संकट चौथ(गणेश चौथ)की कथा...

यह व्रत माघ कृषण पक्ष चौथ को किया जाता है|इसी दिन विद्या,बुद्धि ,गणेश तथा चंद्रमा की पूजा की जाती है|दिन भर व्रत रहने के बाद शाम को चन्द्रदर्शन होने पर दूध का अधर्य देकर चंद्रमा की विधिवत पूजा की जाती है|
कथा :-

एक बुदिया का लड़का सवेरे गायें चराने जंगल जाता था और शाम को लोटता था|सारे दिन की मेहनत के बाद आठ पैसे रोज के मिलते|लेकिन बुदिया चौथ माता का व्रत बराबर करती थी और व्रत के दिन पांच लड्डू बनाती थी दो चौथे के ,दो विनायक के,और एक अपना|इस तरह नियम पालन से वह मोटी होती जा रही थी|बेटे के दिमाग में आया के मैं सारा दिन मेहनत करता हूँ और यह मोटी होती जा रही है|
एक दिन संकट चौथ के दिन लड़का काम पे नही गया और माँ को देखता रहा की वो घी ले के आई और लडू बनाये और भोग लगाया|लड़का सब देखता रहा|
दुसरे दिन बुदिया को बोला-माँ!मैं कमाने जाऊंगा|यहाँ थोड़ी कमाई कम है |बुदिया के मना करने पर भी वो नही माना तो माँ ने जाते समय कुछ अनाज के दाने और एक पानी की कलशी दी|इनसे वो रोज़ कथा सुना करती थी|
सवेरे सवेरे वह चल पड़ा और चलते-चलते रास्ते में एक नदी आई|बरसात का मौसम था|नदी पार का कोई रास्ता नही था|बेटे को अपनी माँ की कही बात याद आई के संकट में माँ को याद करना|तो उसने चौथ माँ से विनती की जय चौथ माता!मेरी माँ मेरे लिए तेरा व्रत करती थी तो,बहता पानी कम हो जाये और पार जाने का रास्ता मिल जाये|इस तरह कलश का पानी लेकर छींटे दिए लडके को रास्ता मिल गया और लड़का पार कर गया|
आगे जंगल में पहुंचा तो शेर मिल गया लडके ने फिर से प्राथना की हे माता!अगर माँ ने तुम्हारा व्रत किया है तो यह शेर गाय बन जाये|लडके ने छींटे दिए तो वो गाय बन गया|
गाँव में पहुंचते ही लड़का एक बुदिया के घर गया और रहने की जगह मांगी |बुदिया ने हाँ कर दी|रात को लडके ने देखा की बुदिया माल्पुड़े बनाती जा रही है और रोती जा रही है,लडके ने पुछा क्या बात है?बुदिया ने बताया यहाँ राजा को छठे माह एक पकवान पकता है और हर बार एक आदमी की बली दी जाती है|आज मेरे सातवें लडके की बारी है|
लडके ने कहा कल तेरे लडके की जगह मैं चला जाऊंगा तो बुदिया बोली दुसरे के बदले कोन जाता है|लडके ने कहा की
ला मालपुए मुझे खिला|बुढिया ने खिला दिया लड़का खा कर सो गया|
सुबह होते ही राजे का सिपाही आया और लड़का उठ गया|लडके ने जाते वकत अपनी लाठी और कम्बल बुढ़िया को दिया और कहा की वापिस आ कर ले जाऊंगा|लड़का चला गया|जगह पर जाते ही लडके ने देवताओं को याद किया और अनाज के दाने निकलकर पानी की घन्टी ली और चौथ विनायक को याद करके अपने चारों तरफ देख और एक चोकी पर बैठ गया|कजावा चीन कर आग लगा दी गयी|तीसरे दिन कुछ कुम्हारों के लडके खेलते हुए उधर से निकले|उनके हाथ से एक पत्थर का टुकड़ा उछालकर कजवे पर जा पड़ा|पत्थर पड़ते ही उसमे से आवाज़ आई|
बात सारे गाँव में फैल गयी|लोगों ने अचंबा किया|कजावा खोला गया|कांसे-पीतल के बर्तन निकले,भीतर से आवाज़ आई धीरे खोलना अन्दर आदमी भी है|आखिर कजावा खोला गया|लड़का चौकी पर हँसता बैठा मिला|चौकी के चरों और जुहारे उगे हुए थे|
राजे के पास लडके को लाया गया|राजा ने सारा किस्सा सुना लडके ने बताया की मेरी माँ चौथ की कथा करती थी,और उसने ही आते वक्त मेरी रक्षा के लिए यह अनाज और पानी का कलश दिया था|राजा ने भाग्यवान लड़का देख कर अपनी लडकी का विवाह उस से कर दिया|और चौथ का व्रत करने का ढिंढोरा पिटवा दिया|कई दिन बीत गये राजा की बेटों की बहुओं ने ननद को ताना मारा की बाई जो पेट से निकले,हांडी से नही|राजकुमारी ने अपने पति से -माय जहाँ मायका और सास जहाँ ससुराल|लड़का यह बात समझ गया और उसने राजा और रानी से इसकी आज्ञा मांगी और अपनी गाँव की और अपनी पत्नी को लेकर चल पड़ा|
गाँव के पास पहुंचते ही देखने वालों ने बुदिया को खुशखबरी दी|बुढ़िया को विशवास नही हुआ उसने उपलों के ढेर पर चढ़ कर देखा|बेटा बहू आते दिखाई दिए|बुढ़िया ने चौथ विनायक को बार बार नमस्कार किया|और बेटे बहु ने आकर बुढ़िया के पैर छुए|घर में आनंद छा गया|गाँव में चौथ के व्रत का ढिंढोरा पिटवाया|सब लोक यह व्रत रखें और कहानी सुने|यह व्रत अगर बारह नही तो चार रखो|चार नही तो दो रख लें|

What is Meditation...


Meditation is not following any system;it is not constant repetition and imitation. Meditation is not concentration. It is one of the favourite gambits of some teachers of meditation to insist on their pupils learning concentration that is, fixing the mind on one thought and driving out all other thought. This is a most stupid,ugly thing, which any schoolboy can do because he is forced to. It means that all the time you are having a battle between the insistence that you must concentrate on the one hand and your mind on the other which wanders away to all sorts of other things, whereas you should be attentive to every movement of the mind wherever it wanders. When your mind wanders off it means you are interested in something else.

Meditation demands an astonishingly alert mind', mediation is the understanding of the totality of life in which every form of fragmentation has ceased .Meditation is not control of thought,for when thought is controlled it breeds conflict in the mind,but when you understand the structure and origin of thought which we have already been into,then thought will not interfere.That very understanding of the structure of thinking is its own discipline which is meditation.

Meditation is to be aware of every thought and of every feeling, never to say it is right or wrong but just to watch it and move with it.In that watching you begin to understand the whole movement of thought and feeling. And out of this awareness comes silence.Silence put together by thought is stagnation, is dead ,but the silence that comes when thought has understood its own beginning,the nature of itself, understood how all thought is never free but always old-this silence is meditation in which the meditator is entirely absent,for the mind has emptied itself of the past.

छठ पूजा के लाभ ही लाभ...



सूर्य पूजन की परम्परा अति प्राचीन है|'निरोगी काया,दुधारू गायां और घर में माया'के ध्येय से सूर्य की पूजा की जाती है|लोक गीतों में सूर्य को लेकर जो मान्यताएं हैं,उनमें सात घोड़ों के सवार को प्रात:होते ही रोजगार बांटने वाला,पूर्वाह में भोजन देने वाला,अपराह में विश्राम देने वाला कहा गया है|सूर्यपुराण में कहा गया है की अंशुमाली सूर्य भगवान ज्योतिर्मय,वरेण्य,वरदायी,अनंत,अजय,हैं,इसलिए वे प्रणम्य हैं:

नमो नमो वरेण्याय वरदायान्शुमालिने |
ज्योतिर्मय नमस्तुभ्यं अनंतायाजितय ते ||

सूर्य के कई व्रत हैं|वारव्रत के रूप में सुर्यनाक्त व्रत (वीरवार को व्रत),वर्ष व्रत के रूप में सूर्य पूजा प्रशंसा व्रत,यात्रा पर्व के रूप में सूर्य रथयात्रा पर्व ,तिथि व्रत के रूप में सूर्यष्ठी जैसे व्रतों का उलेख पुराणों में मिलता है|इस क्रम में डाला छठ को समस्त मनोकामनाएं पूरी करने वाला व्रत कहा गया है|

व्रत विधान:

