी के |
कामद धन दारिद द्वारिके ||

लक्ष्मी प्राप्त करने के लिए:

जिमी सरिता सागद महूँ नाहीं |
जघपि ताहि कामना नाहीं |
तिमी सुख सम्पति विनहि बोलाए |
धर्मसील फिन जाहीं सुभाएँ ||

पुत्र प्राप्ति के लिए :

प्रेम मगन कौसल्या निसदिन जात न जान |
सूत स्नेह बस माता बाल चरित कर गान ||

सम्पति प्राप्त के लिए:

जे सकाम न सुनहिं जे गावहीं
सुख सम्पति नाना विधि पावहिं ||

सर्वसुख प्राप्त  करने के लिए:

सुनहिं विमुक्त विरत अरु विषई |
चहहीं भगती  गति संपति नई ||

मनोरथ सिद्धि  के लिए:

भव  भेषज रघुनाथ जसु सुनहिं जे नर और नारी |
तिन कर सकल मनोरथ सिद्ध करही त्रिसिरारि ||

मुकदमा जीतने के लिए :

पवन तनय बल पवन समाना |
बुद्धि विवेक विज्ञान निधाना ||

शत्रुता नाश के लिए :

बयरु न कर काहू सन कोई |
राम प्रताप विषमता खोई ||

विवाह के लिए :

तब जनक  पाई बसिष्ठ आयसु व्याह साज संवारिके |
माडवी श्रुतकीर्ति उर्मिला कुअरी   लई हवनाती के ||

krishna Janmashtami Aarti


Lord Krishna's Arti

Jai shri Krishna hare, prabhu jai jai Girdhari,
Danav-dal balihari, Go dwij hitkari.

Jai Govind dayanidhi, Govardhan dhari,
Vanshidhar banvari, braj jan priyakari.

Ganika godh ajamil, gajpati bhayhari,
Arat-arti hari, jai mangalkari.

Gopalak gopeshwar, draupadi dukhdari,
Shabar suta sukhkari, Gautam tiya tari.

Jan prahlad pramodak, narhari tanu dhari,
jan man ranjankari, diti sut sanhari.

Tidwish-sut sanrakshak, rakshak manjhari,
Pandu suvan shubhkari, kaurav madhari.

Manmath-manmath mohan, murli rav kari,
Vrindavipin bihari, yamuna tat chari.

Agh bak baki udharak, trinavarta tari,

bidhi surpati madhari, kansa muktikari.

Shesh mahesh saraswati, gun gavat hari,
Kal kirti vistari, bhakt bheeti hari.

Narayan sharnagat, ati agh aghhari,
Pad-raj pawankari, chahat hitkari.

Shri Kunj Bihari Ji Ki Aarti


Aarti Kunj Bihari Ji Ki, Girdhar Krishan Murari Ki,
Gale Main Bejyantee Mala, Bajave Murli Madhur Bala.
Shrawan Main Kundal Jhal Kala, Nand Ke Anand Nandlala.
Neinan Beech, Bshi Ur Beech, Surtiya Roop Ujari Ki,
Girdhar Krishan Murari Ki, Aarti Kunj Bihari Ki.
Kanakmay Mor Mukut Vilse, Devta Darshan Ko Tarse.,
Gagan Se Suman Bhaut Barse, Bjt Muh Chang Aur Mardung,
Gwalin Sung. Laj Rakh Gop Kumari Ki,
Girdhar Krishan Murari Ki, Aarti Kunj Bihari Ki.
Jhan Te Prakti Hai Ganga, Kalush Kali Harni Shree Ganga,
Dhari Shiv Sheesh Jata Ke Beech Radhika Gaur,
Shyam Patchar Ki, Chhavi Nirkhen Banvari Ki,
Girdhar Krishan Murari Ki, Aarti Kunj Bihari Ki.
Chahudishi Gopgwal Dhenu, Baj Rahi Jamunatat Benu,
Hansat Mukh Mand Vard Sukh Kand Varndavan,
Chand Ter Suni Leu Bhikhari Ki,
Girdhar Krishan Murari Ki, Aarti Kunj Bihari Ki.

Lord Krishna,Janmashtmi



What is Janmashtami?

Janmashtami is the Holy day in Hinduism celebrating the birth of Krishna. It was celebrated worldwide on 09-08-2012

Krishna Janmashtami , also known as 'Krishnashtami', 'Gokul Ashtami' or sometimes merely as 'Janmashtami', is one of the greatest and most sacred Hindu festivals that commemorates the birth of Lord Krishna, the supreme God in Indian Mythology. It is traditionally believed that Lord Krishna appeared in his human form in Dwapara yuga, on the midnight of the 8th day of the dark half of the month of Sravan of 3228 BC. Hence, Janmashtami is observed on the eighth day of the dark half (Krishna Paksha) of the month of Shraavana in the Hindu calendar, when the Rohini Nakshatram (Rohini star) is ascendent. The festival falls sometime in the months of August/September of the Gregorian calendar.

Who is Krishna?

Krishna is noted to be the eighth incarnation of the god Vishnu. Lord Krishna is one of the most famous and prominent gods in the Hindu religion and is believed to be a warrior, teacher, hero and philosopher. He is known to be the Supreme personality of Godhead. The Vedic scriptures, and scriptures through out the entire world, provide us further detail about this Supreme Being, who is known for his universal acctractive attributes. Hence the name, Krishna, meaning "the all-attractive one" for this Supreme Being.

The Significance of Janmashtami


According to Hindu mythology, 5000 years ago on Janmashtami, which falls on the 8th day of the dark half month of August-September, Lord Krishna appeared at midnight. This is a historical fact, and holds immense prominence. Midnight was the time of maximum darkness, and when the Lord was born during this midnight, the darkness began to diminish. The observances on the day when Krishna is to be born in the midnight (Janmashtami), marks one's preparation with spiritual practises to receive the truth.

