दीपावली पूजन विधि


कार्तिक मास की अमावस्या का दिन दीपावली के रूप में पूरे देश में बडी धूम-धाम से मनाया जाता हैं। इसे रोशनी का पर्व भी कहा जाता है।

कहा जाता है कि कार्तिक अमावस्या को भगवान रामचन्द्र जी चौदह वर्ष का बनवास पूरा कर अयोध्या लौटे थे। अयोध्या वासियों ने श्री रामचन्द्र के लौटने की खुशी में दीप जलाकर खुशियाँ मनायी थीं, इसी याद में आज तक दीपावली पर दीपक जलाए जाते हैं और कहते हैं कि इसी दिन महाराजा विक्रमादित्य का राजतिलक भी हुआ था। आज के दिन व्यापारी अपने बही खाते बदलते है तथा लाभ हानि का ब्यौरा तैयार करते हैं। दीपावली पर जुआ खेलने की भी प्रथा हैं। इसका प्रधान लक्ष्य वर्ष भर में भाग्य की परीक्षा करना है। लोग जुआ खेलकर यह पता लगाते हैं कि उनका पूरा साल कैसा रहेगा।

पूजन विधानः दीपावली पर माँ लक्ष्मी व गणेश के साथ सरस्वती मैया की भी पूजा की जाती है। भारत मे दीपावली परम्प रम्पराओं का त्यौंहार है। पूरी परम्परा व श्रद्धा के साथ दीपावली का पूजन किया जाता है। इस दिन लक्ष्मी पूजन में माँ लक्ष्मी की प्रतिमा या चित्र की पूजा की जाती है। इसी तरह लक्ष्मी जी का पाना भी बाजार में मिलता है जिसकी परम्परागत पूजा की जानी अनिवार्य है। गणेश पूजन के बिना कोई भी पूजन अधूरा होता है इसलिए लक्ष्मी के साथ गणेश पूजन भी किया जाता है। सरस्वती की पूजा का कारण यह है कि धन व सिद्धि के साथ ज्ञान भी पूजनीय है इसलिए ज्ञान की पूजा के लिए माँ सरस्वती की पूजा की जाती है।

इस दिन धन व लक्ष्मी की पूजा के रूप में लोग लक्ष्मी पूजा में नोटों की गड्डी व चाँदी के सिक्के भी रखते हैं। इस दिन रंगोली सजाकर माँ लक्ष्मी को खुश किया जाता है। इस दिन धन के देवता कुबेर, इन्द्र देव तथा समस्त मनोरथों को पूरा करने वाले विष्णु भगवान की भी पूजा की जाती है। तथा रंगोली सफेद व लाल मिट्टी से बनाकर व रंग बिरंगे रंगों से सजाकर बनाई जाती है।

विधिः

दीपावली के दिन दीपकों की पूजा का विशेष महत्व हैं। इसके लिए दो थालों में दीपक रखें। छः चौमुखे दीपक दोनो थालों में रखें। छब्बीस छोटे दीपक भी दोनो थालों में सजायें। इन सब दीपको को प्रज्जवलित करके जल, रोली, खील बताशे, चावल, गुड, अबीर, गुलाल, धूप, आदि से पूजन करें और टीका लगावें। व्यापारी लोग दुकान की गद्दी पर गणेश लक्ष्मी की प्रतिमा रखकर पूजा करें। इसके बाद घर आकर पूजन करें। पहले पुरूष फिर स्त्रियाँ पूजन करें। स्त्रियाँ चावलों का बायना निकालकर कर उस रूपये रखकर अपनी सास के चरण स्पर्श करके उन्हें दे दें तथा आशीवार्द प्राप्त करें। पूजा करने के बाद दीपकों को घर में जगह-जगह पर रखें। एक चौमुखा, छः छोटे दीपक गणेश लक्ष्मीजी के पास रख दें। चौमुखा दीपक का काजल सब बडे बुढे बच्चे अपनी आँखो में डालें।