सूर्य वह विशवात्मा देवता है जो प्रत्यक्षत: ज्योतिर्मय है|उनकी नियमित पूजा का विधान है|पुरावशेष सिद्ध करते हैं की सभ्यता के आरंभिक काल से ही लोक समुदाय ने सूर्य पूजन का महत्त्व जान लिया था|वैदिक और उपनिषद काल से इनके अनेक प्रमाण मिलतें हैं|

डाला छठ केवल महिलाएं करती हैं,बल्कि बड़ी संख्या में पुरुष भी करते हैं|यह चार दिवसीय पर्व है जिसमे चतुर्थी से व्रत की तेयारियों और संकल्प से लेकर पंचमी को एक समय भोजन और दुर्वचनों का त्याग,जागरण ,षष्ठी को निराहार रहकर अस्त होते हुए और सप्तमी को उदय होते हुए सूर्य को फलों सहित अधर्य देने की परम्परा है :

सूर्य को यह सारे फल बांस की टोकरी में रखकर दिए जाते हैं,इसलिए यह पर्व संभवत:डाला छठ कहा जाता है|

पूर्वांचल की परम्परा:

लोकांचल में सूर्य पूजन से जुड़े पर्वों में डाला छठ का बड़ा महत्त्व है|यह पर्व मूलत: बिहार-भोजपुर क्षेत्र का है,किन्तु वहां के लोगो के देश भर में बसे होने से अब यह पर्व हर जगह मनाया जाता है|जहाँ कहीं भी नदी या सागर का तट होता है,वहां गंगा के भाव को रखकर छठी माता का मिटटी से स्थानक बनाया जाता है और सूर्यास्त के समय उसका पूजन किया जाता है|इसी समय आंकठ पानी में खड़े हो कर ईख से तेयार किये वितान की ओट में डूबते हुए सूर्य को फलों का अधर्य दिया जाता है|वहां घी,अगरु,चन्दन आदि कई प्रकार की धूप दी जाती है|घी में तेयार अच्छे पकवानों का नेवेघ चदाया जाता है और सूर्य की अर्चना की जाती है|

सूर्य आराधना से लाभ:

सूर्य की अर्चना से आराधक को कई लाभ मिलते हैं|नेत्र और चर्मरोग से पीड़ित अनेक लोग सूर्य के पूजन से लाभान्वित हुए हैं|सूर्य के अनेक स्तोत्रों में विभिन व्याधियों के निवारण के लिए प्राथनाएं प्राप्त होती हैं|चाक्षुषोपनिषद से नेत्रज्योति सहित चाक्षुष रोगों का निवारण होता है|

भैया दूज की पूजा विधि

भारतीय सामाजिक संरचना में सहयोग और त्याग को विशेष महत्व दिया गया है. पारिवारिक परिवेश का व्रहद रूप सामाजिक मान्यताओं का विकास है अत: संबंधों के प्रति दायित्व भावना का निरूपण हर जगह दिखाई देता है. भाई-बहन के संबंधों पर हमारे समाज नियोजकों ने अनेक व्यवस्थाओं का निर्धारण किया है उनमे भैया दूज भी एक ऐसी ही वयवस्था है जो दोनों के मध्य त्यागमय, स्नेहमय और सहयोगमय संबंधों को प्रतिपादित करती है. दिवाली को पंचांग पर्व भी कहा जाता है. भैया दूज भी उसका ही एक अंग है. लोक परम्पराओं में इसके अलग अलग रूप दिखाई देते हैं लेकिन आशय यही है की भाई बहिन में आत्मिक एवं सहयोगात्मक सम्बन्ध आजीवन बना रहे.

आज के दिन बहिन भाई को अपने हाथ का बना भोजन कराती है और भाई बहिन को उपहार देता है.यदि बहन विओवाहित है तो भाई बहन क घर जाता है और उसे मिष्ठान,वस्त्र या अन्य उपहार देता है.विवाहित बहन घर आये भाई को असं पर बिठाती है और रोली का तिलक लगाकर आरती पर बैठाती है और रोली का तिलक लगाकर आरती उतारती है.भाई बहन को उपहार देता है,इसके पशचात बहन भाई को भोजन करती है.

पूजा विधि:

भाई दूज के दो पक्ष होते हैं,एक बहन को उपहार देना और दूसरा पूजा-अर्चना करना.यह पूजा परिवार में सामूहिक रूप से होती होती है.बहनें भाई की दीर्घ आयु के लिए व्रत रखती हैं,व्रती बहन प्रात: सूर्योदय से पूर्व नित्य क्रियाओं पर स्नान आदि से निवृत होकर पूजा स्थल पर अष्टदल कमल पर गणेश जी की मूर्ती स्थापित करती हैं.साथ ही यम,यमुना.चित्रगुप्त और युम्दुतों के प्रतीकात्मक विग्रह आटे से बनाकर पूजा स्थल पर रखती है,प्रत्येक पार्टिक का सिंगार रोली और पुष्प से किया जाता है,पूजा के समय पूरा परिवार भाग लेता है,लेकिन पूजा स्थल की व्यवस्था बहनें करती हैं,सबसे पहले गणेश जी की पूजा की जाती है,उसके पश्चात यमराज जी की प्राथना की जाती है.

दान का महत्व:

भार्त्रिये संस्कृति में प्रत्येक धार्मिक अनुष्ठान के साथ दान का विशेष महत्व है.दान में केवल मानव ही नही पशु पक्षी भी समिमलित होतें हैं,भाई दूज के दिन किसी निर्धन या विद्वान ब्रह्मिन को भोजन करना चाहिए.साथ ही गाय,कुत्ता व पक्षियों को भिओ यथायोग्य भोजन दिया जाये.परिवार के सभी लोग सूर्य को जल दें.जो बहनें व्रत रखती हैं,वह दोपहर बाद भोजन कर सकती हैं.लेकिन जब तक भाई की आरती कर लें.भाई को चाहिए जी वो सामर्थ्य के अनुसार अपनी बहन को उपहार अवश्य दे.और यदि बहन किसी संकट में है तो उसे दूर करने का प्रयास करे.

कैसे स्थिर होगी महालक्ष्मी ...

जो आस्तिकजन लक्ष्मी की स्थिरता चाहते हैं उन्हें सायंकाल :१९ से ०८:१७ के बीच लक्ष्मी का स्थिर लग्न में पूजन करना चाहिए|पूजन में आंवला,साल की धानी व् ईख विशेष रूप से होना चाहिए|लक्ष्मी के पार्टिक चांदी के सिक्कों का पूजन कर हल्दी,कंकू चदा चित्र के दाहिनी और लाल या पीले वस्त्र में स्वास्तिक बना चांदी के सिक्कों को रखें|तथा पूजनोपरांत उन्हें उन्ही वस्त्र में लपेटकर अपनी अलमारी में रखें|लक्ष्मी की स्थिरता बनेगी तथा लम्बे समय तक उसका उपभोग कर सकेंगे|
धन की स्थिरता:-
यदि सचित राशी शीघ्र ही अन्य मदों में खर्च हो जाती है तो उसे आस्तिकजन इस दिन सायंकाल ०७:११ से ०७:२४ के मध्य एक नोट की गड्डी में मोली लपेट मुलठी,आंवला व् कमल गट्टा साथ में ले लें,लाल वस्त्र में लपेटकर सेफ में रखें,लक्ष्मी की स्थिरता बनेगी|
व्यापर में लाभ:-
व्यापार विनिमय में सदैव आर्थिक परेशानी रहती हो,वे पूजन स्थल पर लक्ष्मी जी के चित्र के दाहिनी और रक्त कमल का पुष्प रखें तथा बाई बाजु में गोमती चक्र रखें|पूजा के बाद शुभ महूर्त में चांदी के सिक्कों के साथ लाल कपडे में मुलेट,ईख के खंड व् गोमती चक्र के साथ सेफ में स्थापित करें लाभ होगा|
ऐसे होगी प्रसन्न महालक्ष्मी :-
  • दीपावली के दिन किसी गरीब सुहागिन इस्त्री को सुहाग का सामान दान करें|
  • दीपावली के दिन नये झाड़ू पूजा से पहले उस से थोडा सफाई करें और उसे एक तरफ रख दें|अन्य दिन उसका प्रयोग करें इस दरिद्र दूर होगी घर में लक्ष्मी का आगमन होगा|
  • मध्यरात्रि में लक्ष्मी जी के मन्त्रों का जाप करने से महालक्ष्मी की प्रसंता से धन की प्राप्ति होती है|
  • आर्थिक स्थिति में उनती के लिए दीपावली की रात सिंह लगन में श्रीसूक्त का पाठ करें|
  • दक्षिणावर्ती शंख,मोती शंख,कुबेर पात्र,गोमती चक्र घर में रखें|लक्ष्मी जी की कृपा पात्र होगी|

कैसे करें धनवंतरि की पूजा...


