यह व्रत माघ कृषण पक्ष चौथ को किया जाता है|इसी दिन विद्या,बुद्धि ,गणेश तथा चंद्रमा की पूजा की जाती है|दिन भर व्रत रहने के बाद शाम को चन्द्रदर्शन होने पर दूध का अधर्य देकर चंद्रमा की विधिवत पूजा की जाती है|
कथा :-
एक बुदिया का लड़का सवेरे गायें चराने जंगल जाता था और शाम को लोटता था|सारे दिन की मेहनत के बाद आठ पैसे रोज के मिलते|लेकिन बुदिया चौथ माता का व्रत बराबर करती थी और व्रत के दिन पांच लड्डू बनाती थी दो चौथे के ,दो विनायक के,और एक अपना|इस तरह नियम पालन से वह मोटी होती जा रही थी|बेटे के दिमाग में आया के मैं सारा दिन मेहनत करता हूँ और यह मोटी होती जा रही है|
एक दिन संकट चौथ के दिन लड़का काम पे नही गया और माँ को देखता रहा की वो घी ले के आई और लडू बनाये और भोग लगाया|लड़का सब देखता रहा|
दुसरे दिन बुदिया को बोला-माँ!मैं कमाने जाऊंगा|यहाँ थोड़ी कमाई कम है |बुदिया के मना करने पर भी वो नही माना तो माँ ने जाते समय कुछ अनाज के दाने और एक पानी की कलशी दी|इनसे वो रोज़ कथा सुना करती थी|
सवेरे सवेरे वह चल पड़ा और चलते-चलते रास्ते में एक नदी आई|बरसात का मौसम था|नदी पार का कोई रास्ता नही था|बेटे को अपनी माँ की कही बात याद आई के संकट में माँ को याद करना|तो उसने चौथ माँ से विनती की जय चौथ माता!मेरी माँ मेरे लिए तेरा व्रत करती थी तो,बहता पानी कम हो जाये और पार जाने का रास्ता मिल जाये|इस तरह कलश का पानी लेकर छींटे दिए लडके को रास्ता मिल गया और लड़का पार कर गया|
आगे जंगल में पहुंचा तो शेर मिल गया लडके ने फिर से प्राथना की हे माता!अगर माँ ने तुम्हारा व्रत किया है तो यह शेर गाय बन जाये|लडके ने छींटे दिए तो वो गाय बन गया|
गाँव में पहुंचते ही लड़का एक बुदिया के घर गया और रहने की जगह मांगी |बुदिया ने हाँ कर दी|रात को लडके ने देखा की बुदिया माल्पुड़े बनाती जा रही है और रोती जा रही है,लडके ने पुछा क्या बात है?बुदिया ने बताया यहाँ राजा को छठे माह एक पकवान पकता है और हर बार एक आदमी की बली दी जाती है|आज मेरे सातवें लडके की बारी है|
लडके ने कहा कल तेरे लडके की जगह मैं चला जाऊंगा तो बुदिया बोली दुसरे के बदले कोन जाता है|लडके ने कहा की
ला मालपुए मुझे खिला|बुढिया ने खिला दिया लड़का खा कर सो गया|
सुबह होते ही राजे का सिपाही आया और लड़का उठ गया|लडके ने जाते वकत अपनी लाठी और कम्बल बुढ़िया को दिया और कहा की वापिस आ कर ले जाऊंगा|लड़का चला गया|जगह पर जाते ही लडके ने देवताओं को याद किया और अनाज के दाने निकलकर पानी की घन्टी ली और चौथ विनायक को याद करके अपने चारों तरफ देख और एक चोकी पर बैठ गया|कजावा चीन कर आग लगा दी गयी|तीसरे दिन कुछ कुम्हारों के लडके खेलते हुए उधर से निकले|उनके हाथ से एक पत्थर का टुकड़ा उछालकर कजवे पर जा पड़ा|पत्थर पड़ते ही उसमे से आवाज़ आई|
बात सारे गाँव में फैल गयी|लोगों ने अचंबा किया|कजावा खोला गया|कांसे-पीतल के बर्तन निकले,भीतर से आवाज़ आई धीरे खोलना अन्दर आदमी भी है|आखिर कजावा खोला गया|लड़का चौकी पर हँसता बैठा मिला|चौकी के चरों और जुहारे उगे हुए थे|
राजे के पास लडके को लाया गया|राजा ने सारा किस्सा सुना लडके ने बताया की मेरी माँ चौथ की कथा करती थी,और उसने ही आते वक्त मेरी रक्षा के लिए यह अनाज और पानी का कलश दिया था|राजा ने भाग्यवान लड़का देख कर अपनी लडकी का विवाह उस से कर दिया|और चौथ का व्रत करने का ढिंढोरा पिटवा दिया|कई दिन बीत गये राजा की बेटों की बहुओं ने ननद को ताना मारा की बाई जो पेट से निकले,हांडी से नही|राजकुमारी ने अपने पति से -माय जहाँ मायका और सास जहाँ ससुराल|लड़का यह बात समझ गया और उसने राजा और रानी से इसकी आज्ञा मांगी और अपनी गाँव की और अपनी पत्नी को लेकर चल पड़ा|
गाँव के पास पहुंचते ही देखने वालों ने बुदिया को खुशखबरी दी|बुढ़िया को विशवास नही हुआ उसने उपलों के ढेर पर चढ़ कर देखा|बेटा बहू आते दिखाई दिए|बुढ़िया ने चौथ विनायक को बार बार नमस्कार किया|और बेटे बहु ने आकर बुढ़िया के पैर छुए|घर में आनंद छा गया|गाँव में चौथ के व्रत का ढिंढोरा पिटवाया|सब लोक यह व्रत रखें और कहानी सुने|यह व्रत अगर बारह नही तो चार रखो|चार नही तो दो रख लें|