Janmashtami Puja Items


In India and abroad, wherever there is the presence of a Hindu community, Janmashtami is observed with a lot of joy and enthusiasm. Every year people celebrate the birthday of Lord Krishna with great pomp and enthusiasm. Special pujas (worship services) are performed both in homes as well as temples. The entire day is devoted to the remembrance of the antics of Lord Krishna during his stay in his earthly abode. Special Aartis (prayer services) are performed and Bhajans (devotional songs) sung in the praise of the Lord. Food offerings are placed before an idol or image of the deity which are consumed once the worship is completed. Devotees bathe early in the morning, dress up in new apparels and with the 'puja samagri' (the items necessary for worship) in hand, throng local temples in thousands to visit their favourite god, pay him a tribute and celebrate his birth with a lot of fervor.

The aforementioned 'puja samagri' or worship items are vital for performing the Janmashtami puja. In the absence of these items, the ritual of worship remains traditionally incomplete. In fact, this holds true for almost all sacred Hindu festival. Be it in Diwali, Ganesh Chaturthi or Janmashtami, it is requisite to assemble different items considered sacred in order to worship the deities in a traditional way. Like in otherfestivals, for Gokulashtami people plan for the midnight puja a day prior to the exact time of celebration. They purchase from beforehand all the 'samagri' or puja items required for performing the worship. If you are planning to hold a grand puja event this coming Janmashtami, you must know about the different Janmashtami puja items. So check out this list given below that mentions the traditionally important things for Krishnashtami puja

New clothes, bansuri (flute) and zewarat (ornaments) for Lord Krishna
Shankha (conch shell),
Pooja thali (a metal plate containing the ingredients necessary for worship)
Ghanta (bell),
Diya (earthen lamp), chawal(rice), Elaichi(cardamom),
Supari (betel nut) and paan patta (betel leaves),
Mauli thread
Gangajal (Sacred water),
Sindoor (vermillion paste) for 'tika'
Agarbatti (incense sticks),
Phool (flowers),
Ghee (clarified butter).
'Panchamrit' - milk, curd, gangajal, honey and ghee.
Artigranth(prayer book containing Shri Krishna's arti)
Janmashtami Mithai (sweets for Janmashtami)


If you want to perform the puja of Lord Krishna in a temple, then you should bring the following items:
Doodh (Milk),
Dahi (Buttermilk),
Janmashtami Mithai (sweets for Janmashtami)
Juices,
Zafran (Saffron),
Gulabjal (Rose water),
New Clothes or Vasthras (Dhoti/Sarees),
Ganga Jal (water from sacred River Ganga),
Phal (Fruits as coconuts),
Supari (betel nut) and paan patta (betel leaves),
Phool (flowers),
Korpur (Camphor),
Agarbatti (incense sticks),
Mala (Flower garland), if possible,
Some 'prasada'(food offering) for 'naivedya'.


Generally, these are the things traditionally needed for performing the puja. However, it should be kept in mind that the list of items may vary because the process of worship differs in case of different people.
Pious Hindus believe that worship of the Gods with full faith, love and devotion using all the necessary pooja items, make them feel happy and pleased. It is then that they bestow mankind with happiness, fortune and success. Hence, it is considered a bad omen if any of the items is missing. It is advicable that you recheck before the puja, whether you have with you all the Janmashtami pooja items or not.







सत्य वचन...


  • सबसे बड़ा धर्म -सेवा
  • सबसे बड़ा सदाचार-दूसरों को अपने समान समझना 
  • सबसे बड़ा पाप-धूम्रपान
  • सबसे बड़ा-ज्ञान-जीव इश्वर का सनातन अंश है
  • सबसे बड़ा धन-विद्या
  • सबसे ऊँचा आदर्श-इश्वर कि सर्वव्यापकता 
  • सबसे श्रेष्ठ मंदिर-प्राणी का शरीर
  • सदा पूजे जाने योग्य-माता,पिता,एवं गुरु
  • सबसे बड़ा सत्य-मौत
  • सबसे बड़ा भ्रम-धन से सुख कि प्राप्ति 
  • सबसे बड़ा सुख-संतोष
  • सबसे बुरी आदत-नशा का सेवन
  • कभी न भूलने योग्य-ऋण,रोग,एवं शत्रु
  • भूल जाने योग्य-किसी पर किया उपकार
  • सबसे बड़ा अधर्म-जीव् हिंसा
  • सबसे बड़ी दुर्बलता-स्वार्थ
  • सदा याद रखने योग्य-किसी के द्वारा स्वयं पर किया गया उपकार
  • सदा देने योग्य-भूखे को अन्न,प्यासे को पानी एवं दुःख से आहात मनुष्य को मधुरवाणी
  • सबसे बड़ा मित्र-उत्तम पुस्तके
  • सबसे बड़ी पूजा-अपने कर्मों का इश्वर के प्रति समर्पण

रक्षाबंधन में अंकों का महत्व...

जन्मतिथि  के अनुसार यदि राखी के रंग का चयन किया जाये तो यह जातक के जीवन में अधिक खुशियाँ लाती है |
कच्चा धागा बहन अपने भाई कि कलाई पर बांधती  है और यही कच्चा धागा जीवनभर के सम्बन्ध को पक्का कर देता है |अगर बहन जन्तिथि के अनुसार राखी  के रंग का चयन करे और भाई जन्मतिथि  के अनुसार गिफ्ट के रंग को चुने तो यह दोनों के लिए सौभाग्य लाता है |
अंक १-