कैसे करें धनवंतरि की पूजा

पूजन सामग्री-
गंध, अबीर, गुलाल पुष्प, रोली, नैवेद्य के लिए चांदी का पात्र, प्रसाद के लिए खीरए पान, लौंग, सुपारी, वस्त्र (मौली) शंखपुष्पी, तुलसी, ब्राह्मी आदि पूजनीय औषधियां।
पूजन विधि
धनतेरस के दिन भगवान धनवंतरि की पूजा इस तरह करें। सबसे पहले नहाकर साफ कपड़े पहनें। भगवान धनवंतरि की मूर्ति या चित्र साफ स्थान पर स्थापित करें तथा पूर्व की ओर मुखकर बैठ जाएं। उसके बाद भगवान धनवंतरि का आह्वान निम्न मंत्र से करें-

सत्यं च येन निरतं रोगं विधूतं,अन्वेषित च सविधिं आरोग्यमस्य।
गूढं निगूढं औषध्यरूपं, धनवंतरिं च सततं प्रणमामि नित्यं।।

इसके बाद पूजन स्थल पर आसन देने की भावना से चावल चढ़ाएं। इसके बाद आचमन के लिए जल छोड़े। भगवान धनवंतरि के चित्र पर गंध, अबीर, गुलाल पुष्प, रोली, आदि चढ़ाएं। चांदी के पात्र में खीर का नैवेद्य लगाएं। (अगर चांदी का पात्र उपलब्ध न हो तो अन्य पात्र में भी नैवेद्य लगा सकते हैं।) पुन: आचमन के लिए जल छोड़े। मुख शुद्धि के लिए पान, लौंग, सुपारी चढ़ाएं। भगवान धन्वन्तरि को वस्त्र (मौली) अर्पण करें। शंखपुष्पी, तुलसी, ब्राह्मी आदि पूजनीय औषधियां भी भगवान धन्वन्तरि को अर्पित करें। रोगनाश की कामना के लिए इस मंत्र का जाप करें-

ऊँ रं रूद्र रोगनाशाय धन्वन्तर्ये फट्।।

इसके बाद भगवान धनवंतरि को श्रीफल व दक्षिणा चढ़ाएं। पूजन के अंत में कर्पूर आरती करें।

क्यों खरीदे जाते हैं बर्तन

धनतेरस पर बर्तन खरीदने का महत्व है। ऐसा माना जाता है कि समुद्र मंथन के समय धनवंतरि हाथ में अमृत का कलश लेकर निकले थे। इस कलश के लिए देवताओं और दानवों में भारी युद्ध भी हुआ था। इस कलश में अमृत था और इसी से देवताओं को अमरत्व प्राप्त हुआ। तभी से धनतेरस पर प्रतीक स्वरूप बर्तन खरीदने की परंपरा है। इस बर्तन की भी पूजा की जाती है और खुद व परिवार की बेहतर सेहत के लिए प्रार्थना की जाती है।


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धनतेरस के शुभ मुहूर्त

पाँच दिवसीय दीपावली पर्व का आरंभ धन त्रयोदशी से होता है। इस दिन सायंकाल घर के मुख्य द्वार पर यमराज के निमित्त एक अन्न से भरे पात्र में दक्षिण मुख करके दीपक रखने एवं उसका पूजन करके प्रज्वलित करने एवं यमराज से प्रार्थना करने पर असामयिक मृत्यु से बचा जा सकता है। धनतेरस के दिन भगवान धन्वंतरि का जन्म हुआ था। समुद्र मंथन के समय इसी दिन धन्वंतरि सभी रोगों के लिए औषधि कलश में लेकर प्रकट हुए थे।

अतः इस दिन भगवान धन्वंतरि का पूजन श्रद्धापूर्वक करना चाहिए, जिससे दीर्घ जीवन एवं आरोग्य की प्राप्ति होती है। धनतेरस के दिन अपनी शक्ति अनुसार बर्तन क्रय करके घर लाना चाहिए एवं उसका पूजन करके प्रथम उपयोग भगवान के लिए करने से धन-धान्य की कमी वर्ष पर्यन्त नहीं रहती है।

भगवान धन्वंतरि पूजन इस बार 3 नवंबर 2010, बुधवार को प्रदोष व्यापिनी त्रयोदशी है जो 4.57 मिनट से लगेगी। इस समय प्रदोष काल 5.41 से 8.27 तक रहेगा। शाम 5.42 से 7.11 तक लाभ का चौघड़‍िया रहेगा फिर अमृत 7.11 से 8.40 तक रहेगा। जो प्रदोषकाल में आता है अतः इस समयावधि में गादी बिछाने एवं भगवान धन्वंतरि का पूजन करना श्रेष्ठ है।

धन्वंतरि देवताओं के वैद्य और चिकित्सा के देवता माने जाते हैं इसलिए चिकित्सकों के लिए धनतेरस का दिन बहुत ही महत्वपूर्ण होता है। धनतेरस के संदर्भ में एक लोककथा प्रचलित है कि एक बार यमराज ने यमदूतों से पूछा कि प्राणियों को मृत्यु की गोद में सुलाते समय तुम्हारे मन में कभी दया का भाव नहीं आता क्या?

दूतों ने यमदेवता के भय से पहले तो कहा कि वह अपना कर्तव्य निभाते है और उनकी आज्ञा का पालन करते हें। परंतु जब यमदेवता ने दूतों के मन का भय दूर कर दिया तो उन्होंने कहा कि एक बार राजा हेम के पुत्र का प्राण लेते समय उसकी नवविवाहिता पत्नी का विलाप सुनकर हमारा हृदय भी पसीज गया लेकिन विधि के विधान के अनुसार हम चाह कर भी कुछ न कर सके।

धनतेरस के दिन चाँदी खरीदने की भी प्रथा है, इसके पीछे यह कारण माना जाता है कि यह चन्द्रमा का प्रतीक है जो शीतलता प्रदान करता है और मन में संतोष रूपी धन का वास होता है। संतोष को सबसे बडा़ धन कहा गया है। जिसके पास संतोष है वह स्वस्थ, सुखी है और वही सबसे बड़ा धनवान है। भगवान धन्वंतरि जो चिकित्सा के देवता भी हैं और उनसे धन व सेहत की कामना जब करें तो याद रखें संतोष ही धन है और संतोष से ही सेहत बनती है।


दीपावली पूजन विधि


कार्तिक मास की अमावस्या का दिन दीपावली के रूप में पूरे देश में बडी धूम-धाम से मनाया जाता हैं। इसे रोशनी का पर्व भी कहा जाता है।

कहा जाता है कि कार्तिक अमावस्या को भगवान रामचन्द्र जी चौदह वर्ष का बनवास पूरा कर अयोध्या लौटे थे। अयोध्या वासियों ने श्री रामचन्द्र के लौटने की खुशी में दीप जलाकर खुशियाँ मनायी थीं, इसी याद में आज तक दीपावली पर दीपक जलाए जाते हैं और कहते हैं कि इसी दिन महाराजा विक्रमादित्य का राजतिलक भी हुआ था। आज के दिन व्यापारी अपने बही खाते बदलते है तथा लाभ हानि का ब्यौरा तैयार करते हैं। दीपावली पर जुआ खेलने की भी प्रथा हैं। इसका प्रधान लक्ष्य वर्ष भर में भाग्य की परीक्षा करना है। लोग जुआ खेलकर यह पता लगाते हैं कि उनका पूरा साल कैसा रहेगा।

पूजन विधानः दीपावली पर माँ लक्ष्मी व गणेश के साथ सरस्वती मैया की भी पूजा की जाती है। भारत मे दीपावली परम्प रम्पराओं का त्यौंहार है। पूरी परम्परा व श्रद्धा के साथ दीपावली का पूजन किया जाता है। इस दिन लक्ष्मी पूजन में माँ लक्ष्मी की प्रतिमा या चित्र की पूजा की जाती है। इसी तरह लक्ष्मी जी का पाना भी बाजार में मिलता है जिसकी परम्परागत पूजा की जानी अनिवार्य है। गणेश पूजन के बिना कोई भी पूजन अधूरा होता है इसलिए लक्ष्मी के साथ गणेश पूजन भी किया जाता है। सरस्वती की पूजा का कारण यह है कि धन व सिद्धि के साथ ज्ञान भी पूजनीय है इसलिए ज्ञान की पूजा के लिए माँ सरस्वती की पूजा की जाती है।

इस दिन धन व लक्ष्मी की पूजा के रूप में लोग लक्ष्मी पूजा में नोटों की गड्डी व चाँदी के सिक्के भी रखते हैं। इस दिन रंगोली सजाकर माँ लक्ष्मी को खुश किया जाता है। इस दिन धन के देवता कुबेर, इन्द्र देव तथा समस्त मनोरथों को पूरा करने वाले विष्णु भगवान की भी पूजा की जाती है। तथा रंगोली सफेद व लाल मिट्टी से बनाकर व रंग बिरंगे रंगों से सजाकर बनाई जाती है।