दीपावली पूजन कैसे करें

प्रातः स्नान करने के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें।

अब निम्न संकल्प से दिनभर उपवास रहें-

मम सर्वापच्छांतिपूर्वकदीर्घायुष्यबलपुष्टिनैरुज्यादि-

सकलशुभफल प्राप्त्यर्थं

गजतुरगरथराज्यैश्वर्यादिसकलसम्पदामुत्तरोत्तराभिवृद्ध्‌यर्थं

इंद्रकुबेरसहितश्रीलक्ष्मीपूजनं करिष्ये।

संध्या के समय पुनः स्नान करें।

लक्ष्मीजी के स्वागत की तैयारी में घर की सफाई करके दीवार को चूने अथवा गेरू से पोतकर लक्ष्मीजी का चित्र बनाएं। (लक्ष्मीजी का छायाचित्र भी लगाया जा सकता है।)

भोजन में स्वादिष्ट व्यंजन, कदली फल, पापड़ तथा अनेक प्रकार की मिठाइयाँ बनाएं।

लक्ष्मीजी के चित्र के सामने एक चौकी रखकर उस पर मौली बाँधें।

इस पर गणेशजी की मिट्टी की मूर्ति स्थापित करें।

फिर गणेशजी को तिलक कर पूजा करें।

अब चौकी पर छः चौमुखे व 26 छोटे दीपक रखें।

इनमें तेल-बत्ती डालकर जलाएं।

फिर जल, मौली, चावल, फल, गुढ़, अबीर, गुलाल, धूप आदि से विधिवत पूजन करें।

पूजा पहले पुरुष तथा बाद में स्त्रियां करें।

पूजा के बाद एक-एक दीपक घर के कोनों में जलाकर रखें।

एक छोटा तथा एक चौमुखा दीपक रखकर निम्न मंत्र से लक्ष्मीजी का पूजन करें-

नमस्ते सर्वदेवानां वरदासि हरेः प्रिया।

या गतिस्त्वत्प्रपन्नानां सा मे भूयात्वदर्चनात॥

इस मंत्र से इंद्र का ध्यान करें-

ऐरावतसमारूढो वज्रहस्तो महाबलः।

शतयज्ञाधिपो देवस्तमा इंद्राय ते नमः॥

इस मंत्र से कुबेर का ध्यान करें-

धनदाय नमस्तुभ्यं निधिपद्माधिपाय च।

भवंतु त्वत्प्रसादान्मे धनधान्यादिसम्पदः॥

इस पूजन के पश्चात तिजोरी में गणेशजी तथा लक्ष्मीजी की मूर्ति रखकर विधिवत पूजा करें।

तत्पश्चात इच्छानुसार घर की बहू-बेटियों को आशीष और उपहार दें।

लक्ष्मी पूजन रात के बारह बजे करने का विशेष महत्व है।

इसके लिए एक पाट पर लाल कपड़ा बिछाकर उस पर एक जोड़ी लक्ष्मी तथा गणेशजी की मूर्ति रखें। समीप ही एक सौ एक रुपए, सवा सेर चावल, गुढ़, चार केले, मूली, हरी ग्वार की फली तथा पाँच लड्डू रखकर लक्ष्मी-गणेश का पूजन करें।

उन्हें लड्डुओं से भोग लगाएँ।

दीपकों का काजल सभी स्त्री-पुरुष आँखों में लगाएं।

फिर रात्रि जागरण कर गोपाल सहस्रनाम पाठ करें।

इस दिन घर में बिल्ली आए तो उसे भगाएँ नहीं।

बड़े-बुजुर्गों के चरणों की वंदना करें।

व्यावसायिक प्रतिष्ठान, गद्दी की भी विधिपूर्वक पूजा करें।

रात को बारह बजे दीपावली पूजन के उपरान्त चूने या गेरू में रुई भिगोकर चक्की, चूल्हा, सिल्ल, लोढ़ा तथा छाज (सूप) पर कंकू से तिलक करें। (हालांकि आजकल घरों मे ये सभी चीजें मौजूद नहीं है लेकिन भारत के गाँवों में और छोटे कस्बों में आज भी इन सभी चीजों का विशेष महत्व है क्योंकि जीवन और भोजन का आधार ये ही हैं)

