रक्षाबंधन में अंकों का महत्व...

जन्मतिथि  के अनुसार यदि राखी के रंग का चयन किया जाये तो यह जातक के जीवन में अधिक खुशियाँ लाती है |
कच्चा धागा बहन अपने भाई कि कलाई पर बांधती  है और यही कच्चा धागा जीवनभर के सम्बन्ध को पक्का कर देता है |अगर बहन जन्तिथि के अनुसार राखी  के रंग का चयन करे और भाई जन्मतिथि  के अनुसार गिफ्ट के रंग को चुने तो यह दोनों के लिए सौभाग्य लाता है |
अंक १-

जिस जातक का जन्म दिनांक १,१०,२८,हो उसका शुभंक एक ही आता है|राखी के दिन इन यात्कों  को येलो,गोल्डन व ब्राउन राखी लाभप्रद रहती है |भाई अपनी बहनों को लाल रंग कि वस्तुए उपहार में दें |भाई बहन परस्पर लाभ के लिए गेंहू,गुड,कमल,लाल वस्त्र,तांबे के बर्तन,स्वर्ण का यथाशक्ति दान करें |
अंक २-
जिस व्यक्ति का जन्म दिनांक २,११,२०,२९,हो उनका शुभंक दो होगा |रक्षाबंधन पर उन्हें ग्रीन,व्हाइट और क्रीम राखी बंधना या बंधवाना शुभ होगा|काला ,बेंगनी व लाल रंग से दूर रहें|बहन को डार्क कि वस्तुए भेंट न करें |चावल,कपूर,सफेद वस्त्र,घी व बांस के बने पात्र का दान करने से लाभ होगा |
अंक ३-
जिस जातक का जनम ३,१२,२१,३० को हो उसका शुभंक तीन रहेगा | राखी के दिन इन्हें बेंगनी,वायलेट,येलो राखी शुभ संकेत देगी |इस शुभंक के जातकों को काले व लाल रंग से बचना चाहिए |हल्दी,चना दाल या पीले रंग का धान.पीला कपड़ा,स्वर्ण का दान शुभ अवसर प्रदान रेगा |
अंक ४-
जिन जातकों का जन्म ४,१३,२२,३१ तारीख का है उनका शुभंक चार रहेगा | रक्षाबंधन पर पीला ,गोल्डन,सकाये,ब्लू,और व्हाईट राखी बंधना या बंधवाना लाभप्रद रहेगा |इस शुभंक के जातक गाढे रंग जैसे डार्क ग्रीन ,ब्लेक,का त्याग करें|गेंहू,लाल वस्त्र,या कोई भी लाल धान का दान करें |
अंक ५-
जिस जातक का जन्म दिनांक ५,१४,२३,हो उनका शुभंक पांच रहेगा |राखी के दिन लाल.पर्पल,ग्रे,ब्राउन,शुभ संकेत देगा |हलके रंगों से बचना चाहिए |दान के लिए मसूर कि दाल,गुड,तांबे के बर्तन,लाल वस्त्र व टमाटर या हरी घास,मुंग,हरे वस्त्र का दान करना उतं रहेगा |
अंक ६-
जिन जातकों कि जनम तिथि ६,१५,२४ है उनका शुभंक छ होगा |राखी के दिन ब्लू,नेवी ब्लू,पिंक,रोज पिंक,रेड का उपयोग लाभदायी रहेगा |डार्क रेड से बचें |रंगीन वस्त्र,पोहा,चावल,सफेद दाल,स्वर्ण का यथाशक्ति दान लाभदायी रहेगा |
अंक ७-
जिन्जात्कों का जनम दिनाक ७,१६,२५ है उनका शुबंक सात रहेगा |राखी के दिन ग्रीन,व्हाईट,पीला व ऑरेंज शुभ रहेगा |इन्हें ग्रे व काले यानि दो रंगों को मिलकर बने रंगों से बचना चाहिए |दान के लिए हरी सब्जियां,सफेद उरद कि दाल,मुंग कि दाल,शहद,मिठाई का दान करना शुभ रहेगा |
अंक ८-
जिन जातकों का जन्म दिनांक ८,१४,२६ है उनका शुबंक आठ होगा |डार्क ग्रे,ब्लू,पर्पल,ब्लेक,डार्क ब्राउन कलर इनके लिए शुभ है | इन्हें रेड येलो,कलर से बचना चाहिए|काली उरद,सरसों,तेल,काला वस्त्र ,लोहे कि वस्तुयों का दान करना शुभ है |
अंक ९-
जिन जातको का जन्म दिनांक ९,१८,२७ है उनका शुभंक नो होगा |लाल,रोज कलर,पिंक.पर्पल,क्रीम सन कलर इनके लिए शुभफल देने वाला है |रक्षाबन्धन पर काले रंग से बचना चाहिय |दान के लिए गेंहू,मसूर कि दाल,लाल वस्त्र ,गुड घी,जैसे वस्तुए उतम  हैं |