विधिः

दीपावली के दिन दीपकों की पूजा का विशेष महत्व हैं। इसके लिए दो थालों में दीपक रखें। छः चौमुखे दीपक दोनो थालों में रखें। छब्बीस छोटे दीपक भी दोनो थालों में सजायें। इन सब दीपको को प्रज्जवलित करके जल, रोली, खील बताशे, चावल, गुड, अबीर, गुलाल, धूप, आदि से पूजन करें और टीका लगावें। व्यापारी लोग दुकान की गद्दी पर गणेश लक्ष्मी की प्रतिमा रखकर पूजा करें। इसके बाद घर आकर पूजन करें। पहले पुरूष फिर स्त्रियाँ पूजन करें। स्त्रियाँ चावलों का बायना निकालकर कर उस रूपये रखकर अपनी सास के चरण स्पर्श करके उन्हें दे दें तथा आशीवार्द प्राप्त करें। पूजा करने के बाद दीपकों को घर में जगह-जगह पर रखें। एक चौमुखा, छः छोटे दीपक गणेश लक्ष्मीजी के पास रख दें। चौमुखा दीपक का काजल सब बडे बुढे बच्चे अपनी आँखो में डालें।

दीपावली पूजन कैसे करें

प्रातः स्नान करने के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें।

अब निम्न संकल्प से दिनभर उपवास रहें-

मम सर्वापच्छांतिपूर्वकदीर्घायुष्यबलपुष्टिनैरुज्यादि-

सकलशुभफल प्राप्त्यर्थं

गजतुरगरथराज्यैश्वर्यादिसकलसम्पदामुत्तरोत्तराभिवृद्ध्‌यर्थं

इंद्रकुबेरसहितश्रीलक्ष्मीपूजनं करिष्ये।

संध्या के समय पुनः स्नान करें।

लक्ष्मीजी के स्वागत की तैयारी में घर की सफाई करके दीवार को चूने अथवा गेरू से पोतकर लक्ष्मीजी का चित्र बनाएं। (लक्ष्मीजी का छायाचित्र भी लगाया जा सकता है।)

भोजन में स्वादिष्ट व्यंजन, कदली फल, पापड़ तथा अनेक प्रकार की मिठाइयाँ बनाएं।

लक्ष्मीजी के चित्र के सामने एक चौकी रखकर उस पर मौली बाँधें।

इस पर गणेशजी की मिट्टी की मूर्ति स्थापित करें।

फिर गणेशजी को तिलक कर पूजा करें।

अब चौकी पर छः चौमुखे व 26 छोटे दीपक रखें।

इनमें तेल-बत्ती डालकर जलाएं।

फिर जल, मौली, चावल, फल, गुढ़, अबीर, गुलाल, धूप आदि से विधिवत पूजन करें।

पूजा पहले पुरुष तथा बाद में स्त्रियां करें।

पूजा के बाद एक-एक दीपक घर के कोनों में जलाकर रखें।

एक छोटा तथा एक चौमुखा दीपक रखकर निम्न मंत्र से लक्ष्मीजी का पूजन करें-

नमस्ते सर्वदेवानां वरदासि हरेः प्रिया।

या गतिस्त्वत्प्रपन्नानां सा मे भूयात्वदर्चनात॥

इस मंत्र से इंद्र का ध्यान करें-

ऐरावतसमारूढो वज्रहस्तो महाबलः।

शतयज्ञाधिपो देवस्तमा इंद्राय ते नमः॥

इस मंत्र से कुबेर का ध्यान करें-

धनदाय नमस्तुभ्यं निधिपद्माधिपाय च।

भवंतु त्वत्प्रसादान्मे धनधान्यादिसम्पदः॥

इस पूजन के पश्चात तिजोरी में गणेशजी तथा लक्ष्मीजी की मूर्ति रखकर विधिवत पूजा करें।

तत्पश्चात इच्छानुसार घर की बहू-बेटियों को आशीष और उपहार दें।

लक्ष्मी पूजन रात के बारह बजे करने का विशेष महत्व है।

इसके लिए एक पाट पर लाल कपड़ा बिछाकर उस पर एक जोड़ी लक्ष्मी तथा गणेशजी की मूर्ति रखें। समीप ही एक सौ एक रुपए, सवा सेर चावल, गुढ़, चार केले, मूली, हरी ग्वार की फली तथा पाँच लड्डू रखकर लक्ष्मी-गणेश का पूजन करें।

उन्हें लड्डुओं से भोग लगाएँ।

दीपकों का काजल सभी स्त्री-पुरुष आँखों में लगाएं।

फिर रात्रि जागरण कर गोपाल सहस्रनाम पाठ करें।

इस दिन घर में बिल्ली आए तो उसे भगाएँ नहीं।

बड़े-बुजुर्गों के चरणों की वंदना करें।

व्यावसायिक प्रतिष्ठान, गद्दी की भी विधिपूर्वक पूजा करें।

रात को बारह बजे दीपावली पूजन के उपरान्त चूने या गेरू में रुई भिगोकर चक्की, चूल्हा, सिल्ल, लोढ़ा तथा छाज (सूप) पर कंकू से तिलक करें। (हालांकि आजकल घरों मे ये सभी चीजें मौजूद नहीं है लेकिन भारत के गाँवों में और छोटे कस्बों में आज भी इन सभी चीजों का विशेष महत्व है क्योंकि जीवन और भोजन का आधार ये ही हैं)

दूसरे दिन प्रातःकाल चार बजे उठकर पुराने छाज में कूड़ा रखकर उसे दूर फेंकने के लिए ले जाते समय कहें 'लक्ष्मी-लक्ष्मी आओ, दरिद्र-दरिद्र जाओ'।

लक्ष्मी पूजन के बाद अपने घर के तुलसी के गमले में, पौधों के गमलों में घर के आसपास मौजूद पेड़ के पास दीपक रखें और अपने पड़ोसियों के घर भी दीपक रखकर आएं।

मंत्र-पुष्पांजलि :

( अपने हाथों में पुष्प लेकर निम्न मंत्रों को बोलें) :-

ॐ यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवास्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन्‌ ।

तेह नाकं महिमानः सचन्त यत्र पूर्वे साध्याः सन्ति देवाः ॥

ॐ राजाधिराजाय प्रसह्य साहिने नमो वयं वैश्रवणाय कुर्महे ।

स मे कामान्‌ कामकामाय मह्यं कामेश्वरो वैश्रवणो ददातु ॥

कुबेराय वैश्रवणाय महाराजाय नमः ।

ॐ महालक्ष्म्यै नमः, मंत्रपुष्पांजलिं समर्पयामि ।

(हाथ में लिए फूल महालक्ष्मी पर चढ़ा दें।)

प्रदक्षिणा करें, साष्टांग प्रणाम करें, अब हाथ जोड़कर निम्न क्षमा प्रार्थना बोलें :-

क्षमा प्रार्थना :

आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम्‌ ॥

पूजां चैव न जानामि क्षमस्व परमेश्वरि ॥

मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वरि ।

यत्पूजितं मया देवि परिपूर्ण तदस्तु मे ॥

त्वमेव माता च पिता त्वमेव

त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव ।

त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव

त्वमेव सर्वम्‌ मम देवदेव ।

पापोऽहं पापकर्माहं पापात्मा पापसम्भवः ।

त्राहि माम्‌ परमेशानि सर्वपापहरा भव ॥

अपराधसहस्राणि क्रियन्तेऽहर्निशं मया ।

दासोऽयमिति मां मत्वा क्षमस्व परमेश्वरि ॥

पूजन समर्पण :

हाथ में जल लेकर निम्न मंत्र बोलें :-

'ॐ अनेन यथाशक्ति अर्चनेन श्री महालक्ष्मीः प्रसीदतुः'

(जल छोड़ दें, प्रणाम करें)

विसर्जन :

अब हाथ में अक्षत लें (गणेश एवं महालक्ष्मी की प्रतिमा को छोड़कर अन्य सभी) प्रतिष्ठित देवताओं को अक्षत छोड़ते हुए निम्न मंत्र से विसर्जन कर्म करें :-

यान्तु देवगणाः सर्वे पूजामादाय मामकीम्‌ ।

इष्टकामसमृद्धयर्थं पुनर्अपि पुनरागमनाय च ॥

ॐ आनंद ! ॐ आनंद !! ॐ आनंद !!!

लक्ष्मीजी की आरती

ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता ।

तुमको निसदिन सेवत हर-विष्णु-धाता ॥ॐ जय...

उमा, रमा, ब्रह्माणी, तुम ही जग-माता ।

सूर्य-चन्द्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता ॥ॐ जय...