दूसरे दिन प्रातःकाल चार बजे उठकर पुराने छाज में कूड़ा रखकर उसे दूर फेंकने के लिए ले जाते समय कहें 'लक्ष्मी-लक्ष्मी आओ, दरिद्र-दरिद्र जाओ'।

लक्ष्मी पूजन के बाद अपने घर के तुलसी के गमले में, पौधों के गमलों में घर के आसपास मौजूद पेड़ के पास दीपक रखें और अपने पड़ोसियों के घर भी दीपक रखकर आएं।

मंत्र-पुष्पांजलि :

( अपने हाथों में पुष्प लेकर निम्न मंत्रों को बोलें) :-

ॐ यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवास्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन्‌ ।

तेह नाकं महिमानः सचन्त यत्र पूर्वे साध्याः सन्ति देवाः ॥

ॐ राजाधिराजाय प्रसह्य साहिने नमो वयं वैश्रवणाय कुर्महे ।

स मे कामान्‌ कामकामाय मह्यं कामेश्वरो वैश्रवणो ददातु ॥

कुबेराय वैश्रवणाय महाराजाय नमः ।

ॐ महालक्ष्म्यै नमः, मंत्रपुष्पांजलिं समर्पयामि ।

(हाथ में लिए फूल महालक्ष्मी पर चढ़ा दें।)

प्रदक्षिणा करें, साष्टांग प्रणाम करें, अब हाथ जोड़कर निम्न क्षमा प्रार्थना बोलें :-

क्षमा प्रार्थना :

आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम्‌ ॥

पूजां चैव न जानामि क्षमस्व परमेश्वरि ॥

मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वरि ।

यत्पूजितं मया देवि परिपूर्ण तदस्तु मे ॥

त्वमेव माता च पिता त्वमेव

त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव ।

त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव

त्वमेव सर्वम्‌ मम देवदेव ।

पापोऽहं पापकर्माहं पापात्मा पापसम्भवः ।

त्राहि माम्‌ परमेशानि सर्वपापहरा भव ॥

अपराधसहस्राणि क्रियन्तेऽहर्निशं मया ।

दासोऽयमिति मां मत्वा क्षमस्व परमेश्वरि ॥

पूजन समर्पण :

हाथ में जल लेकर निम्न मंत्र बोलें :-

'ॐ अनेन यथाशक्ति अर्चनेन श्री महालक्ष्मीः प्रसीदतुः'

(जल छोड़ दें, प्रणाम करें)

विसर्जन :

अब हाथ में अक्षत लें (गणेश एवं महालक्ष्मी की प्रतिमा को छोड़कर अन्य सभी) प्रतिष्ठित देवताओं को अक्षत छोड़ते हुए निम्न मंत्र से विसर्जन कर्म करें :-

यान्तु देवगणाः सर्वे पूजामादाय मामकीम्‌ ।

इष्टकामसमृद्धयर्थं पुनर्अपि पुनरागमनाय च ॥

ॐ आनंद ! ॐ आनंद !! ॐ आनंद !!!

लक्ष्मीजी की आरती

ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता ।

तुमको निसदिन सेवत हर-विष्णु-धाता ॥ॐ जय...

उमा, रमा, ब्रह्माणी, तुम ही जग-माता ।

सूर्य-चन्द्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता ॥ॐ जय...

तुम पाताल-निरंजनि, सुख-सम्पत्ति-दाता ।

जोकोई तुमको ध्यावत, ऋद्धि-सिद्धि-धन पाता ॥ॐ जय...