मेधावी बनने के कुछ शास्त्रोक्त उपाय,,


  • शिशु जनम के पश्चात परिवार का प्रमुख या शिशु का पिता सोने कि सलाई अथवा सफेद दूब से बच्चे कि जीभ पर गोघृत तथा शहद से 'ओउम्'लिखे तो बच्चा आठ वर्ष कि आयु में अपूर्व मेधावी बालक बनकर ज्ञान,स्मरण शक्ति का धनी बन जाता है |पहले विद्वानों के कुल में यह प्रयोग खूब होता था |
  • किसी गुरु से ब्रह्मा द्वारा उपासना किये गए स्प्ताक्षर या द्राद्शाक्षर तारा मन्त्रों को सिद्ध कर 'शहद युक्त खीर 'से होम करने वाला साधक विद्यायों का निधि (खजाना)हो जाता है |मन्त्र गुरु से ही लेना श्रेस्कर है |
  • सफेद दूब कि कलम से गोरोचन से जिस बच्चे कि नाल भी न काटी गयी हो उसकी जीभ पर'ओम'मन्त्र लिखने पर बालक बहुत बुद्धिमान,ज्ञानी तथा विद्या का उपासक ,स्मरण शक्ति युक्त बन जाता है |
  • दुधिया बच(पंसारियों कि दूकान पर उपलब्ध )दस हजार मन्त्र जप से सिद्ध कर बालक के गले में बाँध देवे |जब बच्चा बारहवें वर्ष में प्रवेश करे तो उस बच को चूर्ण बनाकर गोदुग्ध से,गोघर्त व मधु मिश्रित कर पीवे तो बालक अपूर्व विद्वान व स्मरण शक्ति सम्पन्न हो जाता है |आयुर्वेद में बच से 'सारस्वत चूर्ण'बनाया जाता है |औषधि विक्रेताओं के पास उपलब्ध होता है |यह चूर्ण गाय का ६ माशे घी व १ टोला शहद मिलकर चाट कर रोज गाय का दूध पिने से यही लक्षण उत्पन्न हो जाते है |
  • मालकांगनी का तेल(आयुर्वेदिक औषधि विक्रेताओं के पास उपलब्ध हो जाता है)१ तोला,चन्द्र या सूर्य ग्रहण  के दिन पीकर पूर्व कि तरफ मुख कर गले तक पानी में डूब कर सरस्वती मन्त्र का जप करने से साधक विद्यायों का स्वामी बन जाता है |
  • रात में वस्त्रहीन होकर लज्जा और भय रहित होकर कृष्ण पक्ष कि च्तुर्द्र्शी तिथि को आठ वर्ष कि आयु के दो बालकों को अपने सामने बिठाकर उन दोनों के सिरों पर एक-एक हाथ रखते हुए परगो भव विद्यानां सीधी म्वाप्नुही कहें तो दोनों बालक वेदान्त तथा कानून के पंडित बनते हैं |
  • प्रात काल सोकर उठते ही मुख शुधि करने के पश्चात प्रतिदिन वागिशवरी मन्त्र के एक हजार मन्त्र जाप छ महीने तक करें तो अत्युत्क्रिष्ट वाक्शक्ति मिलती है |
  • ब्रह्मम्हूर्त में उठकर पवित्र हो, शांत भाव से स्वयम तथा इच्छित ज्ञान का ध्यान करें |रोज एक वर्ष इस पद्दति से जप करने पर प्राणी विद्यायों का स्वामी बन जाता है |
  • कदम्ब के फूल और बेल,फ्लाश पुष्प,घी और गंधावरत के पुष्पों कि आहुति घृत-मधु के साथ देने व सरस्वती मंत जाप से व्यक्ति वाणी का स्वामी हो जाता है |वह श्रुत्ध्र,कवि,मधुर-स्वर वाला गायक हो जाता है |
  • ब्राह्मी व दुधिया बच को मिलकर,पिस कर पिली-भूरी गाय का घी मिलाकर पिने से साधक सम्पूर्ण शास्त्रों का ज्ञाता बन जाता है |

संतान प्राप्ति के विभिन्न उपाय...