जिस जातक का जन्म दिनांक १,१०,२८,हो उसका शुभंक एक ही आता है|राखी के दिन इन यात्कों  को येलो,गोल्डन व ब्राउन राखी लाभप्रद रहती है |भाई अपनी बहनों को लाल रंग कि वस्तुए उपहार में दें |भाई बहन परस्पर लाभ के लिए गेंहू,गुड,कमल,लाल वस्त्र,तांबे के बर्तन,स्वर्ण का यथाशक्ति दान करें |
अंक २-
जिस व्यक्ति का जन्म दिनांक २,११,२०,२९,हो उनका शुभंक दो होगा |रक्षाबंधन पर उन्हें ग्रीन,व्हाइट और क्रीम राखी बंधना या बंधवाना शुभ होगा|काला ,बेंगनी व लाल रंग से दूर रहें|बहन को डार्क कि वस्तुए भेंट न करें |चावल,कपूर,सफेद वस्त्र,घी व बांस के बने पात्र का दान करने से लाभ होगा |
अंक ३-
जिस जातक का जनम ३,१२,२१,३० को हो उसका शुभंक तीन रहेगा | राखी के दिन इन्हें बेंगनी,वायलेट,येलो राखी शुभ संकेत देगी |इस शुभंक के जातकों को काले व लाल रंग से बचना चाहिए |हल्दी,चना दाल या पीले रंग का धान.पीला कपड़ा,स्वर्ण का दान शुभ अवसर प्रदान रेगा |
अंक ४-
जिन जातकों का जन्म ४,१३,२२,३१ तारीख का है उनका शुभंक चार रहेगा | रक्षाबंधन पर पीला ,गोल्डन,सकाये,ब्लू,और व्हाईट राखी बंधना या बंधवाना लाभप्रद रहेगा |इस शुभंक के जातक गाढे रंग जैसे डार्क ग्रीन ,ब्लेक,का त्याग करें|गेंहू,लाल वस्त्र,या कोई भी लाल धान का दान करें |
अंक ५-
जिस जातक का जन्म दिनांक ५,१४,२३,हो उनका शुभंक पांच रहेगा |राखी के दिन लाल.पर्पल,ग्रे,ब्राउन,शुभ संकेत देगा |हलके रंगों से बचना चाहिए |दान के लिए मसूर कि दाल,गुड,तांबे के बर्तन,लाल वस्त्र व टमाटर या हरी घास,मुंग,हरे वस्त्र का दान करना उतं रहेगा |
अंक ६-
जिन जातकों कि जनम तिथि ६,१५,२४ है उनका शुभंक छ होगा |राखी के दिन ब्लू,नेवी ब्लू,पिंक,रोज पिंक,रेड का उपयोग लाभदायी रहेगा |डार्क रेड से बचें |रंगीन वस्त्र,पोहा,चावल,सफेद दाल,स्वर्ण का यथाशक्ति दान लाभदायी रहेगा |
अंक ७-
जिन्जात्कों का जनम दिनाक ७,१६,२५ है उनका शुबंक सात रहेगा |राखी के दिन ग्रीन,व्हाईट,पीला व ऑरेंज शुभ रहेगा |इन्हें ग्रे व काले यानि दो रंगों को मिलकर बने रंगों से बचना चाहिए |दान के लिए हरी सब्जियां,सफेद उरद कि दाल,मुंग कि दाल,शहद,मिठाई का दान करना शुभ रहेगा |
अंक ८-
जिन जातकों का जन्म दिनांक ८,१४,२६ है उनका शुबंक आठ होगा |डार्क ग्रे,ब्लू,पर्पल,ब्लेक,डार्क ब्राउन कलर इनके लिए शुभ है | इन्हें रेड येलो,कलर से बचना चाहिए|काली उरद,सरसों,तेल,काला वस्त्र ,लोहे कि वस्तुयों का दान करना शुभ है |
अंक ९-
जिन जातको का जन्म दिनांक ९,१८,२७ है उनका शुभंक नो होगा |लाल,रोज कलर,पिंक.पर्पल,क्रीम सन कलर इनके लिए शुभफल देने वाला है |रक्षाबन्धन पर काले रंग से बचना चाहिय |दान के लिए गेंहू,मसूर कि दाल,लाल वस्त्र ,गुड घी,जैसे वस्तुए उतम  हैं |

