जीवन में आज का
सुर में साज का
पूजा में नाल का
सिर में बाल का
सृष्टि में आकाश का
सूर्य में प्रकाश का
कुल में आन का
स्त्रियों में मान का
स्त्री में लाज का
राज्य में ताज का
स्त्री में चाल का
खाने में दाल का
जीवन में विकास का
दोस्ती में विशवास का
क्षत्रिय में शान का
चबाने में पान का
लोहड़ी की कहानी और लोहड़ी के लोकगीत
सुंदरी-मातृ-विहीन थी, उसके बाप का साया भी उसके सिर पर नहीं था। चाचा जमींदार था। इलाके में से अकबर बादशाह गुजरने वाला था, जमींदारों ने फैसला किया कि सुंदरी को बादशाह के सामने पेश किया जाए। गांव की सबसे सुंदर (लाल पटाखा) और सबसे गरीब (फटे सालू वाली) लड़की की रक्षा करने वाला ‘कौन बेचारा था ? बात दुल्ला भट्टी तक पहुंचाई गई। दुल्ला दीन-दुखी का हितैषी था, उसने फौरन अपनी बेटी की तरह सुंदरी की शादी रचा डाली। जल्दी-जल्दी में शादी की धूमधाम का इंतजाम भी न हो सका।
‘सेर शक्कर’ से ही शादी का शगुन किया गया। लेकिन उसने ‘चूरी’ कूटने वाले जमींदारों की खूब दुर्गति बनाई।
इस मुसीबत की घडी में दुल्ला भट्टी ने ब्राह्मण की मदद की और लडके वालों को मना कर एक जंगल में आग जला कर सुंदरी और मुंदरी का व्याह करवाया। दुल्ले ने खुद ही उन दोनों का कन्यादान किया। कहते हैं दुल्ले ने शगुन के रूप में उनको शक्कर दी थी। इसी कथा की हमायत करता लोहड़ी का यह गीत है, जिसे लोहड़ी के दिन गाया जाता है
ਸੁੰਦਰ ਮੁੰਦਰੀਏ, ਹੋ
ਤੇਰਾ ਕੋਣ ਵਿਚਾਰਾ ਹੋ
ਦ੍ਲਹਾ ਭੱਟੀ ਵਾਲਾ ਹੋ
ਦੂਲ੍ਹੇ ਦੀ ਧੀ ਵਿਆਹੀ ਹੋ
ਸੇਰ ਸੱਕਰ ਆਈ ਹੋ
ਕੁੜੀ ਦੇ ਬੋਝੇ ਪਾਈ ਹੋ
ਕੁੜੀ ਦਾ ਲਾਲ ਪਟਾਕਾ ਹੋ
ਕੁੜੀ ਦਾ ਸਾਲੂ ਪਾੱਟਾ ਹੋ
ਸਾਲੂ ਕੋਣ ਸਮੇਟੇ ਹੋ
ਚਾਚਾ ਗਾਲੀ ਦੇਸੇ ਹੋ
ਚਾਚੇ ਚੂਰੀ ਕੁਟੀ ਹੋ
ਜਿਮਿੰਦਾਰਾ ਲੂਟੀ ਹੋ
ਜਿਮੀਂਦਾਰ ਸਦਾਏ ਹੋ
ਗਿੰਨ ਗਿੰਨ ਪੋਲੇ ਲਾਏ ਹੋ
ਬੜੇ ਭੋਲੇ ਆਏ ਹੋ
ਇਕ ਭੋਲਾ ਰਹੀ ਗਯਾ
ਸਿਪਾਹੀ ਫੜ ਕੇ ਲੈ ਗਯਾ
ਸਿਪਾਹੀ ਨੇ ਮਾਰੀ ਈਟ
ਭਾਵੇਂ ਰੋ ਤੇ ਭਾਵੇਂ ਪਿਟ
ਸਾੰਨੂ ਦੇ ਦੇ ਲੋਹਰੀ ਤੇਰੀ ਜੀਵੇ ਜੋੜੀ
ਸਾੰਨੂ ਦੇ ਦੇ ਲੋਹਰੀ ਤੇਰੀ ਜੀਵੇ ਜੋੜੀ
ਸਾੰਨੂ ਦੇ ਦੇ ਲੋਹਰੀ ਤੇਰੀ ਜੀਵੇ ਜੋੜੀ
ਹੁਣ ਇਹੀ ਗੀਤ ਹਿੰਦੀ ਵਿਚ ਪੜੋ...