तुम पाताल-निरंजनि, सुख-सम्पत्ति-दाता ।

जोकोई तुमको ध्यावत, ऋद्धि-सिद्धि-धन पाता ॥ॐ जय...

तुम पाताल-निवासिनि, तुम ही शुभदाता ।

कर्म-प्रभाव-प्रकाशिनि, भवनिधि की त्राता ॥ॐ जय...

जिस घर तुम रहती, तहँ सब सद्गुण आता ।

सब सम्भव हो जाता, मन नहिं घबराता ॥ॐ जय...

तुम बिन यज्ञ न होते, वस्त्र न हो पाता ।

खान-पान का वैभव सब तुमसे आता ॥ॐ जय...

शुभ-गुण-मंदिर सुन्दर, क्षीरोदधि-जाता ।

रत्न चतुर्दश तुम बिन कोई नहिं पाता ॥ॐ जय...

महालक्ष्मीजी की आरती, जो कई नर गाता ।

उर आनन्द समाता, पाप शमन हो जाता ॥ॐ जय...

(आरती करके शीतलीकरण हेतु जल छोड़ें एवं स्वयं आरती लें, पूजा में सम्मिलित सभी लोगों को आरती दें फिर हाथ धो लें।)

परमात्मा की पूजा में सबसे ज्यादा महत्व है भाव का, किसी भी शास्त्र या धार्मिक पुस्तक में पूजा के साथ धन-संपत्ति को नहीं जो़ड़ा गया है। इस श्लोक में पूजा के महत्व को दर्शाया गया है-

'पत्रं पुष्पं फलं तोयं यो मे भक्त्या प्रयच्छति।

तदहं भक्त्यु पहृतमश्नामि प्रयतात्मनः॥'

पूज्य पांडुरंग शास्त्री अठवलेजी महाराज ने इस श्लोक की व्याख्या इस तरह से की है

'पत्र, पुष्प, फल या जल जो मुझे (ईश्वर को) भक्तिपूर्वक अर्पण करता है, उस शुद्ध चित्त वाले भक्त के अर्पण किए हुए पदार्थ को मैं ग्रहण करता हूँ।'

भावना से अर्पण की हुई अल्प वस्तु को भी भगवान सहर्ष स्वीकार करते हैं। पूजा में वस्तु का नहीं, भाव का महत्व है।

परंतु मानव जब इतनी भावावस्था में न रहकर विचारशील जागृत भूमिका पर होता है, तब भी उसे लगता है कि प्रभु पर केवल पत्र, पुष्प, फल या जल चढ़ाना सच्चा पूजन नहीं है। ये सभी तो सच्चे पूजन में क्या-क्या होना चाहिए, यह समझाने वाले प्रतीक हैं।

पत्र यानी पत्ता। भगवान भोग के नहीं, भाव के भूखे हैं। भगवान शिवजी बिल्व पत्र से प्रसन्न होते हैं, गणपति दूर्वा को स्नेह से स्वीकारते हैं और तुलसी नारायण-प्रिया हैं! अल्प मूल्य की वस्तुएं भी हृदयपूर्वक भगवद् चरणों में अर्पण की जाए तो वे अमूल्य बन जाती हैं। पूजा हृदयपूर्वक होनी चाहिए, ऐसा सूचित करने के लिए ही तो नागवल्ली के हृदयाकार पत्ते का पूजा सामग्री में समावेश नहीं किया गया होगा न!

पत्र यानी वेद-ज्ञान, ऐसा अर्थ तो गीताकार ने खुद ही 'छन्दांसि यस्य पर्णानि' कहकर किया है। भगवान को कुछ दिया जाए वह ज्ञानपूर्वक, समझपूर्वक या वेदशास्त्र की आज्ञानुसार दिया जाए, ऐसा यहां अपेक्षित है। संक्षेप में पूजन के पीछे का अपेक्षित मंत्र ध्यान में रखकर पूजन करना चाहिए। मंत्रशून्य पूजा केवल एक बाह्य यांत्रिक क्रिया बनी रहती है, जिसकी नीरसता ऊब निर्माण करके मानव को थका देती है। इतना ही नहीं, आगे चलकर इस पूजाकांड के लिए मानवके मन में एक प्रकार की अरुचि भी निर्माण होती है।



॥ रावण रचित शिव तांडव स्तोत्र ॥


जटाटवीग लज्जलप्रवाहपावितस्थले
गलेऽवलम्ब्यलम्बितां भुजंगतुंगमालिकाम्‌।

डमड्डमड्डमड्डम न्निनादवड्डमर्वयं
चकार चंडतांडवं तनोतु नः शिवः शिवम ॥1॥

सघन जटामंडल रूप वन से प्रवाहित होकर श्री गंगाजी की धाराएँ जिन शिवजी के पवित्र कंठ प्रदेश को प्रक्षालित (धोती) करती हैं, और जिनके गले में लंबे-लंबे बड़े-बड़े सर्पों की मालाएँ लटक रही हैं तथा जो शिवजी डमरू को डम-डम बजाकर प्रचंड तांडव नृत्य करते हैं, वे शिवजी हमारा कल्याण करें।

जटा कटा हसंभ्रम भ्रमन्निलिंपनिर्झरी ।
विलोलवी चिवल्लरी विराजमानमूर्धनि ।

धगद्धगद्ध गज्ज्वलल्ललाट पट्टपावके
किशोरचंद्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं ममं ॥2॥

अति अम्भीर कटाहरूप जटाओं में अतिवेग से विलासपूर्वक भ्रमण करती हुई देवनदी गंगाजी की चंचल लहरें जिन शिवजी के शीश पर लहरा रही हैं तथा जिनके मस्तक में अग्नि की प्रचंड ज्वालाएँ धधक कर प्रज्वलित हो रही हैं, ऐसे बाल चंद्रमा से विभूषित मस्तक वाले शिवजी में मेरा अनुराग (प्रेम) प्रतिक्षण बढ़ता रहे।

धरा धरेंद्र नंदिनी विलास बंधुवंधुर-
स्फुरदृगंत संतति प्रमोद मानमानसे ।

कृपाकटा क्षधारणी निरुद्धदुर्धरापदि
कवचिद्विगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि ॥3॥

पर्वतराजसुता के विलासमय रमणीय कटाक्षों से परम आनंदित चित्त वाले (माहेश्वर) तथा जिनकी कृपादृष्टि से भक्तों की बड़ी से बड़ी विपत्तियाँ दूर हो जाती हैं, ऐसे (दिशा ही हैं वस्त्र जिसके) दिगम्बर शिवजी की आराधना में मेरा चित्त कब आनंदित होगा।

जटा भुजं गपिंगल स्फुरत्फणामणिप्रभा-
कदंबकुंकुम द्रवप्रलिप्त दिग्वधूमुखे ।

मदांध सिंधु रस्फुरत्वगुत्तरीयमेदुरे
मनो विनोदद्भुतं बिंभर्तु भूतभर्तरि ॥4॥

जटाओं में लिपटे सर्प के फण के मणियों के प्रकाशमान पीले प्रभा-समूह रूप केसर कांति से दिशा बंधुओं के मुखमंडल को चमकाने वाले, मतवाले, गजासुर के चर्मरूप उपरने से विभूषित, प्राणियों की रक्षा करने वाले शिवजी में मेरा मन विनोद को प्राप्त हो।
सहस्र लोचन प्रभृत्य शेषलेखशेखर-
प्रसून धूलिधोरणी विधूसरांघ्रिपीठभूः ।

भुजंगराज मालया निबद्धजाटजूटकः
श्रिये चिराय जायतां चकोर बंधुशेखरः ॥5॥

इंद्रादि समस्त देवताओं के सिर से सुसज्जित पुष्पों की धूलिराशि से धूसरित पादपृष्ठ वाले सर्पराजों की मालाओं से विभूषित जटा वाले प्रभु हमें चिरकाल के लिए सम्पदा दें।

ललाट चत्वरज्वलद्धनंजयस्फुरिगभा-
निपीतपंचसायकं निमन्निलिंपनायम्‌ ।

सुधा मयुख लेखया विराजमानशेखरं
महा कपालि संपदे शिरोजयालमस्तू नः ॥6॥

इंद्रादि देवताओं का गर्व नाश करते हुए जिन शिवजी ने अपने विशाल मस्तक की अग्नि ज्वाला से कामदेव को भस्म कर दिया, वे अमृत किरणों वाले चंद्रमा की कांति तथा गंगाजी से सुशोभित जटा वाले, तेज रूप नर मुंडधारी शिवजीहमको अक्षय सम्पत्ति दें।