मेधावी बनने के कुछ शास्त्रोक्त उपाय,,


  • शिशु जनम के पश्चात परिवार का प्रमुख या शिशु का पिता सोने कि सलाई अथवा सफेद दूब से बच्चे कि जीभ पर गोघृत तथा शहद से 'ओउम्'लिखे तो बच्चा आठ वर्ष कि आयु में अपूर्व मेधावी बालक बनकर ज्ञान,स्मरण शक्ति का धनी बन जाता है |पहले विद्वानों के कुल में यह प्रयोग खूब होता था |
  • किसी गुरु से ब्रह्मा द्वारा उपासना किये गए स्प्ताक्षर या द्राद्शाक्षर तारा मन्त्रों को सिद्ध कर 'शहद युक्त खीर 'से होम करने वाला साधक विद्यायों का निधि (खजाना)हो जाता है |मन्त्र गुरु से ही लेना श्रेस्कर है |
  • सफेद दूब कि कलम से गोरोचन से जिस बच्चे कि नाल भी न काटी गयी हो उसकी जीभ पर'ओम'मन्त्र लिखने पर बालक बहुत बुद्धिमान,ज्ञानी तथा विद्या का उपासक ,स्मरण शक्ति युक्त बन जाता है |
  • दुधिया बच(पंसारियों कि दूकान पर उपलब्ध )दस हजार मन्त्र जप से सिद्ध कर बालक के गले में बाँध देवे |जब बच्चा बारहवें वर्ष में प्रवेश करे तो उस बच को चूर्ण बनाकर गोदुग्ध से,गोघर्त व मधु मिश्रित कर पीवे तो बालक अपूर्व विद्वान व स्मरण शक्ति सम्पन्न हो जाता है |आयुर्वेद में बच से 'सारस्वत चूर्ण'बनाया जाता है |औषधि विक्रेताओं के पास उपलब्ध होता है |यह चूर्ण गाय का ६ माशे घी व १ टोला शहद मिलकर चाट कर रोज गाय का दूध पिने से यही लक्षण उत्पन्न हो जाते है |
  • मालकांगनी का तेल(आयुर्वेदिक औषधि विक्रेताओं के पास उपलब्ध हो जाता है)१ तोला,चन्द्र या सूर्य ग्रहण  के दिन पीकर पूर्व कि तरफ मुख कर गले तक पानी में डूब कर सरस्वती मन्त्र का जप करने से साधक विद्यायों का स्वामी बन जाता है |
  • रात में वस्त्रहीन होकर लज्जा और भय रहित होकर कृष्ण पक्ष कि च्तुर्द्र्शी तिथि को आठ वर्ष कि आयु के दो बालकों को अपने सामने बिठाकर उन दोनों के सिरों पर एक-एक हाथ रखते हुए परगो भव विद्यानां सीधी म्वाप्नुही कहें तो दोनों बालक वेदान्त तथा कानून के पंडित बनते हैं |
  • प्रात काल सोकर उठते ही मुख शुधि करने के पश्चात प्रतिदिन वागिशवरी मन्त्र के एक हजार मन्त्र जाप छ महीने तक करें तो अत्युत्क्रिष्ट वाक्शक्ति मिलती है |
  • ब्रह्मम्हूर्त में उठकर पवित्र हो, शांत भाव से स्वयम तथा इच्छित ज्ञान का ध्यान करें |रोज एक वर्ष इस पद्दति से जप करने पर प्राणी विद्यायों का स्वामी बन जाता है |
  • कदम्ब के फूल और बेल,फ्लाश पुष्प,घी और गंधावरत के पुष्पों कि आहुति घृत-मधु के साथ देने व सरस्वती मंत जाप से व्यक्ति वाणी का स्वामी हो जाता है |वह श्रुत्ध्र,कवि,मधुर-स्वर वाला गायक हो जाता है |
  • ब्राह्मी व दुधिया बच को मिलकर,पिस कर पिली-भूरी गाय का घी मिलाकर पिने से साधक सम्पूर्ण शास्त्रों का ज्ञाता बन जाता है |

संतान प्राप्ति के विभिन्न उपाय...


हमारे ऋषि महर्षियों ने हजारो साल पहले ही संतान प्राप्ति के कुछ नियम और सयम बताये है ,संसार की उत्पत्ति पालन और विनाश का क्रम पृथ्वी पर हमेशा से चलता रहा है,और आगे भी चलता रहेगा। इस क्रम के अन्दर पहले जड चेतन का जन्म होता है,फ़िर उसका पालन होता है और समयानुसार उसका विनास होता है।
मनुष्य जन्म के बाद उसके लिये चार पुरुषार्थ सामने आते है,पहले धर्म उसके बाद अर्थ फ़िर काम और अन्त में मोक्ष, धर्म का मतलब पूजा पाठ और अन्य धार्मिक क्रियाओं से पूरी तरह से नही पोतना चाहिये,धर्म का मतलब मर्यादा में चलने से होता है,माता को माता समझना पिता को पिता का आदर देना अन्य परिवार और समाज को यथा स्थिति आदर सत्कार और सबके प्रति आस्था रखना ही धर्म कहा गया है,अर्थ से अपने और परिवार के जीवन यापन और समाज में अपनी प्रतिष्ठा को कायम रखने का कारण माना जाता है,काम का मतलब अपने द्वारा आगे की संतति को पैदा करने के लिये स्त्री को पति और पुरुष को पत्नी की कामना करनी पडती है,पत्नी का कार्य धरती की तरह से है और पुरुष का कार्य हवा की तरह या आसमान की तरह से है,गर्भाधान भी स्त्री को ही करना पडता है,वह बात अलग है कि पादपों में अमर बेल या दूसरे हवा में पलने वाले पादपों की तरह से कोई पुरुष भी गर्भाधान करले। धरती पर समय पर बीज का रोपड किया जाता है,तो बीज की उत्पत्ति और उगने वाले पेड का विकास सुचारु रूप से होता रहता है,और समय आने पर उच्चतम फ़लों की प्राप्ति होती है,अगर वर्षा ऋतु वाले बीज को ग्रीष्म ऋतु में रोपड कर दिया जावे तो वह अपनी प्रकृति के अनुसार उसी प्रकार के मौसम और रख रखाव की आवश्यकता को चाहेगा,और नही मिल पाया तो वह सूख कर खत्म हो जायेगा,इसी प्रकार से प्रकृति के अनुसार पुरुष और स्त्री को गर्भाधान का कारण समझ लेना चाहिये। जिनका पालन करने से आप तो संतानवान होंगे ही आप की संतान भी आगे कभी दुखों का सामना नहीं करेगा…

कुछ राते ये भी है जिसमे हमें सम्भोग करने से बचना चाहिए .. जैसे अष्टमी, एकादशी, त्रयोदशी, चतुर्दशी, पूर्णिमा और अमवाश्या .चन्द्रावती ऋषि का कथन है कि लड़का-लड़की का जन्म गर्भाधान के समय स्त्री-पुरुष के दायां-बायां श्वास क्रिया, पिंगला-तूड़ा नाड़ी, सूर्यस्वर तथा चन्द्रस्वर की स्थिति पर निर्भर करता है।गर्भाधान के समय स्त्री का दाहिना श्वास चले तो पुत्री तथा बायां श्वास चले तो पुत्र होगा।

यदि आप पुत्र प्राप्त करना चाहते हैं और वह भी गुणवान, तो हम आपकी सुविधा के लिए हम यहाँ माहवारी के बाद की विभिन्न रात्रियों की महत्वपूर्ण जानकारी दे रहे हैं।

मासिक स्राव के बाद 4, 6, 8, 10, 12, 14 एवं 16वीं रात्रि के गर्भाधान से पुत्र तथा 5, 7, 9, 11, 13 एवं 15वीं रात्रि के गर्भाधान से कन्या जन्म लेती है।