अब यही गीत हिंदी में...
सुंदर मुंदरिये, हो
तेरा कौन विचारा हो
दुल्ला भट्टी वाला, हो
दुल्ले दी धी ब्याही, हो
सेर शक्कर आई, हो
कुड़ी दे बोझे पाई, हो
कुड़ी दा लाल पटाका, हो
कुड़ी दा सालू पाटा, हो
सालू कौन समेटे, हो
चाचा गाली देसे, हो
चाचे चूरी कुट्टी, हो
जिमींदारां लुट्टी, हो
जिमींदार सदाये, हो
गिन-गिन पौले लाये, हो।
बड़े भोले आये हो
एक भोला रह गया
सिपाही पकड़ के ले गये
सिपाही ने मारी ईंट
चाहे रो या चाहे पिट
सानु दे दे लोहड़ी ,तुहाडी जीवे जोड़ी
सानु दे दे लोहड़ी ,तुहाडी जीवे जोड़ी
सानु दे दे लोहड़ी ,तुहाडी जीवे जोड़ी
ਤੇਰਾ ਕੋਣ ਵਿਚਾਰਾ ਹੋ
ਦ੍ਲਹਾ ਭੱਟੀ ਵਾਲਾ ਹੋ
ਦੂਲ੍ਹੇ ਦੀ ਧੀ ਵਿਆਹੀ ਹੋ
ਸੇਰ ਸੱਕਰ ਆਈ ਹੋ
ਕੁੜੀ ਦੇ ਬੋਝੇ ਪਾਈ ਹੋ
ਕੁੜੀ ਦਾ ਲਾਲ ਪਟਾਕਾ ਹੋ
ਕੁੜੀ ਦਾ ਸਾਲੂ ਪਾੱਟਾ ਹੋ
ਸਾਲੂ ਕੋਣ ਸਮੇਟੇ ਹੋ
ਚਾਚਾ ਗਾਲੀ ਦੇਸੇ ਹੋ
ਚਾਚੇ ਚੂਰੀ ਕੁਟੀ ਹੋ
ਜਿਮਿੰਦਾਰਾ ਲੂਟੀ ਹੋ
ਜਿਮੀਂਦਾਰ ਸਦਾਏ ਹੋ
ਗਿੰਨ ਗਿੰਨ ਪੋਲੇ ਲਾਏ ਹੋ
ਬੜੇ ਭੋਲੇ ਆਏ ਹੋ
ਇਕ ਭੋਲਾ ਰਹੀ ਗਯਾ
ਸਿਪਾਹੀ ਫੜ ਕੇ ਲੈ ਗਯਾ
ਸਿਪਾਹੀ ਨੇ ਮਾਰੀ ਈਟ
ਭਾਵੇਂ ਰੋ ਤੇ ਭਾਵੇਂ ਪਿਟ
ਸਾੰਨੂ ਦੇ ਦੇ ਲੋਹਰੀ ਤੇਰੀ ਜੀਵੇ ਜੋੜੀ
ਸਾੰਨੂ ਦੇ ਦੇ ਲੋਹਰੀ ਤੇਰੀ ਜੀਵੇ ਜੋੜੀ
ਸਾੰਨੂ ਦੇ ਦੇ ਲੋਹਰੀ ਤੇਰੀ ਜੀਵੇ ਜੋੜੀ
ਹੁਣ ਇਹੀ ਗੀਤ ਹਿੰਦੀ ਵਿਚ ਪੜੋ...
अब यही गीत हिंदी में...