हमारे ऋषि महर्षियों ने हजारो साल पहले ही संतान प्राप्ति के कुछ नियम और सयम बताये है ,संसार की उत्पत्ति पालन और विनाश का क्रम पृथ्वी पर हमेशा से चलता रहा है,और आगे भी चलता रहेगा। इस क्रम के अन्दर पहले जड चेतन का जन्म होता है,फ़िर उसका पालन होता है और समयानुसार उसका विनास होता है।
मनुष्य जन्म के बाद उसके लिये चार पुरुषार्थ सामने आते है,पहले धर्म उसके बाद अर्थ फ़िर काम और अन्त में मोक्ष, धर्म का मतलब पूजा पाठ और अन्य धार्मिक क्रियाओं से पूरी तरह से नही पोतना चाहिये,धर्म का मतलब मर्यादा में चलने से होता है,माता को माता समझना पिता को पिता का आदर देना अन्य परिवार और समाज को यथा स्थिति आदर सत्कार और सबके प्रति आस्था रखना ही धर्म कहा गया है,अर्थ से अपने और परिवार के जीवन यापन और समाज में अपनी प्रतिष्ठा को कायम रखने का कारण माना जाता है,काम का मतलब अपने द्वारा आगे की संतति को पैदा करने के लिये स्त्री को पति और पुरुष को पत्नी की कामना करनी पडती है,पत्नी का कार्य धरती की तरह से है और पुरुष का कार्य हवा की तरह या आसमान की तरह से है,गर्भाधान भी स्त्री को ही करना पडता है,वह बात अलग है कि पादपों में अमर बेल या दूसरे हवा में पलने वाले पादपों की तरह से कोई पुरुष भी गर्भाधान करले। धरती पर समय पर बीज का रोपड किया जाता है,तो बीज की उत्पत्ति और उगने वाले पेड का विकास सुचारु रूप से होता रहता है,और समय आने पर उच्चतम फ़लों की प्राप्ति होती है,अगर वर्षा ऋतु वाले बीज को ग्रीष्म ऋतु में रोपड कर दिया जावे तो वह अपनी प्रकृति के अनुसार उसी प्रकार के मौसम और रख रखाव की आवश्यकता को चाहेगा,और नही मिल पाया तो वह सूख कर खत्म हो जायेगा,इसी प्रकार से प्रकृति के अनुसार पुरुष और स्त्री को गर्भाधान का कारण समझ लेना चाहिये। जिनका पालन करने से आप तो संतानवान होंगे ही आप की संतान भी आगे कभी दुखों का सामना नहीं करेगा…

कुछ राते ये भी है जिसमे हमें सम्भोग करने से बचना चाहिए .. जैसे अष्टमी, एकादशी, त्रयोदशी, चतुर्दशी, पूर्णिमा और अमवाश्या .चन्द्रावती ऋषि का कथन है कि लड़का-लड़की का जन्म गर्भाधान के समय स्त्री-पुरुष के दायां-बायां श्वास क्रिया, पिंगला-तूड़ा नाड़ी, सूर्यस्वर तथा चन्द्रस्वर की स्थिति पर निर्भर करता है।गर्भाधान के समय स्त्री का दाहिना श्वास चले तो पुत्री तथा बायां श्वास चले तो पुत्र होगा।

यदि आप पुत्र प्राप्त करना चाहते हैं और वह भी गुणवान, तो हम आपकी सुविधा के लिए हम यहाँ माहवारी के बाद की विभिन्न रात्रियों की महत्वपूर्ण जानकारी दे रहे हैं।

मासिक स्राव के बाद 4, 6, 8, 10, 12, 14 एवं 16वीं रात्रि के गर्भाधान से पुत्र तथा 5, 7, 9, 11, 13 एवं 15वीं रात्रि के गर्भाधान से कन्या जन्म लेती है।

१- चौथी रात्रि के गर्भ से पैदा पुत्र अल्पायु और दरिद्र होता है।

२- पाँचवीं रात्रि के गर्भ से जन्मी कन्या भविष्य में सिर्फ लड़की पैदा करेगी।

३- छठवीं रात्रि के गर्भ से मध्यम आयु वाला पुत्र जन्म लेगा।

४- सातवीं रात्रि के गर्भ से पैदा होने वाली कन्या बांझ होगी।

५- आठवीं रात्रि के गर्भ से पैदा पुत्र ऐश्वर्यशाली होता है।

६- नौवीं रात्रि के गर्भ से ऐश्वर्यशालिनी पुत्री पैदा होती है।

७- दसवीं रात्रि के गर्भ से चतुर पुत्र का जन्म होता है।

८- ग्यारहवीं रात्रि के गर्भ से चरित्रहीन पुत्री पैदा होती है।

९- बारहवीं रात्रि के गर्भ से पुरुषोत्तम पुत्र जन्म लेता है।

१०- तेरहवीं रात्रि के गर्म से वर्णसंकर पुत्री जन्म लेती है।

११- चौदहवीं रात्रि के गर्भ से उत्तम पुत्र का जन्म होता है।

१२- पंद्रहवीं रात्रि के गर्भ से सौभाग्यवती पुत्री पैदा होती है।

१३- सोलहवीं रात्रि के गर्भ से सर्वगुण संपन्न, पुत्र पैदा होता है।

सहवास से निवृत्त होते ही पत्नी को दाहिनी करवट से 10-15 मिनट लेटे रहना चाहिए, एमदम से नहीं उठना चाहिए।


संतान प्राप्ति के लिए करें यह उपायपति-पत्नी की यह प्रबल इच्छा होती है कि उनके यहां उत्तम संतान का जन्म हो क्योंकि बिना बच्चे को परिवार पूरा नहीं माना जाता। लेकिन कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जिनके यहां संतान का जन्म नहीं होता। इसके कई कारण हो सकते हैं। इस समस्या के निदान के लिए चिकित्सकीय मार्गदर्शन तो आवश्यक है ही लेकिन साथ ही यदि नीचे लिखा उपाय भी किया जाए तो संतान प्राप्ति की संभावना और भी अधिक हो जाती है।