कराल भाल पट्टिकाधगद्धगद्धगज्ज्वल-
द्धनंजया धरीकृतप्रचंडपंचसायके ।

धराधरेंद्र नंदिनी कुचाग्रचित्रपत्रक-
प्रकल्पनैकशिल्पिनि त्रिलोचने मतिर्मम ॥7॥

जलती हुई अपने मस्तक की भयंकर ज्वाला से प्रचंड कामदेव को भस्म करने वाले तथा पर्वत राजसुता के स्तन के अग्रभाग पर विविध भांति की चित्रकारी करने में अति चतुर त्रिलोचन में मेरी प्रीति अटल हो।

नवीन मेघ मंडली निरुद्धदुर्धरस्फुर-
त्कुहु निशीथिनीतमः प्रबंधबंधुकंधरः ।

निलिम्पनिर्झरि धरस्तनोतु कृत्ति सिंधुरः
कलानिधानबंधुरः श्रियं जगंद्धुरंधरः ॥8॥

नवीन मेघों की घटाओं से परिपूर्ण अमावस्याओं की रात्रि के घने अंधकार की तरह अति गूढ़ कंठ वाले, देव नदी गंगा को धारण करने वाले, जगचर्म से सुशोभित, बालचंद्र की कलाओं के बोझ से विनम, जगत के बोझ को धारण करने वाले शिवजी हमको सब प्रकार की सम्पत्ति दें।


प्रफुल्ल नील पंकज प्रपंचकालिमच्छटा-
विडंबि कंठकंध रारुचि प्रबंधकंधरम्‌

स्मरच्छिदं पुरच्छिंद भवच्छिदं मखच्छिदं
गजच्छिदांधकच्छिदं तमंतकच्छिदं भजे ॥9॥

फूले हुए नीलकमल की फैली हुई सुंदर श्याम प्रभा से विभूषित कंठ की शोभा से उद्भासित कंधे वाले, कामदेव तथा त्रिपुरासुर के विनाशक, संसार के दुखों के काटने वाले, दक्षयज्ञविध्वंसक, गजासुरहंता, अंधकारसुरनाशक और मृत्यु के नष्ट करने वाले श्री शिवजी का मैं भजन करता हूँ।

अगर्वसर्वमंगला कलाकदम्बमंजरी-
रसप्रवाह माधुरी विजृंभणा मधुव्रतम्‌ ।

स्मरांतकं पुरातकं भावंतकं मखांतकं
गजांतकांधकांतकं तमंतकांतकं भजे ॥10॥

कल्याणमय, नाश न होने वाली समस्त कलाओं की कलियों से बहते हुए रस की मधुरता का आस्वादन करने में भ्रमररूप, कामदेव को भस्म करने वाले, त्रिपुरासुर, विनाशक, संसार दुःखहारी, दक्षयज्ञविध्वंसक, गजासुर तथा अंधकासुर को मारनेवाले और यमराज के भी यमराज श्री शिवजी का मैं भजन करता हूँ।

जयत्वदभ्रविभ्रम भ्रमद्भुजंगमस्फुर-
द्धगद्धगद्वि निर्गमत्कराल भाल हव्यवाट्-

धिमिद्धिमिद्धिमि नन्मृदंगतुंगमंगल-
ध्वनिक्रमप्रवर्तित प्रचण्ड ताण्डवः शिवः ॥11॥

अत्यंत शीघ्र वेगपूर्वक भ्रमण करते हुए सर्पों के फुफकार छोड़ने से क्रमशः ललाट में बढ़ी हुई प्रचंड अग्नि वाले मृदंग की धिम-धिम मंगलकारी उधा ध्वनि के क्रमारोह से चंड तांडव नृत्य में लीन होने वाले शिवजी सब भाँति से सुशोभित हो रहे हैं।

दृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजंग मौक्तिकमस्रजो-
र्गरिष्ठरत्नलोष्टयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः ।

तृणारविंदचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः
समं प्रवर्तयन्मनः कदा सदाशिवं भजे ॥12॥

कड़े पत्थर और कोमल विचित्र शय्या में सर्प और मोतियों की मालाओं में मिट्टी के टुकड़ों और बहुमूल्य रत्नों में, शत्रु और मित्र में, तिनके और कमललोचननियों में, प्रजा और महाराजाधिकराजाओं के समान दृष्टि रखते हुए कब मैं शिवजी का भजन करूँगा।

कदा निलिंपनिर्झरी निकुजकोटरे वसन्‌
विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरःस्थमंजलिं वहन्‌ ।

विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः
शिवेति मंत्रमुच्चरन्‌ कदा सुखी भवाम्यहम्‌ ॥13॥

कब मैं श्री गंगाजी के कछारकुंज में निवास करता हुआ, निष्कपटी होकर सिर पर अंजलि धारण किए हुए चंचल नेत्रों वाली ललनाओं में परम सुंदरी पार्वतीजी के मस्तक में अंकित शिव मंत्र उच्चारण करते हुए परम सुख को प्राप्त करूँगा।

निलिम्प नाथनागरी कदम्ब मौलमल्लिका-
निगुम्फनिर्भक्षरन्म धूष्णिकामनोहरः ।

तनोतु नो मनोमुदं विनोदिनींमहनिशं
परिश्रय परं पदं तदंगजत्विषां चयः ॥14

देवांगनाओं के सिर में गूँथे पुष्पों की मालाओं के झड़ते हुए सुगंधमय पराग से मनोहर, परम शोभा के धाम महादेवजी के अंगों की सुंदरताएँ परमानंदयुक्त हमारेमन की प्रसन्नता को सर्वदा बढ़ाती रहें।

प्रचण्ड वाडवानल प्रभाशुभप्रचारणी
महाष्टसिद्धिकामिनी जनावहूत जल्पना ।

विमुक्त वाम लोचनो विवाहकालिकध्वनिः
शिवेति मन्त्रभूषगो जगज्जयाय जायताम्‌ ॥15॥

प्रचंड बड़वानल की भाँति पापों को भस्म करने में स्त्री स्वरूपिणी अणिमादिक अष्ट महासिद्धियों तथा चंचल नेत्रों वाली देवकन्याओं से शिव विवाह समय में गान की गई मंगलध्वनि सब मंत्रों में परमश्रेष्ठ शिव मंत्र से पूरित, सांसारिक दुःखों को नष्ट कर विजय पाएँ।

इमं हि नित्यमेव मुक्तमुक्तमोत्तम स्तवं
पठन्स्मरन्‌ ब्रुवन्नरो विशुद्धमेति संततम्‌ ।

हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नांयथा गतिं
विमोहनं हि देहना तु शंकरस्य चिंतनम ॥16॥

इस परम उत्तम शिवतांडव श्लोक को नित्य प्रति मुक्तकंठ सेपढ़ने से या श्रवण करने से संतति वगैरह से पूर्ण हरि और गुरु मेंभक्ति बनी रहती है। जिसकी दूसरी गति नहीं होती शिव की ही शरण में रहता है।

पूजाऽवसानसमये दशवक्रत्रगीतं
यः शम्भूपूजनमिदं पठति प्रदोषे ।

तस्य स्थिरां रथगजेंद्रतुरंगयुक्तां
लक्ष्मी सदैव सुमुखीं प्रददाति शम्भुः ॥17॥

शिव पूजा के अंत में इस रावणकृत शिव तांडव स्तोत्र का प्रदोष समय में गान करने से या पढ़ने से लक्ष्मी स्थिर रहती है। रथ गज-घोड़े से सर्वदा युक्त रहता है।
॥ इति शिव तांडव स्तोत्रं संपूर्णम्‌ ॥

नवरात्री में दुर्गा पूजा कैसे करे


सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके
शरण्ये त्रयम्बके गौरी नारायणी नमस्तुते || ||


नवरात्र के नों दिन माता के सामने अखंड ज्योत जलाई जाती है| इस कामना के साथ की माता की साधना में कोई विघन न आये |मंत्र की शास्त्र पुस्तिका के अनुसार दीपक या अगनी के समक्ष किये गये जप का साधक को हज़ार गुना फल प्राप्त होता है |


"दीपन घृत युतं दक्षे , तेल युतः वामतः |

अर्थात : धृत युक्त ज्योति देवी के दाहिनी और तेल युक्त ज्योति देवी के बाएँ और रखनी चाहिए |

देवी माँ को लाल रंग बहुत पसंद है लेकिन क्यूँ ?