सुंदर मुंदरिये, हो
तेरा कौन विचारा हो
दुल्ला भट्टी वाला, हो
दुल्ले दी धी ब्याही, हो
सेर शक्कर आई, हो
कुड़ी दे बोझे पाई, हो
कुड़ी दा लाल पटाका, हो
कुड़ी दा सालू पाटा, हो
सालू कौन समेटे, हो
चाचा गाली देसे, हो
चाचे चूरी कुट्टी, हो
जिमींदारां लुट्टी, हो
जिमींदार सदाये, हो
गिन-गिन पौले लाये, हो।
बड़े भोले आये हो
एक भोला रह गया
सिपाही पकड़ के ले गये
सिपाही ने मारी ईंट
चाहे रो या चाहे पिट
सानु दे दे लोहड़ी ,तुहाडी जीवे जोड़ी
सानु दे दे लोहड़ी ,तुहाडी जीवे जोड़ी
सानु दे दे लोहड़ी ,तुहाडी जीवे जोड़ी
पंजाब में लोहड़ी त्यौहार आने के कई दिन पहले युवा लड़के-लड़कियां द्वार द्वार पर जा कर गाना गा गा कर लकड़ियाँ तथा मेवा मांग कर इकट्ठा कर लोहड़ी की रात आग जला कर नाचते गातें व फल मेवा खाते हैं।
कंडा कंडा नी लकडियो कंडा सी
इस कंडे दे नाल कलीरा सी
जुग जीवे नी भाबो तेरा वीरा सी,
पा माई पा, काले कुत्ते नू वी पा
कला कुत्ता दवे वदायइयाँ,
तेरियां जीवन मझियाँ गईयाँ,
मझियाँ गईयाँ दित्ता दुध,
तेरे जीवन सके पुत्त,
सक्के पुत्तां दी वदाई,
वोटी छम छम करदी आई।
इस कंडे दे नाल कलीरा सी
जुग जीवे नी भाबो तेरा वीरा सी,
पा माई पा, काले कुत्ते नू वी पा
कला कुत्ता दवे वदायइयाँ,
तेरियां जीवन मझियाँ गईयाँ,
मझियाँ गईयाँ दित्ता दुध,
तेरे जीवन सके पुत्त,
सक्के पुत्तां दी वदाई,
वोटी छम छम करदी आई।
दुल्ला भट्टी की जुल्म के खिलाफ मानवता की सेवा को आज भी लोग याद करते हैं और उस रात को लोहड़ी के रूप में सत्य और साहस की जुल्म पर जीत के तौर पर मनाते हैं। इस त्योहार का सबंध फसल से भी है, इस समय गेहूँ और सरसों की फसलें अपने यौवन पर होती हैं, खेतों में गेहुँ, छोले और सरसों जैसी फसलें लहराती हैं।
जीवन की अवस्थाओं का ज्ञान करवातें हैं हनुमान जी...
भारतीय संस्कृति में चार की संख्या का बड़ा महत्व है|चार वर्ण,चार युग,और चार अंत:करण को कई बार याद किया जाता है|तुलसीदास जी ने हनुमान चालीसा की चालीस चोपाइयों में भी चार के आंकड़े को एक जगह याद किया जाता है|२९वि चौपाई में वह लिखते हैं-चारो युग प्रताप तुम्हारा,है प्रसिद्ध जगत उजियारा ||अर्थात जगत को प्रकाशित करने वाले आपके नाम का प्रताप चारो युगों में है|(सतयुग,त्रेता,द्वापर और कलियुग)श्रीहनुमान जी पवनसुत हैं और पवन न सिर्फ चारो युग में हैं,बल्कि प्रत्येक स्थान पर है|विदेश में पानी अलग मिल सकता है,धरती अलग मिल सकती है,व भोजन अलग मिल सकता हैहवा सारी दुनिया में एक जैसे ही मिलती है|पानी,अग्नि को रोका जा सकता है लेकिन आप हवा का बटवारा नही कर सकते|
चारो युगों का एक और अर्थ है-हमारे जीवन की भी चार अवस्थाये है-बचपन,जवानी,प्रोद्ता और बुदापा |प्रताप का एक साधारण सा अर्थ होता है,योग्यता|इन चारों उम्र में हनुमान जी योग्यता की तरह हमारे जीवन में आ सकते हैं|बचपनम की सरलता हम हनुमान जी से सीख सकते हैं|जवानी की सक्रियता उनके पराक्रम की ही कहानी है|प्रोद्ता में जो म्संझ होने चाहिए व भी हनुमान जी हमें सिखायेंगे,और बुदापा सफल होता है|
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