१- चौथी रात्रि के गर्भ से पैदा पुत्र अल्पायु और दरिद्र होता है।

२- पाँचवीं रात्रि के गर्भ से जन्मी कन्या भविष्य में सिर्फ लड़की पैदा करेगी।

३- छठवीं रात्रि के गर्भ से मध्यम आयु वाला पुत्र जन्म लेगा।

४- सातवीं रात्रि के गर्भ से पैदा होने वाली कन्या बांझ होगी।

५- आठवीं रात्रि के गर्भ से पैदा पुत्र ऐश्वर्यशाली होता है।

६- नौवीं रात्रि के गर्भ से ऐश्वर्यशालिनी पुत्री पैदा होती है।

७- दसवीं रात्रि के गर्भ से चतुर पुत्र का जन्म होता है।

८- ग्यारहवीं रात्रि के गर्भ से चरित्रहीन पुत्री पैदा होती है।

९- बारहवीं रात्रि के गर्भ से पुरुषोत्तम पुत्र जन्म लेता है।

१०- तेरहवीं रात्रि के गर्म से वर्णसंकर पुत्री जन्म लेती है।

११- चौदहवीं रात्रि के गर्भ से उत्तम पुत्र का जन्म होता है।

१२- पंद्रहवीं रात्रि के गर्भ से सौभाग्यवती पुत्री पैदा होती है।

१३- सोलहवीं रात्रि के गर्भ से सर्वगुण संपन्न, पुत्र पैदा होता है।

सहवास से निवृत्त होते ही पत्नी को दाहिनी करवट से 10-15 मिनट लेटे रहना चाहिए, एमदम से नहीं उठना चाहिए।


संतान प्राप्ति के लिए करें यह उपायपति-पत्नी की यह प्रबल इच्छा होती है कि उनके यहां उत्तम संतान का जन्म हो क्योंकि बिना बच्चे को परिवार पूरा नहीं माना जाता। लेकिन कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जिनके यहां संतान का जन्म नहीं होता। इसके कई कारण हो सकते हैं। इस समस्या के निदान के लिए चिकित्सकीय मार्गदर्शन तो आवश्यक है ही लेकिन साथ ही यदि नीचे लिखा उपाय भी किया जाए तो संतान प्राप्ति की संभावना और भी अधिक हो जाती है।

उपाय

बुधवार के दिन सुबह जल्दी उठकर पति-पत्नी संयुक्त रूप से बाल गणेश की पूजा करें तथा अपने घर के मुख्य द्वार पर बाल गणपति की प्रतिमा लगाएं। आते-जाते इस प्रतिमा के समक्ष नमस्कार करें। प्रति बुधवार को गणेशजी का पूजन करने के बाद नीचे लिखे मंत्र का विधि-विधान से जप करें। इस मंत्र का जप करने से संतान प्राप्ति की इच्छा पूरी होती है।

मंत्र

संतान गणपतये नम: गर्भदोषहो नम: पुत्र पौत्राय नम:।

जप विधि


- प्रति बुधवार सुबह जल्दी उठकर सर्वप्रथम स्नान आदि नित्य कर्म से निवृत्त होकर साफ वस्त्र पहनें। 
- इसके बाद बाल गणेश की पूजा करें और उन्हें दुर्गा चढ़ाएं साथ ही लड्डूओं का भोग भी लगाएं। 
- इसके बाद पूर्व दिशा की ओर मुख करके कुश के आसन पर बैठें।
- तत्पश्चात हरे पन्ने की माला से ऊपर लिखे मंत्र का जप करें। मंत्र का प्रभाव आपको कुछ ही समय में दिखने लगेगा। 

पुत्र प्राप्ति का सरल मन्त्र 

आज भी कुछ परंपरावादी लोग यह मानते हैं कि वंश मात्र लड़कों से ही चलता है। जबकि पुत्रियां चारों दिशाओं में अपनी विजय पताका लहरा रही है। पुत्र प्राप्ति के लिए लोग कई प्रकार के तंत्र-मंत्र-यंत्र और टोटके अपनाते हैं जो गलत भी हो सकते हैं। यहां पेश है पुत्र प्राप्ति के लिए अत्यंत सरल उपाय। 

पुत्र की प्राप्ति के लिए रखें मंगलवार को व्रत 

हर दंपत्ति की कामना होती है कि उनको सुयोग्य संतान हो। लेकिन कुछ ऐसे लोग आज भी इस दुनिया में है जो मात्र पुत्र को ही संतान के रूप में चाहते हैं। ऐसे लोगों के लिए प्रस्तुत है अचूक उपाय। मंगलवार का उपवास रखने से मनचाही संतान की प्राप्ति होती है। मुख्यत: पुत्र की चाह रखने वालों के लिए यह मंगलवार व्रत होता है। मंगलवार व्रत कथा और विधि की संपूर्ण जानकारी पढ़ें। 

मंगलवार व्रत विधि 
यह व्रत शुक्ल पक्ष के प्रथम मंगलवार से रखा जाता है। इस व्रत को आठ मंगलवार अवश्य करें। इस व्रत में गेहूं और गुड़ से बना भोजन ही करना चाहिए। एक ही बार भोजन करें। लाल फूल चढ़ाएं और लाल वस्त्र ही धारण करें। अंत में हनुमान जी की पूजा करें।
मंगलवार व्रत कथा 
एक निसंतान ब्राह्मण दंपत्ति काफी दुःखी थे। ब्राह्मण एक दिन वन में पूजा करने गया। वह हनुमान जी से पुत्र की कामना करने लगा। घर पर उसकी स्त्री भी पुत्र प्राप्ति के लिए मंगलवार का व्रत करती थी। मंगलवार को व्रत के अंत में हनुमान जी को भोग लगाकर भोजन करती थी।