उपाय

बुधवार के दिन सुबह जल्दी उठकर पति-पत्नी संयुक्त रूप से बाल गणेश की पूजा करें तथा अपने घर के मुख्य द्वार पर बाल गणपति की प्रतिमा लगाएं। आते-जाते इस प्रतिमा के समक्ष नमस्कार करें। प्रति बुधवार को गणेशजी का पूजन करने के बाद नीचे लिखे मंत्र का विधि-विधान से जप करें। इस मंत्र का जप करने से संतान प्राप्ति की इच्छा पूरी होती है।

मंत्र

संतान गणपतये नम: गर्भदोषहो नम: पुत्र पौत्राय नम:।

जप विधि


- प्रति बुधवार सुबह जल्दी उठकर सर्वप्रथम स्नान आदि नित्य कर्म से निवृत्त होकर साफ वस्त्र पहनें। 
- इसके बाद बाल गणेश की पूजा करें और उन्हें दुर्गा चढ़ाएं साथ ही लड्डूओं का भोग भी लगाएं। 
- इसके बाद पूर्व दिशा की ओर मुख करके कुश के आसन पर बैठें।
- तत्पश्चात हरे पन्ने की माला से ऊपर लिखे मंत्र का जप करें। मंत्र का प्रभाव आपको कुछ ही समय में दिखने लगेगा। 

पुत्र प्राप्ति का सरल मन्त्र 

आज भी कुछ परंपरावादी लोग यह मानते हैं कि वंश मात्र लड़कों से ही चलता है। जबकि पुत्रियां चारों दिशाओं में अपनी विजय पताका लहरा रही है। पुत्र प्राप्ति के लिए लोग कई प्रकार के तंत्र-मंत्र-यंत्र और टोटके अपनाते हैं जो गलत भी हो सकते हैं। यहां पेश है पुत्र प्राप्ति के लिए अत्यंत सरल उपाय। 

पुत्र की प्राप्ति के लिए रखें मंगलवार को व्रत 

हर दंपत्ति की कामना होती है कि उनको सुयोग्य संतान हो। लेकिन कुछ ऐसे लोग आज भी इस दुनिया में है जो मात्र पुत्र को ही संतान के रूप में चाहते हैं। ऐसे लोगों के लिए प्रस्तुत है अचूक उपाय। मंगलवार का उपवास रखने से मनचाही संतान की प्राप्ति होती है। मुख्यत: पुत्र की चाह रखने वालों के लिए यह मंगलवार व्रत होता है। मंगलवार व्रत कथा और विधि की संपूर्ण जानकारी पढ़ें। 

मंगलवार व्रत विधि 
यह व्रत शुक्ल पक्ष के प्रथम मंगलवार से रखा जाता है। इस व्रत को आठ मंगलवार अवश्य करें। इस व्रत में गेहूं और गुड़ से बना भोजन ही करना चाहिए। एक ही बार भोजन करें। लाल फूल चढ़ाएं और लाल वस्त्र ही धारण करें। अंत में हनुमान जी की पूजा करें।
मंगलवार व्रत कथा 
एक निसंतान ब्राह्मण दंपत्ति काफी दुःखी थे। ब्राह्मण एक दिन वन में पूजा करने गया। वह हनुमान जी से पुत्र की कामना करने लगा। घर पर उसकी स्त्री भी पुत्र प्राप्ति के लिए मंगलवार का व्रत करती थी। मंगलवार को व्रत के अंत में हनुमान जी को भोग लगाकर भोजन करती थी।


एक बार व्रत के दिन ब्राह्मणी ना भोजन बना पाई, और ना भोग ही लगा सकी। तब उसने प्रण किया कि अगले मंगल को ही भोग लगाकर अन्न ग्रहण करेगी। भूखी-प्यासी छः दिन तक रहने से अगले मंगलवार को वह बेहोश हो गई। 

हनुमान जी उसकी निष्ठा और लगन को देखकर प्रसन्न हो गए। उसे दर्शन देकर कहा कि वे उससे प्रसन्न हैं। उसे बालक देंगे, जो कि उसकी सेवा किया करेगा। हनुमान जी ने उस स्त्री को पुत्र रत्न दिया और अंतरध्यान हो गए। 

ब्राह्मणी अति प्रसन्न हो गई। उसने उस बालक का नाम मंगल रखा। जब ब्राह्मण घर आया, तो बालक को देख पूछा कि वह कौन है? पत्नी ने सारी कथा अपने स्वामी को बताई। पत्नी की बातों को छल पूर्ण जान ब्राह्मण को अपनी पत्नी के चरित्र पर संदेह हुआ। 

एक दिन मौका देख ब्राह्मण ने बालक को कुंए में गिरा दिया। घर पर पत्नी के पूछने पर ब्राह्मण घबराया। पीछे से मंगल मुस्कुराता हुआ आ गया। ब्राह्मण आश्चर्यचकित रह गया। 