पूजा के दौरान देवी को गुलाव या कनेर का लाल फूल अर्पित करना चाहिए| मान्यता यह है की देवी माँ को लाल पुष्प चढाने से इच्छा शक्ति दृढ होती है और मनोकामनाए पूर्ण होती है| लेकिन ध्यान रखें की पूजा के दौरान देवी को दूर्वा चदावें,क्योंकि यह उन्हें अप्रिय हैं |

देवी की पूजा में कलश की महत्ता :

शास्त्रों के मुताबिक पूजा के दौरान स्थापित किये जाने वाले कलश में तेतीस करोड़ देवी -देवताओं का वास होता है और इन सभी की शक्तियां कलश में विराजमान रहती है इसलिए देवी की पूजा में कलश स्थापना का खास महत्व होता है |कलश के ऊपर रखा जाने वाला नारियल शिव -शक्ति का प्रतीक होता है |कहतें हैं कलश स्थापना से सोभाग्य,विजय के साथ-साथ पूर्वजों का आशीर्वाद मिलता है और सभी विघन दूर होते है |

देवी की पूजा में ज्वार का महत्त्व :

देवी की पूजा के प्रथम दिन ज्वार बोए जाते हैं,जो हमारी साधना की सफलता का प्रतीक होते हैं|कहतें हैं ज्वारों का अनुकरण माता की कृपा से होता है|बोए जाने के बाद यह जों जल को अवशोषित करके फूलता है और जों का अनुकरण नवीन जीवन की उत्पति दर्शाता है|


कन्या पूजन :

नवरात्री में कन्याओं का पूजन विशेष महत्व रखता है|कन्या को देवी का रूप मानकर उनका पूजन किया जाता है|शास्त्रों के अनुसार एक कन्या की पूजा से ऐश्वर्य की ,दो की पूजा से भोग और मोक्ष की,तीन की पूजा से धर्म,अर्थ,एवं काम की,चार की पूजा से राज्यपद की,पांच की पूजा से विद्या की,छेह की पूजा से शत करम सिधि,सात की पूजा से राज्य की,आठ की पूजा से सम्पर्धा की और नो कन्याओं के पूजन से प्रभुत्व की प्राप्ति माना जाता है.कुमारी पूजन में दस वर्ष की कन्याओं का पूजन निहित है |

वरदान है मनुष्य योनी ...


मनुष्य जीवन बड़ी मुश्किल से मिलता है|सब को पता है की चौरासी लाख योनियों के बाद ही मनुष्य जीवन नसीब होता है |इस श्रेष्ठ योनि को तो हमने पा लिया मगर मूल पहचान यानी मनुष्यता को हम खोते जा रहे हैं|

"अवर योनी तेरी पनिहारी ,
इस धरती पर तेरी सिक्दारी |"

यानि मानव-योनि सबसे उत्तम है|इस योनि का उदेश्य भी उत्तम होगा,ध्येय भी उत्तम होगा |

यदि इस उत्तम शरीर को पाकर भी मानव वही काम करता रहा ,जो पशु भी कर लेते हैं,तो इस जन्म का सदुपयोग ही क्या हुआ ?अगर वह मकानों के बनाने में ही लगा रहा,तो फिर क्या विशेषता है ?पक्षी भी मकान बनाते हैं,एक चिड़िया भी पेड़ की टहनी के ऊपर तिनका-तिनका इकट्ठा करके बहुत ख़ूबसूरत घोंसला बना लेती है|एक छोटी सी चींटी भी जो बड़ी मुश्किल से दिखाई देती है ,वह भी कहीं न कहीं सुराख़ करके रहने का स्थान बना लेती हैं |अगर हमारे घरों में ओलाद हो जाती है तो उनके घरों में भी हो जाती है |
मनुष्य में लालच इस तरह हावी हो चूका है की हमें भले बुरे की पहचान नही रही |पशुयों की तरह एक दुसरे पर झपट पड़ते हैं,एक दुसरे को लहुलुहान कर देते हैं|
भाई-भाई को धोखा दे रहा है |बेटा बजुर्ग बाप को घर से निकाल रहा है |जिस माँ की कोख से जन्म लिया,उसकी सेवा करने की जगह घर से बेघर कर उसे बेइज्जत कर रहा है|मनुष्य मैं अगर मनुष्यता नही रही ,तो फिर जैसा की कहा गया है की वह इस धरती पर पशु सद्र्श है-

"मनुष्यरूपेण मृगाश चरन्ति |"

यह जीवन प्रभु परमात्मा का बड़ा आशीर्वाद है |इस जिन्दगी का हमें भरपूर फायदा उठाना चाहिए |इस जिन्दगी में आने का उदेश्य प्रभु की प्राप्ति है |

इस की महानता तभी है,जब यह निराकार परमात्मा से नाता जोड़ लें|यही मानव शरीर का ध्येय माना गया है|इसी से मानव-तन की महत्ता है|लेकिन ऐसा है नही |यहाँ जन्म लेने के बाद हम माया के भंवर जाल में,इस दुनिया रूपी दल दल में अन्दर तक धंसते जा रहे हैं|

जैसे एक बर्तन होता है,जिसमे बहुत कीमती चीज़े पड़ी हुई हैं,तो उस बर्तन की कीमत पड़ जाती है ,उस बर्तन की बहुत संभाल और निगरानी की जाती है|लेकिन जिस बर्तन में कूड़ा-करकट पड़ा हुआ होता है,उस बर्तन की कोई परवाह नही होती है|इसी तरह से हमें जो यह मनुष्य-तन मिला है,इसका मोल पड़े बिना रह जाता है,यदि निराकार-प्रभु को ,हरी-ईशवर को प्राप्त नही करते |

जीवन की हम असलियत से अनजान हैं की यह सब कुछ तो यहीं रह जाना है|खाली हाथ आये थे खाली हाथ ही वापिस जाना है|सांसारिक सुखों की खोज में हमने अपना सारा समय नष्ट कर दिया और दूसरी दुनिया के लिए कुछ भी नही कमाया|

स्वार्थ हमारे जीवन में इस कदर हावी हो चूका है की हम उस से ऊपर उठ कर कुछ भी सोच नही पा रहें|हद तो यह है की उस प्रभु-परमात्मा की कृपा पाने के लिए हम उसे उसी की और से उपहार स्वरुप दी गयी चीजों से लुभाने का असफल प्रयास करते हैं|यह कतई नही सोचतें हैं की यह सब कुछ तो उसी परमात्मा की देन हैं|उसे भला इन चीजों की क्या भूख है|उसे भक्त का प्रेम चाहिए|आस्था,विस्वास और सचे भाव से अर्पित दो फूल ही उसकी कृपा का अधिकारी बनने के लिए पर्याप्त है|

मनुष्य की अज्ञानता यह है की वह अपने को शरीर ही माने बैठा है की "मैं "यह शरीर ही हूँ |"यह शरीर तो हमेशा रहने वाला नही है|यह तो पांच तत्वों का पुतला है|जब इन पांच तत्वों से इसका नाता टूट जाता है तो इसका अंत हो जाता है|वह चेतन -सत्ता कोन-सी है ,जिसकी बदोलत शरीर की कीमत है?

जब मूल सत्य परमात्मा की पहचान हो जाती है ,फिर अपने आप की भी पहचान हो जाती है की "मैं"केवल यह बाहर से नजर आने वाल सवरूप ही नहीं ,केवल यह शरीर ही नहीं,"मैं"असल में एक ऐसी सत्ता हूँ,जो इस प्रभु ,इस हरी का ही नूर है,इसी का अंश है|इस जानकारी से ही मनुष्य योनि की कीमत पडती है,इसी के कारण मानव शरीर का महत्व है|

अहोई माता जी का व्रत की कथा


कार्तिक क्रिशन पक्ष की अष्टमी या सप्तमी को अहोई का व्रत करके मेहंदी लगाये| जिस वार की दिवाली होती हे उसी वार का अहोई माता का व्रत होता है |तारे निकलने के बाद कहानी सुनें| कहानी सुनने के समय एक पट्टे पर जल का लोटा रखें,चांदी की होई ,दो मिठाइयाँ ,चांदी की नाल में पिरोकर माता को चड़ा दे|सात दाने गेहूं के हाथ में ले कर कहानी सुनें|

अहोई की कहानी :

किसी गावं में एक साहूकार रहता था उसके सात बेटे थे |एक दिन साहूकार की पत्नी खदान में से खोद कर मिटटी लाने के लिए गयी |ज्योहीं ही उसने मिटटी खोदने के लिए कुगाल चलाई त्योंही स्यायुं में रह रहे बच्चे की मृत्यु हो गये |साहूकार की पत्नी को बहुत दुःख हुआ लेकिन अब जो होना था वो सब हो चूका था और वो दुखी मन से अपने घर वापिस आ गयी |पश्चाताप के कारन वो मिटटी भी नही लायी |

इसके बाद स्यायुं जब घर में आये तो उसने अपने बच्चे एको मृत अवस्था में पाया |वो दुःख से विलाप करने लगी और उसने इश्वर से प्राथना की की जिसने मेरे पुत्र को मारा हे उसे भी बहुत दुःख भोगना पड़े |इधर स्ययों के श्राप से एक वर्ष के अंदर उसके सातो पुत्र मर गये |इस प्रकार सेठ सेठानी यह दुखद घटनाये देख कर बहुत दुखी हो गये |

