कार्तिक कृषण पक्ष की चतुर्थी को करवा चौथ होता है|करवा चौथ का व्रत करके एक पट्टे पर जल का लोटा रखें और बयना निकलने के लिए मिटटी का करवा रखो|कर्वे में गेहूं ,धक्क्ने में चीनी रख ,नकद रूपये रखो | रोली से बायने के कर्वे पर स्वास्तिक बनाओ|तेरह टिक्की रोली से करो |रोली,चावल छिड़क कर जल चदाओ|गुड से भोग लगाओ|तेरह दाने गेहूं के हाथ में ले क्र खानी सुन लें|खानी सुनने के बाद कर्वे पर हाथ फेरकर सासु जी के पैर छू लें| तेरह दाने और जल का लोटा रख दें| चाँद देखकर चाँद को अर्ग दें|कहानी कहने वाली ब्रह्मणि को गेंहू, रूपये दें|चाँद को रोली,चावल और चूरमा चदायें|फेरी देकर टीका लगाकर बाद में चूम लें|अगर अपनी बहन,बेटी पास में रहती है तो उसके वहन भी करवा भेज दें|
करवा चौथ की कहानी एक साहूकार था |उसके सात बेटे और एक बेटी थी |सातों भाई-बहन साथ बैठकर खाते थे |एक दिन कार्तिक की चौथ का व्रत आया तो भाई बोले की आओ बहन खाना खा लो| उनकी बहन बोली-भाई आज करवा चौथ का व्रत हे इसलिए चाँद निकलने पर करूंगी | तब भाई बोले क्या हमारी बहन भूखी रहेगी ?तो एक भाई ने दीया लिया और एक चलनी ली | एक पेड़ के पास एक तरफ होकर दीया जला कर चलनी ढक दी और आकर कहा की बहन तेरा चाँद निकल गया |तो वह भाभियाँ बोली बहन जी आपका चाँद निकल आया हमारा चाँद तो रात को निकलेगा |तब उस अकेली ने ही आर्ग दे दिया और भाइयों के साथ खाने के लिए बैठ गई|पहली गस्सी (bite) में बाल आया,दुसरे में पत्थर निकला,तीसरे में बहन को उसके ससुराल से लेने आ गया और बोला की बहन का पति भुत बीमार है इसलिए उसे जल्दी से भेजो |तब माँ बोली की रस्ते में कोई भी मिले उनके पैर छुते जाइयो और उनका आशीर्वाद लेती जाइयो |सब लोग रस्ते में मिले और यही आशीर्वाद देते गये की ठंडी रहो,सब्र करने वाली हो,सातों भाइयों की
बहन हो,तेरे भाइयों को सुख दे,परन्तु किसी ने भी सुहाग का आशीर्वाद नही दिया |ससुराल में पहुंचते ही दरवाजे पर छोटी नन्द खढी थी |तो उसके पैर छुए |तो नन्द ने कहा की सात पुत्रों की माँ हो ,तेरे भाईओं को सुख मिले |तो यह बात अन्दर गयी तो सास ने कहा ऊपर जा के बैठ जा |जब वो ऊपर गयी तो ऊपर उसका पति मर पड़ा था |तो वो रोने चिलाने लगी |इस पारकर मंगसीर की चौथ आयी और बोली की कर्वे ले लो ,दिन में चाँद उगना कर्वे ले लो,भाइयों की प्यारी कर्वे ले लो, ज्यादा भूख वाली कर्वे ले लो|तब वह चौथ वाली माता को बोली तुमने ही उजाड़ा हे तुम ही सुधरोगी |मी को सुहाग देना पड़ेगा |तब चौथ माता ने कहा की पोष माता आएगी वह मेरे से बड़ी है वही तेरे को सुहाग देगी |इस परकार पोष माता भी आकर चली गयी|माघ की ,फाल्गुन की ,वैसाख की ,जेठ की ,श्रावण की भादव की साडी चौथ माता भी आ क चली गयी |की अगली चौथ उससे कहियो |बाद में कार्तिक की चौथ आये उसने कहा की तेरे से कार्तिक की चौथ नाराज़ हे उस से अपना सुहाग मंगियो |तब उसके पैर पकड़ के बैठ जाइयो |वही तेरा सुहाग देगी |बाद में कार्तिक की चौथ माता आये और गुसे में बोली की भाइयों की प्यारी कर्वे ले,दिन में चाँद निकलने वाली कर्वे ले |तब साहूकार की बेटी पैर पकड़ के बैठ गयी और रोने लगी | हाथ जोड़ क्र बोली हे चुअत माता!मेरा सुहाग तेरे हाथ में है तेरे को देना पड़ेगा | चौथ माता बोली ! रे पापणी,हत्यारिनी ! छोड़,मेरे पैर पकड़ कर क्यूँ बैठी है ? तब वह बोली की मेरे से बिगर हेया तुम ही सुधारो,मेरे को सुहाग दे दो|तो चौथ माता खुश हो गये और आँख में से काजल निकाला,नाखूनों में से मेहंदी,मांग में से सिंदूर|उसका पति उठ कर बैठ गया और बोला की मैं बहुत सोया |मेरे को तो बारह महीने हो गये |मेरे को तो कार्तिक की चौथ ने सुहाग दिया है |तो वह बोला की चौथ माता का नमन करो |तो उन्होंने चौथ माता की कहानी सुनी,खूब सारा चूरमा बनाया |
दोनों आदमी -औरत चोपड़ खेलने लगे |नीचे से सासू जी ने रोई भेजी तो दासी ने आ क कहा की वो तो दोनों चोपड़ खेल रहे हैं |सास सुनकर खुश हो गये और देख कर बोली की क्या बात हुई तो बहु बोली मेरे साथ चौथ माता रूठी है |और कहकर सासुजी के पैर छूने लगी और साडी नगरी में ढिंढोरा पीत्वा दिया सबको चौथ का व्रत करना चाहिए |तेरह चौथ करना,नहीं तो चार करना,नहीं तो दो चौथ सब कोई करना |हे चौथ माता !जैसा सहकर की बेव्ती को सुहाग दिया वैसा सबको देना |मेरे को भी,कहते सुनता सब परिवार को सुहाग देना |
No comments:
Post a Comment