एक बार व्रत के दिन ब्राह्मणी ना भोजन बना पाई, और ना भोग ही लगा सकी। तब उसने प्रण किया कि अगले मंगल को ही भोग लगाकर अन्न ग्रहण करेगी। भूखी-प्यासी छः दिन तक रहने से अगले मंगलवार को वह बेहोश हो गई। 

हनुमान जी उसकी निष्ठा और लगन को देखकर प्रसन्न हो गए। उसे दर्शन देकर कहा कि वे उससे प्रसन्न हैं। उसे बालक देंगे, जो कि उसकी सेवा किया करेगा। हनुमान जी ने उस स्त्री को पुत्र रत्न दिया और अंतरध्यान हो गए। 

ब्राह्मणी अति प्रसन्न हो गई। उसने उस बालक का नाम मंगल रखा। जब ब्राह्मण घर आया, तो बालक को देख पूछा कि वह कौन है? पत्नी ने सारी कथा अपने स्वामी को बताई। पत्नी की बातों को छल पूर्ण जान ब्राह्मण को अपनी पत्नी के चरित्र पर संदेह हुआ। 

एक दिन मौका देख ब्राह्मण ने बालक को कुंए में गिरा दिया। घर पर पत्नी के पूछने पर ब्राह्मण घबराया। पीछे से मंगल मुस्कुराता हुआ आ गया। ब्राह्मण आश्चर्यचकित रह गया। 

रात को हनुमानजी ने उसे सपने में सारी कथा बताई, तो ब्राह्मण प्रसन्न हुआ। फ़िर वह दम्पति मंगल का व्रत रखकर आनंद का जीवन व्यतीत करने लगे। तब से यह व्रत पुत्र प्राप्ति के लिए रखा जाता है।



पुत्र प्राप्ति का अन्य मन्त्र 

अगर आप अपने वंश को आगे बढ़ाने के लिए पुत्रप्राप्ति को लेकर परेशान हैं तो अब आपको परेशान होने की जरुरत नहीं है, क्योकि आज हम आपको वह सरल उपाय बताने जा रहे है जिसके द्वारा आप को पुत्ररत्न की प्राप्ति हो सकती है|

तो आइये जाने क्या है पुत्रप्राप्ति का आसान मंत्र -

संतानप्राप्ती की इच्छा रखने वाली महिलाएं भगवान गजानन (गणेश जी) की मूर्ति के सामने प्रतिदिन स्नानादि करके एक माह तक बिल्ब फल चढ़ाकर इस मंत्र 'ॐ पार्वतीप्रियनंदनाय नम:' मंत्र की 11 माला प्रतिदिन जप करने से पुत्ररत्न की प्राप्ति होती है|



सावन में पाए शिव को...