रात को हनुमानजी ने उसे सपने में सारी कथा बताई, तो ब्राह्मण प्रसन्न हुआ। फ़िर वह दम्पति मंगल का व्रत रखकर आनंद का जीवन व्यतीत करने लगे। तब से यह व्रत पुत्र प्राप्ति के लिए रखा जाता है।



पुत्र प्राप्ति का अन्य मन्त्र 

अगर आप अपने वंश को आगे बढ़ाने के लिए पुत्रप्राप्ति को लेकर परेशान हैं तो अब आपको परेशान होने की जरुरत नहीं है, क्योकि आज हम आपको वह सरल उपाय बताने जा रहे है जिसके द्वारा आप को पुत्ररत्न की प्राप्ति हो सकती है|

तो आइये जाने क्या है पुत्रप्राप्ति का आसान मंत्र -

संतानप्राप्ती की इच्छा रखने वाली महिलाएं भगवान गजानन (गणेश जी) की मूर्ति के सामने प्रतिदिन स्नानादि करके एक माह तक बिल्ब फल चढ़ाकर इस मंत्र 'ॐ पार्वतीप्रियनंदनाय नम:' मंत्र की 11 माला प्रतिदिन जप करने से पुत्ररत्न की प्राप्ति होती है|



सावन में पाए शिव को...



हिन्दू धर्म की पौराणिक मान्यता के अनुसार सावन महीने को देवों के देव महादेव भगवान शंकर का महीना माना जाता है। इस संबंध में पौराणिक कथा है कि जब सनत कुमारों ने महादेव से उन्हें सावन महीना प्रिय होने का कारण पूछा तो महादेव भगवान शिव ने बताया कि जब देवी सती ने अपने पिता दक्ष के घर में योगशक्ति से शरीर त्याग किया था, उससे पहले देवी सती ने महादेव को हर जन्म में पति के रूप में पाने का प्रण किया।पुराणों में भगवान शिव की उपासना का उल्लेख बताया गया है। शिव की उपासना करते समय पंचाक्षरी मंत्र 'ॐ नम: शिवाय' और 'महामृत्युंजय' आदि मंत्र जप बहुत खास है। इन मंत्रों के जप-अनुष्ठान से सभी प्रकार के दुख, भय, रोग, मृत्युभय आदि दूर होकर मनुष्‍य को दीर्घायु की प्राप्ति होती है। देश-दुनिया भर में होने वाले उपद्रवों की शांति तथा अभीष्ट फल प्राप्ति को लेकर रूद्राभिषेक आदि यज्ञ-अनुष्ठान किए जाते हैं। इसमें शिवोपासना में पार्थिव पूजा का भी विशेष महत्व होने के साथ-साथ शिव की मानस पूजा का भी महत्व है। 
सावन के महीने में भगवान शंकर की विशेष रूप से पूजा की जाती है। इस दौरान पूजन की शुरूआत महादेव के अभिषेक के साथ की जाती है। अभिषेक में महादेव को जल, दूध, दही, घी, शक्कर, शहद, गंगाजल, गन्ना रस आदि से स्नान कराया जाता है। अभिषेक के बाद बेलपत्र, समीपत्र, दूब, कुशा, कमल, नीलकमल, ऑक मदार, जंवाफूल कनेर, राई फूल आदि से शिवजी को प्रसन्न किया जाता है। इसके साथ की भोग के रूप में धतूरा, भाँग और श्रीफल महादेव को चढ़ाया जाता है। एक पौराणिक कथा का उल्लेख है कि समुद्र मंथन के समय हलाहल विष निकलने के बाद जब महादेव इस विष का पान करते हैं तो वह मूर्च्छित हो जाते हैं। उनकी दशा देखकर सभी देवी-देवता भयभीत हो जाते हैं और उन्हें होश में लाने के लिए निकट में जो चीजें उपलब्ध होती हैं, उनसे महादेव को स्नान कराने लगते हैं। इसके बाद से ही जल से लेकर तमाम उन चीजों से महादेव का अभिषेक किया जाता है।
अगर आपके लिए हर रोज शिव आराधना करना संभव नहीं हो तो सोमवार के दिन आप शिव पूजन और व्रत करके शिव भक्ति को प्राप्त कर सकते हैं। और इसके लिए सावन माह तो अति उत्तम हैं। सावन मास के दौरान एक महीने तक आप भगवान शिव की विशेष पूजा-अर्चना कर साल भर की पूजा का फल प्राप्त सकते हैं। शिव को दूध-जल, बिल्व पत्र, बेल फल, धतूरे-गेंदे के फूल और जलेबी-इमरती का भोग लगाकर शिव की सफल आराधना कर सकते हैं।
भगवान शिव को भक्त प्रसन्न करने के लिए बेलपत्र और समीपत्र चढ़ाते हैं। इस संबंध में एक पौराणिक कथा के अनुसार जब 89 हजार ऋषियों ने महादेव को प्रसन्न करने की विधि परम पिता ब्रह्मा से पूछी तो ब्रह्मदेव ने बताया कि महादेव सौ कमल चढ़ाने से जितने प्रसन्न होते हैं, उतना ही एक नीलकमल चढ़ाने पर होते हैं। ऐसे ही एक हजार नीलकमल के बराबर एक बेलपत्र और एक हजार बेलपत्र चढ़ाने के फल के बराबर एक समीपत्र का महत्व होता है।
विष की उग्रता को कम करने के लिए अत्यंत ठंडी तासीर वाले हिमांशु अर्थात चन्द्रमा को धारण कर रखा है। और श्रावण मास आते-आते प्रचण्ड रश्मि-पुंज युक्त सूर्य ( वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़ में किरणें उग्र आतपयुक्त होती हैं।) को भी अपने आगोश में शीतलता प्रदान करने लगते हैं।
भगवान सूर्य और शिव की एकात्मकता का बहुत ही अच्छा निरूपण शिव पुराण की वायवीय संहिता में किया गया है।
 यथा-
'दिवाकरो महेशस्यमूर्तिर्दीप्त सुमण्डलः।
निर्गुणो गुणसंकीर्णस्तथैव गुणकेवलः।
अविकारात्मकष्चाद्य एकः सामान्यविक्रियः।
असाधारणकर्मा च सृष्टिस्थितिलयक्रमात्‌। एवं त्रिधा चतुर्द्धा च विभक्तः पंचधा पुनः।
चतुर्थावरणे षम्भोः पूजिताष्चनुगैः सह। शिवप्रियः शिवासक्तः शिवपादार्चने रतः।
सत्कृत्य शिवयोराज्ञां स मे दिषतु मंगलम्‌।'
अर्थात् भगवान सूर्य महेश्वर की मूर्ति हैं, उनका सुन्दर मण्डल दीप्तिमान है, वे निर्गुण होते हुए भी कल्याण मय गुणों से युक्त हैं, केवल सुणरूप हैं, निर्विकार, सबके आदि कारण और एकमात्र (अद्वितीय) हैं।
सावन के प्रधान देवता शिव हैं । उन्हें सर्वाधिक प्रसन्न करने का सर्वोत्तम उपाय गंगाजल से जलाभिषेक है । सावन के सोमवार को शिव अर्चना का विशेष महत्व होता है । सावन में किस प्रकार शिव की आराधना विशेष फलादयी हो जाती है, सावन शिव को अत्यंत प्रिय क्यों है, धर्मग्रंथों में इसकी प्रसंगवश व्याख्या की गई है
सावन के महीने में शिवजी को रोजाना बिल्व पत्र चढ़ाए। बिल्व पत्र की संख्या 108 हो तो सबसे अच्छा परिणाम मिलता है।
शिवजी का पूजन कर निर्माल्य का तिलक लगाए तो भी जल्दी विवाह के योग बनते हैं।
हर सोमवार खासतौर पर सावन माह के सोमवार को शिवलिंग का जल या पंचामृत से अभिषेक करें।


