यह भी जानिये: इस्लाम में भी होतें हैं नागा पीर


नंगा पीर अहद बाबा कश्मीर वाले जो हमेशा नंगे ही रहते हैं, और इनके भक्तों में 90% महिलायें ही होती हैं। इस्लामिक परम्परा में ऐसे कई सूफी संत, पीर-फ़क़ीर बाबा हुए हैं, जिन्होंने खुदा की इबादत नंगे रहकर की। इसलिए किसी गैर-मजहब के धार्मिक आस्था-परम्परा पर ऊँगली उठाने से पहले खुद के गिरेबां में झाँक लें।

यह वह भूमि है,जहाँ दुनिया में सबसे पहले सभ्यता आई।

मोहम्मद साहब (जन्म-570 ईस्वी) जब चाँद के दो टुकड़े कर रहे थे, पृथ्वी को चपटी कालीन और आसमान को डंडे से ऊँचा करना, हलाला-मुताह जैसी रिवाज अरब के बद्दू कबीलों को पढ़ा रहे थे ---- तो उनसे 94 साल पहले जन्मे महान गणितज्ञ, खगोलशास्त्री व ज्योतिषविद आर्यभट्ट (जन्म 476 ईस्वी) ने आर्यभटीय ग्रंथ में ब्रह्माण्ड की काल गणनाओ, ग्रहों की गति, astronomical constants, sine table, पाई (pi) का actual value सहित गोलाकार पृथ्वी अपने अक्ष पर घूमती है बता चुके थे।

ज्ञान-अध्यात्म ही नहीं वस्त्र-आभूषण और भाषा के क्षेत्र में भी भारत दुनिया से कहीं बहुत आगे रहा है। आज अगर नागा बाबा और दिगम्बर जैन साधु नंगे रहते हैं तो इसमें उनकी जाहिलता नहीं है, यह उनकी धार्मिक परम्परा है।

लॉजिकल आलोचना और जाहिल की तरह कुतर्क के बीच अंतर को समझे

शनिशिंगणापुर के शनिदेव के चबुतरे पर महिलाआें को प्रवेश करने के लिए प्रतिबंध क्यों ?


महाराष्ट्र के सुप्रसिद्ध शनिशिंगणापूर देवस्थान अंतर्गत शनिदेव के चबुतरेपर महिलाआें को प्रवेश के लिए प्रतिबंध होते हुए भी एक महिलाने चबुतरे पर चढकर शनिदेव को तेलार्पण किया । इस घटना के संदर्भ में एबीपी माझा, आयबीएन् लोकमत इत्यादी समाचार चैनलों पर स्त्रीमुक्ती, पुरषसत्ताक संस्कृति, मंदिर संस्कृति का प्रतिगामीपन, पुरानी विचारधारा आदी दृष्टिकोण को लेकर चर्चा चल रही है । यह विषय धार्मिक दृष्टि से अधिक महत्त्वपूर्ण होने के कारण हम इस विषय पर इसका आध्यत्मिक पक्ष रख रहे है ।

१. शनिशिंगणापूर में शनिदेव की स्वयंभू मूर्ती एक चबुतरे पर खडी है । मंदिर प्रबंधन ने कुछ वर्ष पूर्व ही चबुतरे पर चढकर शनिदेव को तेलार्पण करने पर प्रतिबंध लगा दिया था । इसलिए आज आए दिन सभी जाति-धर्म के स्री-पुरूष श्री शनिदेव का दर्शन दूर से ही करते हैं । इसलिए वहां मात्र महिलाआें पर ही प्रतिबंध है, ऐसा कहना अनुचित है ।

२. अध्यात्मशास्र के अनुसार प्रत्येक देवता का कार्य निर्धारित होता है । उस कार्य के अनुसार संबंधित देवता की प्रकटशक्ति कार्यरत होती है । शनि देवता उग्रदेवता होने के कारण उसमें होनेवाली प्रकटशक्ति के कारण महिलाआें को कष्ट होने की संभावना होती है । शनिशिंगणापूर में 400-500 वर्ष पूर्व शनिदेव का मंदिर बना । तबसे लेकर वहां महिलाआें के लिए चबुतरे के नीचे से दर्शन करने की परंपरा है ।

३. अशुद्ध होते समय, साथ ही चमड़े की वस्तूएं (घडी का पट्टा, कमर का पट्टा) आदी पहने हुए पुरूषों के लिए भी शनिदेव के चबुतरे पर प्रवेश करने के लिए प्रतिबंध है । इतना ही नहीं, अपितु पुरूषों को चबुतरे पर चढने के पूर्व स्नान के द्वारा शरिरशुद्धी करना, साथ ही केवल श्‍वेतवस्र ही धारण करना आवश्यक होतें है । इन नियमों का पालन करने वालों को ही मात्र शनिदेव के चबुतरे पर प्रवेश है ।

४. हिन्दु धर्म में कुछ देवताआें की उपासना कुछ विशिष्ट कारणों के लिए ही की जाती है । शनिदेव उन देवताआें में से एक हैं । विशिष्ट ग्रहदशा, जैसे कि साढेसाती आदि के समय में उनकी उपासना की जाती है । यह सकाम साधना होने के कारण सकाम साधना करनेवाले को उस साधना से संबंधित नियमों का पालन करनेसे मात्र ही उसका फल प्राप्त होता है । हमने यदि मनगंढत नियम बनाए, तो उसमेंसे केवल मानसिक संतोष होगा; परंतु आध्यात्मिक लाभ नहीं होगा ।

५. यह विषय स्त्रीमुक्ति का न होकर वह पूर्णरूप से आध्यात्मिक स्तर का है । इसलिए इस विषय पर चर्चा मात्र सामाजिक दृष्टिकोण से, या धर्म का अध्ययन न करने वालों से करना अनुचित ही है  किसी विषय के विशेषज्ञ को ही इस विषय पर बात करनी चाहिए । जैसे कोई वकील किसी रोगी को औषधि नहीं दे सकता, उसी प्रकार इस विषय पर सामाजिक कार्यकर्ताआें से समाचार चैनलों पर चर्चा नहीं की जा सकती ।

६. शनिदेव के चबुतरे पर महिलाआें के प्रवेश मिले, इसलिए स्रीमुक्ति का आक्रोश करने वाले धर्मद्रोही मस्जिदों में महिलाआें को प्रवेश मिले; इसलिए क्यों नहीं चिल्लाते ?

श्री. चेतन राजहंस, प्रवक्ता, सनातन संस्था