हिन्दू धर्म की पौराणिक मान्यता के अनुसार सावन महीने को देवों के देव महादेव भगवान शंकर का महीना माना जाता है। इस संबंध में पौराणिक कथा है कि जब सनत कुमारों ने महादेव से उन्हें सावन महीना प्रिय होने का कारण पूछा तो महादेव भगवान शिव ने बताया कि जब देवी सती ने अपने पिता दक्ष के घर में योगशक्ति से शरीर त्याग किया था, उससे पहले देवी सती ने महादेव को हर जन्म में पति के रूप में पाने का प्रण किया।पुराणों में भगवान शिव की उपासना का उल्लेख बताया गया है। शिव की उपासना करते समय पंचाक्षरी मंत्र 'ॐ नम: शिवाय' और 'महामृत्युंजय' आदि मंत्र जप बहुत खास है। इन मंत्रों के जप-अनुष्ठान से सभी प्रकार के दुख, भय, रोग, मृत्युभय आदि दूर होकर मनुष्‍य को दीर्घायु की प्राप्ति होती है। देश-दुनिया भर में होने वाले उपद्रवों की शांति तथा अभीष्ट फल प्राप्ति को लेकर रूद्राभिषेक आदि यज्ञ-अनुष्ठान किए जाते हैं। इसमें शिवोपासना में पार्थिव पूजा का भी विशेष महत्व होने के साथ-साथ शिव की मानस पूजा का भी महत्व है। 
सावन के महीने में भगवान शंकर की विशेष रूप से पूजा की जाती है। इस दौरान पूजन की शुरूआत महादेव के अभिषेक के साथ की जाती है। अभिषेक में महादेव को जल, दूध, दही, घी, शक्कर, शहद, गंगाजल, गन्ना रस आदि से स्नान कराया जाता है। अभिषेक के बाद बेलपत्र, समीपत्र, दूब, कुशा, कमल, नीलकमल, ऑक मदार, जंवाफूल कनेर, राई फूल आदि से शिवजी को प्रसन्न किया जाता है। इसके साथ की भोग के रूप में धतूरा, भाँग और श्रीफल महादेव को चढ़ाया जाता है। एक पौराणिक कथा का उल्लेख है कि समुद्र मंथन के समय हलाहल विष निकलने के बाद जब महादेव इस विष का पान करते हैं तो वह मूर्च्छित हो जाते हैं। उनकी दशा देखकर सभी देवी-देवता भयभीत हो जाते हैं और उन्हें होश में लाने के लिए निकट में जो चीजें उपलब्ध होती हैं, उनसे महादेव को स्नान कराने लगते हैं। इसके बाद से ही जल से लेकर तमाम उन चीजों से महादेव का अभिषेक किया जाता है।
अगर आपके लिए हर रोज शिव आराधना करना संभव नहीं हो तो सोमवार के दिन आप शिव पूजन और व्रत करके शिव भक्ति को प्राप्त कर सकते हैं। और इसके लिए सावन माह तो अति उत्तम हैं। सावन मास के दौरान एक महीने तक आप भगवान शिव की विशेष पूजा-अर्चना कर साल भर की पूजा का फल प्राप्त सकते हैं। शिव को दूध-जल, बिल्व पत्र, बेल फल, धतूरे-गेंदे के फूल और जलेबी-इमरती का भोग लगाकर शिव की सफल आराधना कर सकते हैं।
भगवान शिव को भक्त प्रसन्न करने के लिए बेलपत्र और समीपत्र चढ़ाते हैं। इस संबंध में एक पौराणिक कथा के अनुसार जब 89 हजार ऋषियों ने महादेव को प्रसन्न करने की विधि परम पिता ब्रह्मा से पूछी तो ब्रह्मदेव ने बताया कि महादेव सौ कमल चढ़ाने से जितने प्रसन्न होते हैं, उतना ही एक नीलकमल चढ़ाने पर होते हैं। ऐसे ही एक हजार नीलकमल के बराबर एक बेलपत्र और एक हजार बेलपत्र चढ़ाने के फल के बराबर एक समीपत्र का महत्व होता है।
विष की उग्रता को कम करने के लिए अत्यंत ठंडी तासीर वाले हिमांशु अर्थात चन्द्रमा को धारण कर रखा है। और श्रावण मास आते-आते प्रचण्ड रश्मि-पुंज युक्त सूर्य ( वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़ में किरणें उग्र आतपयुक्त होती हैं।) को भी अपने आगोश में शीतलता प्रदान करने लगते हैं।
भगवान सूर्य और शिव की एकात्मकता का बहुत ही अच्छा निरूपण शिव पुराण की वायवीय संहिता में किया गया है।
 यथा-
'दिवाकरो महेशस्यमूर्तिर्दीप्त सुमण्डलः।
निर्गुणो गुणसंकीर्णस्तथैव गुणकेवलः।
अविकारात्मकष्चाद्य एकः सामान्यविक्रियः।
असाधारणकर्मा च सृष्टिस्थितिलयक्रमात्‌। एवं त्रिधा चतुर्द्धा च विभक्तः पंचधा पुनः।
चतुर्थावरणे षम्भोः पूजिताष्चनुगैः सह। शिवप्रियः शिवासक्तः शिवपादार्चने रतः।
सत्कृत्य शिवयोराज्ञां स मे दिषतु मंगलम्‌।'
अर्थात् भगवान सूर्य महेश्वर की मूर्ति हैं, उनका सुन्दर मण्डल दीप्तिमान है, वे निर्गुण होते हुए भी कल्याण मय गुणों से युक्त हैं, केवल सुणरूप हैं, निर्विकार, सबके आदि कारण और एकमात्र (अद्वितीय) हैं।
सावन के प्रधान देवता शिव हैं । उन्हें सर्वाधिक प्रसन्न करने का सर्वोत्तम उपाय गंगाजल से जलाभिषेक है । सावन के सोमवार को शिव अर्चना का विशेष महत्व होता है । सावन में किस प्रकार शिव की आराधना विशेष फलादयी हो जाती है, सावन शिव को अत्यंत प्रिय क्यों है, धर्मग्रंथों में इसकी प्रसंगवश व्याख्या की गई है
सावन के महीने में शिवजी को रोजाना बिल्व पत्र चढ़ाए। बिल्व पत्र की संख्या 108 हो तो सबसे अच्छा परिणाम मिलता है।
शिवजी का पूजन कर निर्माल्य का तिलक लगाए तो भी जल्दी विवाह के योग बनते हैं।
हर सोमवार खासतौर पर सावन माह के सोमवार को शिवलिंग का जल या पंचामृत से अभिषेक करें।


प्रात: काल स्नान कर घर में या शिव मंदिर में शिवलिंग को शुद्ध जल से स्नान कराएं।



शिवलिंग पर दूध मिले जल की धारा अर्पित करें। इस दौरान शिव का पंचाक्षरी मंत्र ॐ नम: शिवाय का स्मरण करते रहें। फिर से पवित्र जल से स्नान कराकर शिव की पूजा गंध, अक्षत, बिल्वपत्र अर्पित करें। इन सामग्रियों के अलावा वाहन सुख की कामना पूरी करने के लिए विशेष रूप से भगवान शिव को चमेली के सुगंधित, स्वच्छ पुष्प से अर्चन व तेल का लेपन नीचे लिखें सरल मंत्रों से अर्पित करें
-ॐ हराय नम:



-ॐ महेश्वराय नम:

-ॐ शम्भवे नम:

-ॐ शूलपाणये नम:

-ॐ पशुपतये नम:

-चमेली के फूल व तेल अर्पितकर शिव जी को यथाशक्ति दूध से बने मीठे पकवानों का भोग लगाएं। आखिर में शिवलिंग की घी के दीप और कर्पूर आरती कर मनोकामना पूरी होने की प्रार्थना करें। धार्मिक मान्यताओं में ऐसी शिव पूजा बिना संशय के सर्व सुख, कीर्ति, प्रसिद्धि, सामाजिक प्रतिष्ठा व मनचाहा वाहन सुख प्रदान करती है।

मेष-रिश्तों में समझ की कमी के कारण रिश्ते टूटने की स्थिति बन सकती है।

क्या करें-सात अशोक वृक्ष के पत्ते घर के मंदिर में रखें।
क्या न करें-यात्रा से बचें।

वृष-परिवार व मित्रों का विरोध झेलना पढ़ सकता है इसका कारण आपका स्वाभाव है।

क्या करें-धनदा यंत्र घर में स्थापित कर दर्शन करें तो आशातीत लाभ होगा।

क्या न करें-दूसरे के विवाद से बचें।

मिथुन-मानसिक तनाव से बचना ज़रूरी है। परिवार की आवश्यकताओं पर ध्यान दें।

क्या करें-हरे रंग का रुमाल अपने पास रखें।

क्या न करें-कुछ समय के लिए मित्रों से दूरी बनाएं।

कर्क-पार्टनर से झगड़ा संभावित है। व्यहार सौम्य रखें, विवाद से बचने का प्रयास करें।