प्रात: काल स्नान कर घर में या शिव मंदिर में शिवलिंग को शुद्ध जल से स्नान कराएं।



शिवलिंग पर दूध मिले जल की धारा अर्पित करें। इस दौरान शिव का पंचाक्षरी मंत्र ॐ नम: शिवाय का स्मरण करते रहें। फिर से पवित्र जल से स्नान कराकर शिव की पूजा गंध, अक्षत, बिल्वपत्र अर्पित करें। इन सामग्रियों के अलावा वाहन सुख की कामना पूरी करने के लिए विशेष रूप से भगवान शिव को चमेली के सुगंधित, स्वच्छ पुष्प से अर्चन व तेल का लेपन नीचे लिखें सरल मंत्रों से अर्पित करें
-ॐ हराय नम:



-ॐ महेश्वराय नम:

-ॐ शम्भवे नम:

-ॐ शूलपाणये नम:

-ॐ पशुपतये नम:

-चमेली के फूल व तेल अर्पितकर शिव जी को यथाशक्ति दूध से बने मीठे पकवानों का भोग लगाएं। आखिर में शिवलिंग की घी के दीप और कर्पूर आरती कर मनोकामना पूरी होने की प्रार्थना करें। धार्मिक मान्यताओं में ऐसी शिव पूजा बिना संशय के सर्व सुख, कीर्ति, प्रसिद्धि, सामाजिक प्रतिष्ठा व मनचाहा वाहन सुख प्रदान करती है।

मेष-रिश्तों में समझ की कमी के कारण रिश्ते टूटने की स्थिति बन सकती है।

क्या करें-सात अशोक वृक्ष के पत्ते घर के मंदिर में रखें।
क्या न करें-यात्रा से बचें।

वृष-परिवार व मित्रों का विरोध झेलना पढ़ सकता है इसका कारण आपका स्वाभाव है।

क्या करें-धनदा यंत्र घर में स्थापित कर दर्शन करें तो आशातीत लाभ होगा।

क्या न करें-दूसरे के विवाद से बचें।

मिथुन-मानसिक तनाव से बचना ज़रूरी है। परिवार की आवश्यकताओं पर ध्यान दें।

क्या करें-हरे रंग का रुमाल अपने पास रखें।

क्या न करें-कुछ समय के लिए मित्रों से दूरी बनाएं।

कर्क-पार्टनर से झगड़ा संभावित है। व्यहार सौम्य रखें, विवाद से बचने का प्रयास करें।