इया प्रकार दुखी हुए दम्पतियों ने किसी धार्मिक स्थान पे जा कर अपने प्राण देने का निर्णय किया |इस तरह मन में विचार कर दोनों सेठ सेठानी घर से पैदल ही निकल पड़े |वो काफी देर तक चलते रहे जब वो लोग चलने में असमर्थ हो गये तो एक जगह बेहोश हो क गिर गये |उनकी यह दशा देख के दयानिधि भगवान् उन पर कृपालु हो गये और उन्होंने आकाशवाणी की -हे सेठ तेरी सेठानी ने अनजाने में ही स्ययों के बच्चे को मार डाला था इसलिए तुम दोनों को भी अपने बच्चों का दुःख भोगना पड़ा |

भगवान् ने खा तुम दोनों घर जा क गाय की पूजा करो और अहोई अष्टमी आने पर विधि विधान पूर्वक अहोई माता की पूजा करो |सभी जीवों को दया भाव रखो किसी को अहित न करो |अगर तुम मेरे कहने के अनुसार आचरण करोगे तो तुम्हे पुत्र सुख प्राप्त होगा |

इस आकाशवाणी को सुन कर सेठ सेठानी को कुछ धेर्य हुआ और वो दोनों भगवती को नमन करते हुए अपने घर को चले गये |घर पहुंच कर उन दोनों ने आकाशवाणी के अनुसार काम करना आरम्भ कर दिया|उन्होंने अपने दिल से ईर्ष्या द्वेष को निकाल कर सब से प्रेम से रहना शुरू कर दिया |सभी जीव-जन्तुंयों पर करुणा का भाव भी रखना शुरू कर दिया |

फिर सेठानी ने अहोई माता से प्राथना की के अगर वो मुझे पुत्र देंगे तो मैं आपकी विधि विधान से पूजा भी करती रहूंगी और व्रत भी रखूंगी|की अहोई अष्टमी वाले दिन उन्होंने माता जी का व्रत रखा और उनके जल्दी ही पुत्र का जनम हुआ|

भगवन कृपा से दोनों सेठ सेठानी पुत्र पुत्रवान हो कर सुख भोगने लगे और अंत में स्वर्ग सिधार गये |जिस भी माता के बेटा होता हे वो भी अपनी पुत्र की लम्बी आयु के लिए व्रत रखती है |और हम सभी को माता का गुणगान करना चाहिए|

करवा चौथ की पूजा...

कार्तिक कृषण पक्ष की चतुर्थी को करवा चौथ होता है|करवा चौथ का व्रत करके एक पट्टे पर जल का लोटा रखें और बयना निकलने के लिए मिटटी का करवा रखो|कर्वे में गेहूं ,धक्क्ने में चीनी रख ,नकद रूपये रखो | रोली से बायने के कर्वे पर स्वास्तिक बनाओ|तेरह टिक्की रोली से करो |रोली,चावल छिड़क कर जल चदाओ|गुड से भोग लगाओ|तेरह दाने गेहूं के हाथ में ले क्र खानी सुन लें|खानी सुनने के बाद कर्वे पर हाथ फेरकर सासु जी के पैर छू लें| तेरह दाने और जल का लोटा रख दें| चाँद देखकर चाँद को अर्ग दें|कहानी कहने वाली ब्रह्मणि को गेंहू, रूपये दें|चाँद को रोली,चावल और चूरमा चदायें|फेरी देकर टीका लगाकर बाद में चूम लें|अगर अपनी बहन,बेटी पास में रहती है तो उसके वहन भी करवा भेज दें|

करवा चौथ की कहानी

एक साहूकार था |उसके सात बेटे और एक बेटी थी |सातों भाई-बहन साथ बैठकर खाते थे |एक दिन कार्तिक की चौथ का व्रत आया तो भाई बोले की आओ बहन खाना खा लो| उनकी बहन बोली-भाई आज करवा चौथ का व्रत हे इसलिए चाँद निकलने पर करूंगी | तब भाई बोले क्या हमारी बहन भूखी रहेगी ?तो एक भाई ने दीया लिया और एक चलनी ली | एक पेड़ के पास एक तरफ होकर दीया जला कर चलनी ढक दी और आकर कहा की बहन तेरा चाँद निकल गया |तो वह भाभियाँ बोली बहन जी आपका चाँद निकल आया हमारा चाँद तो रात को निकलेगा |तब उस अकेली ने ही आर्ग दे दिया और भाइयों के साथ खाने के लिए बैठ गई|पहली गस्सी (bite) में बाल आया,दुसरे में पत्थर निकला,तीसरे में बहन को उसके ससुराल से लेने गया और बोला की बहन का पति भुत बीमार है इसलिए उसे जल्दी से भेजो |तब माँ बोली की रस्ते में कोई भी मिले उनके पैर छुते जाइयो और उनका आशीर्वाद लेती जाइयो |सब लोग रस्ते में मिले और यही आशीर्वाद देते गये की ठंडी रहो,सब्र करने वाली हो,सातों भाइयों की
बहन हो,तेरे भाइयों को सुख दे,परन्तु किसी ने भी सुहाग का आशीर्वाद नही दिया |ससुराल में पहुंचते ही दरवाजे पर छोटी नन्द खढी थी |तो उसके पैर छुए |तो नन्द ने कहा की सात पुत्रों की माँ हो ,तेरे भाईओं को सुख मिले |तो यह बात अन्दर गयी तो सास ने कहा ऊपर जा के बैठ जा |जब वो ऊपर गयी तो ऊपर उसका पति मर पड़ा था |तो वो रोने चिलाने लगी |इस पारकर मंगसीर की चौथ आयी और बोली की कर्वे ले लो ,दिन में चाँद उगना कर्वे ले लो,भाइयों की प्यारी कर्वे ले लो, ज्यादा भूख वाली कर्वे ले लो|तब वह चौथ वाली माता को बोली तुमने ही उजाड़ा हे तुम ही सुधरोगी |मी को सुहाग देना पड़ेगा |तब चौथ माता ने कहा की पोष माता आएगी वह मेरे से बड़ी है वही तेरे को सुहाग देगी |इस परकार पोष माता भी आकर चली गयी|माघ की ,फाल्गुन की ,वैसाख की ,जेठ की ,श्रावण की भादव की साडी चौथ माता भी चली गयी |की अगली चौथ उससे कहियो |बाद में कार्तिक की चौथ आये उसने कहा की तेरे से कार्तिक की चौथ नाराज़ हे उस से अपना सुहाग मंगियो |तब उसके पैर पकड़ के बैठ जाइयो |वही तेरा सुहाग देगी |बाद में कार्तिक की चौथ माता आये और गुसे में बोली की भाइयों की प्यारी कर्वे ले,दिन में चाँद निकलने वाली कर्वे ले |तब साहूकार की बेटी पैर पकड़ के बैठ गयी और रोने लगी | हाथ जोड़ क्र बोली हे चुअत माता!मेरा सुहाग तेरे हाथ में है तेरे को देना पड़ेगा | चौथ माता बोली ! रे पापणी,हत्यारिनी ! छोड़,मेरे पैर पकड़ कर क्यूँ बैठी है ? तब वह बोली की मेरे से बिगर हेया तुम ही सुधारो,मेरे को सुहाग दे दो|तो चौथ माता खुश हो गये और आँख में से काजल निकाला,नाखूनों में से मेहंदी,मांग में से सिंदूर|उसका पति उठ कर बैठ गया और बोला की मैं बहुत सोया |मेरे को तो बारह महीने हो गये |मेरे को तो कार्तिक की चौथ ने सुहाग दिया है |तो वह बोला की चौथ माता का नमन करो |तो उन्होंने चौथ माता की कहानी सुनी,खूब सारा चूरमा बनाया |

दोनों आदमी -औरत चोपड़ खेलने लगे |नीचे से सासू जी ने रोई भेजी तो दासी ने कहा की वो तो दोनों चोपड़ खेल रहे हैं |सास सुनकर खुश हो गये और देख कर बोली की क्या बात हुई तो बहु बोली मेरे साथ चौथ माता रूठी है |और कहकर सासुजी के पैर छूने लगी और साडी नगरी में ढिंढोरा पीत्वा दिया सबको चौथ का व्रत करना चाहिए |तेरह चौथ करना,नहीं तो चार करना,नहीं तो दो चौथ सब कोई करना |हे चौथ माता !जैसा सहकर की बेव्ती को सुहाग दिया वैसा सबको देना |मेरे को भी,कहते सुनता सब परिवार को सुहाग देना |