तुम पाताल-निवासिनि, तुम ही शुभदाता ।

कर्म-प्रभाव-प्रकाशिनि, भवनिधि की त्राता ॥ॐ जय...

जिस घर तुम रहती, तहँ सब सद्गुण आता ।

सब सम्भव हो जाता, मन नहिं घबराता ॥ॐ जय...

तुम बिन यज्ञ न होते, वस्त्र न हो पाता ।

खान-पान का वैभव सब तुमसे आता ॥ॐ जय...

शुभ-गुण-मंदिर सुन्दर, क्षीरोदधि-जाता ।

रत्न चतुर्दश तुम बिन कोई नहिं पाता ॥ॐ जय...

महालक्ष्मीजी की आरती, जो कई नर गाता ।

उर आनन्द समाता, पाप शमन हो जाता ॥ॐ जय...

(आरती करके शीतलीकरण हेतु जल छोड़ें एवं स्वयं आरती लें, पूजा में सम्मिलित सभी लोगों को आरती दें फिर हाथ धो लें।)

परमात्मा की पूजा में सबसे ज्यादा महत्व है भाव का, किसी भी शास्त्र या धार्मिक पुस्तक में पूजा के साथ धन-संपत्ति को नहीं जो़ड़ा गया है। इस श्लोक में पूजा के महत्व को दर्शाया गया है-

'पत्रं पुष्पं फलं तोयं यो मे भक्त्या प्रयच्छति।

तदहं भक्त्यु पहृतमश्नामि प्रयतात्मनः॥'

पूज्य पांडुरंग शास्त्री अठवलेजी महाराज ने इस श्लोक की व्याख्या इस तरह से की है

'पत्र, पुष्प, फल या जल जो मुझे (ईश्वर को) भक्तिपूर्वक अर्पण करता है, उस शुद्ध चित्त वाले भक्त के अर्पण किए हुए पदार्थ को मैं ग्रहण करता हूँ।'

भावना से अर्पण की हुई अल्प वस्तु को भी भगवान सहर्ष स्वीकार करते हैं। पूजा में वस्तु का नहीं, भाव का महत्व है।

परंतु मानव जब इतनी भावावस्था में न रहकर विचारशील जागृत भूमिका पर होता है, तब भी उसे लगता है कि प्रभु पर केवल पत्र, पुष्प, फल या जल चढ़ाना सच्चा पूजन नहीं है। ये सभी तो सच्चे पूजन में क्या-क्या होना चाहिए, यह समझाने वाले प्रतीक हैं।

पत्र यानी पत्ता। भगवान भोग के नहीं, भाव के भूखे हैं। भगवान शिवजी बिल्व पत्र से प्रसन्न होते हैं, गणपति दूर्वा को स्नेह से स्वीकारते हैं और तुलसी नारायण-प्रिया हैं! अल्प मूल्य की वस्तुएं भी हृदयपूर्वक भगवद् चरणों में अर्पण की जाए तो वे अमूल्य बन जाती हैं। पूजा हृदयपूर्वक होनी चाहिए, ऐसा सूचित करने के लिए ही तो नागवल्ली के हृदयाकार पत्ते का पूजा सामग्री में समावेश नहीं किया गया होगा न!

पत्र यानी वेद-ज्ञान, ऐसा अर्थ तो गीताकार ने खुद ही 'छन्दांसि यस्य पर्णानि' कहकर किया है। भगवान को कुछ दिया जाए वह ज्ञानपूर्वक, समझपूर्वक या वेदशास्त्र की आज्ञानुसार दिया जाए, ऐसा यहां अपेक्षित है। संक्षेप में पूजन के पीछे का अपेक्षित मंत्र ध्यान में रखकर पूजन करना चाहिए। मंत्रशून्य पूजा केवल एक बाह्य यांत्रिक क्रिया बनी रहती है, जिसकी नीरसता ऊब निर्माण करके मानव को थका देती है। इतना ही नहीं, आगे चलकर इस पूजाकांड के लिए मानवके मन में एक प्रकार की अरुचि भी निर्माण होती है।