क्या करें-शिवयंत्र को घर के पूजन स्थल पर स्थापित कर पूजन करें।

क्या न करें-किसी के गलत कार्य में सहयोग न करें।

सिंह-आपको परिवार में सज्जनों के संम्पर्क में आने के अवसर प्राप्त होगें।

क्या करें-ॐ नम: शिवाय का एक रुद्राक्ष माला जप करें।

क्या न करें-कठोर वचन न बोलें।

कन्या-कोई अप्रिय सूचना आपको मानसिक अस्थिरता दे सकता है।

क्या करें-आज दोपहर दही-भात का भोग लगाकर ग्रहण करें।

क्या न करें-ब्रह्मण का अनादर न करें।

तुला-कहीं दूर या विदेश में रह रहा आपका कोई मित्र मददगार सिद्ध हो सकता है।

क्या करें-चांदी का चंद्र यंत्र तथा मंगल यंत्र बनवाकर घर के मंदिर में स्थापित करें।

क्या न करें-व्यर्थ की यात्रा को टालें।

वृश्चिक-साथी के साथ भ्रमण के लिए जा सकते हैं।

क्या करें-कन्याओं को हरे रंग के वस्त्र उपहार में भेंट करें।

क्या न करें-किसी का उपहास न करें।

धनु-कोर्ट कचहरी के मामलों से दूर रहना हितकारी रहेगा।

क्या करें-ॐ हिरण्यगर्भाय अव्यक्त रूपिणो नम: का मोती की माला से जाप करें।

क्या न करें-किसी का दिल न दुखाएं।

मकर-आपकी बच्चों से जुड़ी लालसा भी पूरी हो सकती है।

क्या करें-भगवान विष्णु की पूजा करें।

क्या न करें-निवेश न करें।

कुम्भ-अधिक समय परिवार को देने का प्रयास करें।

क्या करें-हनुमानजी को चोला चढ़ाएं।

क्या न करें-तनाव ना लें।

मीन-परिवार के साथ काम करने की आपकी लालसा पूर्ण होगी।

क्या करें-श्री सूक्त का पाठ करें।

क्या न करें-भाग दौड़ अधिक ना करें।

कालसर्पदोष के निवारण के लिये नाग पंचमी के दिन शिव की पूजा कर चांदी के नाग का जोड़ा चढ़ाएं और एक जोड़ा चांदी का सर्प बहते जल में बहाएं।
कालसर्प योग हो और जीवन में लगातार गंभीर बाधा आ रही हो तब किसी विद्वान ब्राह्मण से राहु और केतु के मंत्रों का जप कराया जाना चाहिए और उनकी सलाह से राहु और केतु की वस्तुओं का दान या तुलादान करना चाहिए।
सावन में हर राशि का व्यक्ति शिव पूजन से पहले काले तिल जल में मिलाकर स्नान करे। शिव पूजा में कनेर, मौलसिरी और बेलपत्र जरुर चढ़ावें। इसके अलावा जानते हैं कि किस राशि के व्यक्ति को किस पूजा सामग्री से शिव पूजा अधिक शुभ फल देती है
मेष – इस राशि के व्यक्ति जल में गुड़ मिलाकर शिव का अभिषेक करें। शक्कर या गुड़ की मीठी रोटी बनाकर शिव को भोग लगाएं। लाल चंदन व कनेर के फूल चढ़ावें।

वृष- इस राशि के लोगों के लिए दही से शिव का अभिषेक शुभ फल देता है। इसके अलावा चावल, सफेद चंदन, सफेद फूल और अक्षत यानि चावल चढ़ावें।

मिथुन – इस राशि का व्यक्ति गन्ने के रस से शिव अभिषेक करे। अन्य पूजा सामग्री में मूंग, दूर्वा और कुशा भी अर्पित करें।

कर्क – इस राशि के शिवभक्त घी से भगवान शिव का अभिषेक करें। साथ ही कच्चा दूध, सफेद आंकड़े का फूल और शंखपुष्पी भी चढ़ावें।

सिंह – सिंह राशि के व्यक्ति गुड़ के जल से शिव अभिषेक करें। वह गुड़ और चावल से बनी खीर का भोग शिव को लगाएं। गेहूं और मंदार के फूल भी चढ़ाएं।

कन्या – इस राशि के व्यक्ति गन्ने के रस से शिवलिंग का अभिषेक करें। शिव को भांग, दुर्वा व पान चढ़ाएं।

तुला – इस राशि के जातक इत्र या सुगंधित तेल से शिव का अभिषेक करें और दही, शहद और श्रीखंड का प्रसाद चढ़ाएं। सफेद फूल भी पूजा में शिव को अर्पित करें।