कथा :-
एक बुदिया का लड़का सवेरे गायें चराने जंगल जाता था और शाम को लोटता था|सारे दिन की मेहनत के बाद आठ पैसे रोज के मिलते|लेकिन बुदिया चौथ माता का व्रत बराबर करती थी और व्रत के दिन पांच लड्डू बनाती थी दो चौथे के ,दो विनायक के,और एक अपना|इस तरह नियम पालन से वह मोटी होती जा रही थी|बेटे के दिमाग में आया के मैं सारा दिन मेहनत करता हूँ और यह मोटी होती जा रही है|
एक दिन संकट चौथ के दिन लड़का काम पे नही गया और माँ को देखता रहा की वो घी ले के आई और लडू बनाये और भोग लगाया|लड़का सब देखता रहा|
दुसरे दिन बुदिया को बोला-माँ!मैं कमाने जाऊंगा|यहाँ थोड़ी कमाई कम है |बुदिया के मना करने पर भी वो नही माना तो माँ ने जाते समय कुछ अनाज के दाने और एक पानी की कलशी दी|इनसे वो रोज़ कथा सुना करती थी|
सवेरे सवेरे वह चल पड़ा और चलते-चलते रास्ते में एक नदी आई|बरसात का मौसम था|नदी पार का कोई रास्ता नही था|बेटे को अपनी माँ की कही बात याद आई के संकट में माँ को याद करना|तो उसने चौथ माँ से विनती की जय चौथ माता!मेरी माँ मेरे लिए तेरा व्रत करती थी तो,बहता पानी कम हो जाये और पार जाने का रास्ता मिल जाये|इस तरह कलश का पानी लेकर छींटे दिए लडके को रास्ता मिल गया और लड़का पार कर गया|
आगे जंगल में पहुंचा तो शेर मिल गया लडके ने फिर से प्राथना की हे माता!अगर माँ ने तुम्हारा व्रत किया है तो यह शेर गाय बन जाये|लडके ने छींटे दिए तो वो गाय बन गया|
गाँव में पहुंचते ही लड़का एक बुदिया के घर गया और रहने की जगह मांगी |बुदिया ने हाँ कर दी|रात को लडके ने देखा की बुदिया माल्पुड़े बनाती जा रही है और रोती जा रही है,लडके ने पुछा क्या बात है?बुदिया ने बताया यहाँ राजा को छठे माह एक पकवान पकता है और हर बार एक आदमी की बली दी जाती है|आज मेरे सातवें लडके की बारी है|
लडके ने कहा कल तेरे लडके की जगह मैं चला जाऊंगा तो बुदिया बोली दुसरे के बदले कोन जाता है|लडके ने कहा की
ला मालपुए मुझे खिला|बुढिया ने खिला दिया लड़का खा कर सो गया|
सुबह होते ही राजे का सिपाही आया और लड़का उठ गया|लडके ने जाते वकत अपनी लाठी और कम्बल बुढ़िया को दिया और कहा की वापिस आ कर ले जाऊंगा|लड़का चला गया|जगह पर जाते ही लडके ने देवताओं को याद किया और अनाज के दाने निकलकर पानी की घन्टी ली और चौथ विनायक को याद करके अपने चारों तरफ देख और एक चोकी पर बैठ गया|कजावा चीन कर आग लगा दी गयी|तीसरे दिन कुछ कुम्हारों के लडके खेलते हुए उधर से निकले|उनके हाथ से एक पत्थर का टुकड़ा उछालकर कजवे पर जा पड़ा|पत्थर पड़ते ही उसमे से आवाज़ आई|
बात सारे गाँव में फैल गयी|लोगों ने अचंबा किया|कजावा खोला गया|कांसे-पीतल के बर्तन निकले,भीतर से आवाज़ आई धीरे खोलना अन्दर आदमी भी है|आखिर कजावा खोला गया|लड़का चौकी पर हँसता बैठा मिला|चौकी के चरों और जुहारे उगे हुए थे|
राजे के पास लडके को लाया गया|राजा ने सारा किस्सा सुना लडके ने बताया की मेरी माँ चौथ की कथा करती थी,और उसने ही आते वक्त मेरी रक्षा के लिए यह अनाज और पानी का कलश दिया था|राजा ने भाग्यवान लड़का देख कर अपनी लडकी का विवाह उस से कर दिया|और चौथ का व्रत करने का ढिंढोरा पिटवा दिया|कई दिन बीत गये राजा की बेटों की बहुओं ने ननद को ताना मारा की बाई जो पेट से निकले,हांडी से नही|राजकुमारी ने अपने पति से -माय जहाँ मायका और सास जहाँ ससुराल|लड़का यह बात समझ गया और उसने राजा और रानी से इसकी आज्ञा मांगी और अपनी गाँव की और अपनी पत्नी को लेकर चल पड़ा|
गाँव के पास पहुंचते ही देखने वालों ने बुदिया को खुशखबरी दी|बुढ़िया को विशवास नही हुआ उसने उपलों के ढेर पर चढ़ कर देखा|बेटा बहू आते दिखाई दिए|बुढ़िया ने चौथ विनायक को बार बार नमस्कार किया|और बेटे बहु ने आकर बुढ़िया के पैर छुए|घर में आनंद छा गया|गाँव में चौथ के व्रत का ढिंढोरा पिटवाया|सब लोक यह व्रत रखें और कहानी सुने|यह व्रत अगर बारह नही तो चार रखो|चार नही तो दो रख लें|