॥ रावण रचित शिव तांडव स्तोत्र ॥


जटाटवीग लज्जलप्रवाहपावितस्थले
गलेऽवलम्ब्यलम्बितां भुजंगतुंगमालिकाम्‌।

डमड्डमड्डमड्डम न्निनादवड्डमर्वयं
चकार चंडतांडवं तनोतु नः शिवः शिवम ॥1॥

सघन जटामंडल रूप वन से प्रवाहित होकर श्री गंगाजी की धाराएँ जिन शिवजी के पवित्र कंठ प्रदेश को प्रक्षालित (धोती) करती हैं, और जिनके गले में लंबे-लंबे बड़े-बड़े सर्पों की मालाएँ लटक रही हैं तथा जो शिवजी डमरू को डम-डम बजाकर प्रचंड तांडव नृत्य करते हैं, वे शिवजी हमारा कल्याण करें।

जटा कटा हसंभ्रम भ्रमन्निलिंपनिर्झरी ।
विलोलवी चिवल्लरी विराजमानमूर्धनि ।

धगद्धगद्ध गज्ज्वलल्ललाट पट्टपावके
किशोरचंद्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं ममं ॥2॥

अति अम्भीर कटाहरूप जटाओं में अतिवेग से विलासपूर्वक भ्रमण करती हुई देवनदी गंगाजी की चंचल लहरें जिन शिवजी के शीश पर लहरा रही हैं तथा जिनके मस्तक में अग्नि की प्रचंड ज्वालाएँ धधक कर प्रज्वलित हो रही हैं, ऐसे बाल चंद्रमा से विभूषित मस्तक वाले शिवजी में मेरा अनुराग (प्रेम) प्रतिक्षण बढ़ता रहे।

धरा धरेंद्र नंदिनी विलास बंधुवंधुर-
स्फुरदृगंत संतति प्रमोद मानमानसे ।

कृपाकटा क्षधारणी निरुद्धदुर्धरापदि
कवचिद्विगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि ॥3॥

पर्वतराजसुता के विलासमय रमणीय कटाक्षों से परम आनंदित चित्त वाले (माहेश्वर) तथा जिनकी कृपादृष्टि से भक्तों की बड़ी से बड़ी विपत्तियाँ दूर हो जाती हैं, ऐसे (दिशा ही हैं वस्त्र जिसके) दिगम्बर शिवजी की आराधना में मेरा चित्त कब आनंदित होगा।

जटा भुजं गपिंगल स्फुरत्फणामणिप्रभा-
कदंबकुंकुम द्रवप्रलिप्त दिग्वधूमुखे ।

मदांध सिंधु रस्फुरत्वगुत्तरीयमेदुरे
मनो विनोदद्भुतं बिंभर्तु भूतभर्तरि ॥4॥

जटाओं में लिपटे सर्प के फण के मणियों के प्रकाशमान पीले प्रभा-समूह रूप केसर कांति से दिशा बंधुओं के मुखमंडल को चमकाने वाले, मतवाले, गजासुर के चर्मरूप उपरने से विभूषित, प्राणियों की रक्षा करने वाले शिवजी में मेरा मन विनोद को प्राप्त हो।
सहस्र लोचन प्रभृत्य शेषलेखशेखर-
प्रसून धूलिधोरणी विधूसरांघ्रिपीठभूः ।

भुजंगराज मालया निबद्धजाटजूटकः
श्रिये चिराय जायतां चकोर बंधुशेखरः ॥5॥

इंद्रादि समस्त देवताओं के सिर से सुसज्जित पुष्पों की धूलिराशि से धूसरित पादपृष्ठ वाले सर्पराजों की मालाओं से विभूषित जटा वाले प्रभु हमें चिरकाल के लिए सम्पदा दें।