वृश्चिक – पंचामृत से शिव का अभिषेक वृश्चिक राशि के जातकों के लिए शीघ्र फल देने वाला माना जाता है। साथ ही लाल फूल भी शिव को जरुर चढ़ाएं।

धनु – इस राशि के जातक दूध में हल्दी मिलाकर शिव का अभिषेक करे। भगवान को चने के आटे और मिश्री से मिठाई तैयार कर भोग लगाएं। पीले या गेंदे के फूल पूजा में अर्पित करें।

मकर – नारियल के पानी से शिव का अभिषेक मकर राशि के जातकों को विशेष फल देता है। साथ ही उड़द की दाल से तैयार मिष्ठान्न का भगवान को भोग लगाएं। नीले कमल का फूल भी भगवान का चढ़ाएं।

कुंभ – इस राशि के व्यक्ति को तिल के तेल से अभिषेक करना चाहिए। उड़द से बनी मिठाई का भोग लगाएं और शमी के फूल से पूजा में अर्पित करें। यह शनि पीड़ा को भी कम करता है।

मीन – इस राशि के जातक दूध में केशर मिलाकर शिव पर चढ़ाएं। भात और दही मिलाकर भोग लगाएं। पीली सरसों और नागकेसर से शिव का चढ़ाएं।

पावन है सावन...

कहा जाता है की सावन मॉस सर्वकामना सीधी अमृत महोत्सव है |इस माह में जो विशिष्ट शिव साधना को प्राप्त कर लेता है,उसका दुर्भाग्य भी सौभाग्य में बदल जाता है |भगवान शिव की यह साधना उसकी दरिद्रता को मिटाकर सम्पन्नता की पंक्तियाँ लिख देती है |यदि जीवन में कोई समस्या है,तों कलयुग में शिव साधना अचूक रामबाण दवा है |
सावन माह भगवान भोले नाथ के नाम है |यदि जीवन में शिवत्व प्राप्त करना है,तों सावन माह से अच्छा कोई मुहूर्त नहीं है |इस पुन्य मुहूर्त की प्रतीक्षा हर साधक को रहती है |

शिवकृपा है,तों खुशियाँ हैं...

माता पार्वती,शक्ति स्वरूप है |सभी देवताओं में अग्र पूज्य गणपति भी शिवपुत्र हैं,जो सभी प्रकार के विघ्न ,अड़चनों,बाधाओं को समाप्त करने वाले देव हैं |इसलिए शिव की आराधना को बहुत ही शुभफलदायी माना जाता है |कहते हैं,सावन मॉस में शिव की साधना करने से गणपति साधना का भी साक्षात फल मिलता है,इसलिए कहा गया है-'जहां शिव है,वहाँ सबकुछ है...और जिसने शिव को प्राप्त कर लिया,उसने जीवन में पूर्णता प्राप्त कर ली |'

शिव पूजन विधि 

वैदिक दर्शन में शिव को वेदो के स्वरूप माना  गया है |'वेद:शिव शिवो वेद:'इस सूत्र के आधार शिव पूजन की कई प्रकार की विधियाँ प्रचलित हैं |इनमे से सर्वमान्य पूजन विधि इस प्रकार है :

  • सर्वप्रथम स्थान आदि क्रियाओं से शुद्ध होकर निवास स्थान में पूजनं स्थल के अंतर्गत शिवलिंग के समक्ष आसन ग्रहण करें |फिर माता-पिता,गुरुजन आदि का ध्यान करें |इसके पश्चात भगवान शिव के समस्त गनों का आव्हान करें |
  • पंचोपचार पूजन की विधि :तीर्थ जल,(गंगा,नर्मदा,यमुना आदि )गंध(चंदन )पुष्प को कलश में लेकर सुवासित जल से शिव पर जलधारा से अभिषेक करें |इसके बाद शिवलिंग को साफ़ कपड़े से पोंछकर चंदन आदि से लेपित करें|
  • बेलपत्र,शमीपत्र,पुष्प आदि को शिवलिंग  पर च्दायें |
  • धुप,दीप तथा नैवेघ का भोग लगाएं  |
  • आरती और पुष्पांजली अर्पित कर प्राथना करें |
पूरे सावन मॉस में नित इस विधि से शिव पूजन किया जा सकता सोमवार  के दिन इसी क्रम के साथ पंचामृत(दूध,दही,घी,शहद,और शक्कर )से भी स्नान कराया जा सकता है |शास्त्रों में शिवपूजन के लिए उपयुक्त समय प्रदोष काल(शाम के वक्त )को माना जाता है |पर उपर बताए गए क्रम द्वारा पूजन सुबह-शाम या दोनों ही समय किया जा सकता है |
मन्त्र जाप 
पूरेसावं मॉस में रोज शिव पूजन के साथ"ओम नमः शिवाय';मंत्र का जाप भी कर सकते है |ये मन्त्र श्रेष्ठ फलदायी होता है |इसे लघु मृतुन्जय मन्त्र के नाम से भी जाना जाता है |
यदि सम्भव ही,तों शिव पंचाक्षर स्त्रोत का नित पाठ करें |शुभफल की प्राप्ति होगी |