क्या करें-शिवयंत्र को घर के पूजन स्थल पर स्थापित कर पूजन करें।

क्या न करें-किसी के गलत कार्य में सहयोग न करें।

सिंह-आपको परिवार में सज्जनों के संम्पर्क में आने के अवसर प्राप्त होगें।

क्या करें-ॐ नम: शिवाय का एक रुद्राक्ष माला जप करें।

क्या न करें-कठोर वचन न बोलें।

कन्या-कोई अप्रिय सूचना आपको मानसिक अस्थिरता दे सकता है।

क्या करें-आज दोपहर दही-भात का भोग लगाकर ग्रहण करें।

क्या न करें-ब्रह्मण का अनादर न करें।

तुला-कहीं दूर या विदेश में रह रहा आपका कोई मित्र मददगार सिद्ध हो सकता है।

क्या करें-चांदी का चंद्र यंत्र तथा मंगल यंत्र बनवाकर घर के मंदिर में स्थापित करें।

क्या न करें-व्यर्थ की यात्रा को टालें।

वृश्चिक-साथी के साथ भ्रमण के लिए जा सकते हैं।

क्या करें-कन्याओं को हरे रंग के वस्त्र उपहार में भेंट करें।

क्या न करें-किसी का उपहास न करें।

धनु-कोर्ट कचहरी के मामलों से दूर रहना हितकारी रहेगा।

क्या करें-ॐ हिरण्यगर्भाय अव्यक्त रूपिणो नम: का मोती की माला से जाप करें।

क्या न करें-किसी का दिल न दुखाएं।

मकर-आपकी बच्चों से जुड़ी लालसा भी पूरी हो सकती है।

क्या करें-भगवान विष्णु की पूजा करें।

क्या न करें-निवेश न करें।

कुम्भ-अधिक समय परिवार को देने का प्रयास करें।

क्या करें-हनुमानजी को चोला चढ़ाएं।

क्या न करें-तनाव ना लें।

मीन-परिवार के साथ काम करने की आपकी लालसा पूर्ण होगी।

क्या करें-श्री सूक्त का पाठ करें।

क्या न करें-भाग दौड़ अधिक ना करें।

कालसर्पदोष के निवारण के लिये नाग पंचमी के दिन शिव की पूजा कर चांदी के नाग का जोड़ा चढ़ाएं और एक जोड़ा चांदी का सर्प बहते जल में बहाएं।
कालसर्प योग हो और जीवन में लगातार गंभीर बाधा आ रही हो तब किसी विद्वान ब्राह्मण से राहु और केतु के मंत्रों का जप कराया जाना चाहिए और उनकी सलाह से राहु और केतु की वस्तुओं का दान या तुलादान करना चाहिए।
सावन में हर राशि का व्यक्ति शिव पूजन से पहले काले तिल जल में मिलाकर स्नान करे। शिव पूजा में कनेर, मौलसिरी और बेलपत्र जरुर चढ़ावें। इसके अलावा जानते हैं कि किस राशि के व्यक्ति को किस पूजा सामग्री से शिव पूजा अधिक शुभ फल देती है
मेष – इस राशि के व्यक्ति जल में गुड़ मिलाकर शिव का अभिषेक करें। शक्कर या गुड़ की मीठी रोटी बनाकर शिव को भोग लगाएं। लाल चंदन व कनेर के फूल चढ़ावें।

वृष- इस राशि के लोगों के लिए दही से शिव का अभिषेक शुभ फल देता है। इसके अलावा चावल, सफेद चंदन, सफेद फूल और अक्षत यानि चावल चढ़ावें।

मिथुन – इस राशि का व्यक्ति गन्ने के रस से शिव अभिषेक करे। अन्य पूजा सामग्री में मूंग, दूर्वा और कुशा भी अर्पित करें।

कर्क – इस राशि के शिवभक्त घी से भगवान शिव का अभिषेक करें। साथ ही कच्चा दूध, सफेद आंकड़े का फूल और शंखपुष्पी भी चढ़ावें।

सिंह – सिंह राशि के व्यक्ति गुड़ के जल से शिव अभिषेक करें। वह गुड़ और चावल से बनी खीर का भोग शिव को लगाएं। गेहूं और मंदार के फूल भी चढ़ाएं।

कन्या – इस राशि के व्यक्ति गन्ने के रस से शिवलिंग का अभिषेक करें। शिव को भांग, दुर्वा व पान चढ़ाएं।

तुला – इस राशि के जातक इत्र या सुगंधित तेल से शिव का अभिषेक करें और दही, शहद और श्रीखंड का प्रसाद चढ़ाएं। सफेद फूल भी पूजा में शिव को अर्पित करें।

वृश्चिक – पंचामृत से शिव का अभिषेक वृश्चिक राशि के जातकों के लिए शीघ्र फल देने वाला माना जाता है। साथ ही लाल फूल भी शिव को जरुर चढ़ाएं।

धनु – इस राशि के जातक दूध में हल्दी मिलाकर शिव का अभिषेक करे। भगवान को चने के आटे और मिश्री से मिठाई तैयार कर भोग लगाएं। पीले या गेंदे के फूल पूजा में अर्पित करें।

मकर – नारियल के पानी से शिव का अभिषेक मकर राशि के जातकों को विशेष फल देता है। साथ ही उड़द की दाल से तैयार मिष्ठान्न का भगवान को भोग लगाएं। नीले कमल का फूल भी भगवान का चढ़ाएं।

कुंभ – इस राशि के व्यक्ति को तिल के तेल से अभिषेक करना चाहिए। उड़द से बनी मिठाई का भोग लगाएं और शमी के फूल से पूजा में अर्पित करें। यह शनि पीड़ा को भी कम करता है।

मीन – इस राशि के जातक दूध में केशर मिलाकर शिव पर चढ़ाएं। भात और दही मिलाकर भोग लगाएं। पीली सरसों और नागकेसर से शिव का चढ़ाएं।