ललाट चत्वरज्वलद्धनंजयस्फुरिगभा-
निपीतपंचसायकं निमन्निलिंपनायम्‌ ।

सुधा मयुख लेखया विराजमानशेखरं
महा कपालि संपदे शिरोजयालमस्तू नः ॥6॥

इंद्रादि देवताओं का गर्व नाश करते हुए जिन शिवजी ने अपने विशाल मस्तक की अग्नि ज्वाला से कामदेव को भस्म कर दिया, वे अमृत किरणों वाले चंद्रमा की कांति तथा गंगाजी से सुशोभित जटा वाले, तेज रूप नर मुंडधारी शिवजीहमको अक्षय सम्पत्ति दें।

कराल भाल पट्टिकाधगद्धगद्धगज्ज्वल-
द्धनंजया धरीकृतप्रचंडपंचसायके ।

धराधरेंद्र नंदिनी कुचाग्रचित्रपत्रक-
प्रकल्पनैकशिल्पिनि त्रिलोचने मतिर्मम ॥7॥

जलती हुई अपने मस्तक की भयंकर ज्वाला से प्रचंड कामदेव को भस्म करने वाले तथा पर्वत राजसुता के स्तन के अग्रभाग पर विविध भांति की चित्रकारी करने में अति चतुर त्रिलोचन में मेरी प्रीति अटल हो।

नवीन मेघ मंडली निरुद्धदुर्धरस्फुर-
त्कुहु निशीथिनीतमः प्रबंधबंधुकंधरः ।

निलिम्पनिर्झरि धरस्तनोतु कृत्ति सिंधुरः
कलानिधानबंधुरः श्रियं जगंद्धुरंधरः ॥8॥

नवीन मेघों की घटाओं से परिपूर्ण अमावस्याओं की रात्रि के घने अंधकार की तरह अति गूढ़ कंठ वाले, देव नदी गंगा को धारण करने वाले, जगचर्म से सुशोभित, बालचंद्र की कलाओं के बोझ से विनम, जगत के बोझ को धारण करने वाले शिवजी हमको सब प्रकार की सम्पत्ति दें।


प्रफुल्ल नील पंकज प्रपंचकालिमच्छटा-
विडंबि कंठकंध रारुचि प्रबंधकंधरम्‌

स्मरच्छिदं पुरच्छिंद भवच्छिदं मखच्छिदं
गजच्छिदांधकच्छिदं तमंतकच्छिदं भजे ॥9॥

फूले हुए नीलकमल की फैली हुई सुंदर श्याम प्रभा से विभूषित कंठ की शोभा से उद्भासित कंधे वाले, कामदेव तथा त्रिपुरासुर के विनाशक, संसार के दुखों के काटने वाले, दक्षयज्ञविध्वंसक, गजासुरहंता, अंधकारसुरनाशक और मृत्यु के नष्ट करने वाले श्री शिवजी का मैं भजन करता हूँ।

अगर्वसर्वमंगला कलाकदम्बमंजरी-
रसप्रवाह माधुरी विजृंभणा मधुव्रतम्‌ ।

स्मरांतकं पुरातकं भावंतकं मखांतकं
गजांतकांधकांतकं तमंतकांतकं भजे ॥10॥

कल्याणमय, नाश न होने वाली समस्त कलाओं की कलियों से बहते हुए रस की मधुरता का आस्वादन करने में भ्रमररूप, कामदेव को भस्म करने वाले, त्रिपुरासुर, विनाशक, संसार दुःखहारी, दक्षयज्ञविध्वंसक, गजासुर तथा अंधकासुर को मारनेवाले और यमराज के भी यमराज श्री शिवजी का मैं भजन करता हूँ।

जयत्वदभ्रविभ्रम भ्रमद्भुजंगमस्फुर-
द्धगद्धगद्वि निर्गमत्कराल भाल हव्यवाट्-

धिमिद्धिमिद्धिमि नन्मृदंगतुंगमंगल-
ध्वनिक्रमप्रवर्तित प्रचण्ड ताण्डवः शिवः ॥11॥

अत्यंत शीघ्र वेगपूर्वक भ्रमण करते हुए सर्पों के फुफकार छोड़ने से क्रमशः ललाट में बढ़ी हुई प्रचंड अग्नि वाले मृदंग की धिम-धिम मंगलकारी उधा ध्वनि के क्रमारोह से चंड तांडव नृत्य में लीन होने वाले शिवजी सब भाँति से सुशोभित हो रहे हैं।

दृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजंग मौक्तिकमस्रजो-
र्गरिष्ठरत्नलोष्टयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः ।

तृणारविंदचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः
समं प्रवर्तयन्मनः कदा सदाशिवं भजे ॥12॥

कड़े पत्थर और कोमल विचित्र शय्या में सर्प और मोतियों की मालाओं में मिट्टी के टुकड़ों और बहुमूल्य रत्नों में, शत्रु और मित्र में, तिनके और कमललोचननियों में, प्रजा और महाराजाधिकराजाओं के समान दृष्टि रखते हुए कब मैं शिवजी का भजन करूँगा।

कदा निलिंपनिर्झरी निकुजकोटरे वसन्‌
विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरःस्थमंजलिं वहन्‌ ।

विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः
शिवेति मंत्रमुच्चरन्‌ कदा सुखी भवाम्यहम्‌ ॥13॥

कब मैं श्री गंगाजी के कछारकुंज में निवास करता हुआ, निष्कपटी होकर सिर पर अंजलि धारण किए हुए चंचल नेत्रों वाली ललनाओं में परम सुंदरी पार्वतीजी के मस्तक में अंकित शिव मंत्र उच्चारण करते हुए परम सुख को प्राप्त करूँगा।

निलिम्प नाथनागरी कदम्ब मौलमल्लिका-
निगुम्फनिर्भक्षरन्म धूष्णिकामनोहरः ।

तनोतु नो मनोमुदं विनोदिनींमहनिशं
परिश्रय परं पदं तदंगजत्विषां चयः ॥14

देवांगनाओं के सिर में गूँथे पुष्पों की मालाओं के झड़ते हुए सुगंधमय पराग से मनोहर, परम शोभा के धाम महादेवजी के अंगों की सुंदरताएँ परमानंदयुक्त हमारेमन की प्रसन्नता को सर्वदा बढ़ाती रहें।

प्रचण्ड वाडवानल प्रभाशुभप्रचारणी
महाष्टसिद्धिकामिनी जनावहूत जल्पना ।

विमुक्त वाम लोचनो विवाहकालिकध्वनिः
शिवेति मन्त्रभूषगो जगज्जयाय जायताम्‌ ॥15॥

प्रचंड बड़वानल की भाँति पापों को भस्म करने में स्त्री स्वरूपिणी अणिमादिक अष्ट महासिद्धियों तथा चंचल नेत्रों वाली देवकन्याओं से शिव विवाह समय में गान की गई मंगलध्वनि सब मंत्रों में परमश्रेष्ठ शिव मंत्र से पूरित, सांसारिक दुःखों को नष्ट कर विजय पाएँ।

इमं हि नित्यमेव मुक्तमुक्तमोत्तम स्तवं
पठन्स्मरन्‌ ब्रुवन्नरो विशुद्धमेति संततम्‌ ।

हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नांयथा गतिं
विमोहनं हि देहना तु शंकरस्य चिंतनम ॥16॥

इस परम उत्तम शिवतांडव श्लोक को नित्य प्रति मुक्तकंठ सेपढ़ने से या श्रवण करने से संतति वगैरह से पूर्ण हरि और गुरु मेंभक्ति बनी रहती है। जिसकी दूसरी गति नहीं होती शिव की ही शरण में रहता है।

पूजाऽवसानसमये दशवक्रत्रगीतं
यः शम्भूपूजनमिदं पठति प्रदोषे ।

तस्य स्थिरां रथगजेंद्रतुरंगयुक्तां
लक्ष्मी सदैव सुमुखीं प्रददाति शम्भुः ॥17॥

शिव पूजा के अंत में इस रावणकृत शिव तांडव स्तोत्र का प्रदोष समय में गान करने से या पढ़ने से लक्ष्मी स्थिर रहती है। रथ गज-घोड़े से सर्वदा युक्त रहता है।
॥ इति शिव तांडव स्तोत्रं संपूर्णम्‌ ॥

नवरात्री में दुर्गा पूजा कैसे करे


सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके
शरण्ये त्रयम्बके गौरी नारायणी नमस्तुते || ||


नवरात्र के नों दिन माता के सामने अखंड ज्योत जलाई जाती है| इस कामना के साथ की माता की साधना में कोई विघन न आये |मंत्र की शास्त्र पुस्तिका के अनुसार दीपक या अगनी के समक्ष किये गये जप का साधक को हज़ार गुना फल प्राप्त होता है |


"दीपन घृत युतं दक्षे , तेल युतः वामतः |

अर्थात : धृत युक्त ज्योति देवी के दाहिनी और तेल युक्त ज्योति देवी के बाएँ और रखनी चाहिए |

देवी माँ को लाल रंग बहुत पसंद है लेकिन क्यूँ ?

पूजा के दौरान देवी को गुलाव या कनेर का लाल फूल अर्पित करना चाहिए| मान्यता यह है की देवी माँ को लाल पुष्प चढाने से इच्छा शक्ति दृढ होती है और मनोकामनाए पूर्ण होती है| लेकिन ध्यान रखें की पूजा के दौरान देवी को दूर्वा चदावें,क्योंकि यह उन्हें अप्रिय हैं |

देवी की पूजा में कलश की महत्ता :

शास्त्रों के मुताबिक पूजा के दौरान स्थापित किये जाने वाले कलश में तेतीस करोड़ देवी -देवताओं का वास होता है और इन सभी की शक्तियां कलश में विराजमान रहती है इसलिए देवी की पूजा में कलश स्थापना का खास महत्व होता है |कलश के ऊपर रखा जाने वाला नारियल शिव -शक्ति का प्रतीक होता है |कहतें हैं कलश स्थापना से सोभाग्य,विजय के साथ-साथ पूर्वजों का आशीर्वाद मिलता है और सभी विघन दूर होते है |

देवी की पूजा में ज्वार का महत्त्व :

देवी की पूजा के प्रथम दिन ज्वार बोए जाते हैं,जो हमारी साधना की सफलता का प्रतीक होते हैं|कहतें हैं ज्वारों का अनुकरण माता की कृपा से होता है|बोए जाने के बाद यह जों जल को अवशोषित करके फूलता है और जों का अनुकरण नवीन जीवन की उत्पति दर्शाता है|


कन्या पूजन :

नवरात्री में कन्याओं का पूजन विशेष महत्व रखता है|कन्या को देवी का रूप मानकर उनका पूजन किया जाता है|शास्त्रों के अनुसार एक कन्या की पूजा से ऐश्वर्य की ,दो की पूजा से भोग और मोक्ष की,तीन की पूजा से धर्म,अर्थ,एवं काम की,चार की पूजा से राज्यपद की,पांच की पूजा से विद्या की,छेह की पूजा से शत करम सिधि,सात की पूजा से राज्य की,आठ की पूजा से सम्पर्धा की और नो कन्याओं के पूजन से प्रभुत्व की प्राप्ति माना जाता है.कुमारी पूजन में दस वर्ष की कन्याओं का पूजन निहित है |