What is Meditation...


Meditation is not following any system;it is not constant repetition and imitation. Meditation is not concentration. It is one of the favourite gambits of some teachers of meditation to insist on their pupils learning concentration that is, fixing the mind on one thought and driving out all other thought. This is a most stupid,ugly thing, which any schoolboy can do because he is forced to. It means that all the time you are having a battle between the insistence that you must concentrate on the one hand and your mind on the other which wanders away to all sorts of other things, whereas you should be attentive to every movement of the mind wherever it wanders. When your mind wanders off it means you are interested in something else.

Meditation demands an astonishingly alert mind', mediation is the understanding of the totality of life in which every form of fragmentation has ceased .Meditation is not control of thought,for when thought is controlled it breeds conflict in the mind,but when you understand the structure and origin of thought which we have already been into,then thought will not interfere.That very understanding of the structure of thinking is its own discipline which is meditation.

Meditation is to be aware of every thought and of every feeling, never to say it is right or wrong but just to watch it and move with it.In that watching you begin to understand the whole movement of thought and feeling. And out of this awareness comes silence.Silence put together by thought is stagnation, is dead ,but the silence that comes when thought has understood its own beginning,the nature of itself, understood how all thought is never free but always old-this silence is meditation in which the meditator is entirely absent,for the mind has emptied itself of the past.

छठ पूजा के लाभ ही लाभ...



सूर्य पूजन की परम्परा अति प्राचीन है|'निरोगी काया,दुधारू गायां और घर में माया'के ध्येय से सूर्य की पूजा की जाती है|लोक गीतों में सूर्य को लेकर जो मान्यताएं हैं,उनमें सात घोड़ों के सवार को प्रात:होते ही रोजगार बांटने वाला,पूर्वाह में भोजन देने वाला,अपराह में विश्राम देने वाला कहा गया है|सूर्यपुराण में कहा गया है की अंशुमाली सूर्य भगवान ज्योतिर्मय,वरेण्य,वरदायी,अनंत,अजय,हैं,इसलिए वे प्रणम्य हैं:

नमो नमो वरेण्याय वरदायान्शुमालिने |
ज्योतिर्मय नमस्तुभ्यं अनंतायाजितय ते ||

सूर्य के कई व्रत हैं|वारव्रत के रूप में सुर्यनाक्त व्रत (वीरवार को व्रत),वर्ष व्रत के रूप में सूर्य पूजा प्रशंसा व्रत,यात्रा पर्व के रूप में सूर्य रथयात्रा पर्व ,तिथि व्रत के रूप में सूर्यष्ठी जैसे व्रतों का उलेख पुराणों में मिलता है|इस क्रम में डाला छठ को समस्त मनोकामनाएं पूरी करने वाला व्रत कहा गया है|

व्रत विधान:

सूर्य वह विशवात्मा देवता है जो प्रत्यक्षत: ज्योतिर्मय है|उनकी नियमित पूजा का विधान है|पुरावशेष सिद्ध करते हैं की सभ्यता के आरंभिक काल से ही लोक समुदाय ने सूर्य पूजन का महत्त्व जान लिया था|वैदिक और उपनिषद काल से इनके अनेक प्रमाण मिलतें हैं|

डाला छठ केवल महिलाएं करती हैं,बल्कि बड़ी संख्या में पुरुष भी करते हैं|यह चार दिवसीय पर्व है जिसमे चतुर्थी से व्रत की तेयारियों और संकल्प से लेकर पंचमी को एक समय भोजन और दुर्वचनों का त्याग,जागरण ,षष्ठी को निराहार रहकर अस्त होते हुए और सप्तमी को उदय होते हुए सूर्य को फलों सहित अधर्य देने की परम्परा है :

सूर्य को यह सारे फल बांस की टोकरी में रखकर दिए जाते हैं,इसलिए यह पर्व संभवत:डाला छठ कहा जाता है|

पूर्वांचल की परम्परा:

लोकांचल में सूर्य पूजन से जुड़े पर्वों में डाला छठ का बड़ा महत्त्व है|यह पर्व मूलत: बिहार-भोजपुर क्षेत्र का है,किन्तु वहां के लोगो के देश भर में बसे होने से अब यह पर्व हर जगह मनाया जाता है|जहाँ कहीं भी नदी या सागर का तट होता है,वहां गंगा के भाव को रखकर छठी माता का मिटटी से स्थानक बनाया जाता है और सूर्यास्त के समय उसका पूजन किया जाता है|इसी समय आंकठ पानी में खड़े हो कर ईख से तेयार किये वितान की ओट में डूबते हुए सूर्य को फलों का अधर्य दिया जाता है|वहां घी,अगरु,चन्दन आदि कई प्रकार की धूप दी जाती है|घी में तेयार अच्छे पकवानों का नेवेघ चदाया जाता है और सूर्य की अर्चना की जाती है|

सूर्य आराधना से लाभ:

सूर्य की अर्चना से आराधक को कई लाभ मिलते हैं|नेत्र और चर्मरोग से पीड़ित अनेक लोग सूर्य के पूजन से लाभान्वित हुए हैं|सूर्य के अनेक स्तोत्रों में विभिन व्याधियों के निवारण के लिए प्राथनाएं प्राप्त होती हैं|चाक्षुषोपनिषद से नेत्रज्योति सहित चाक्षुष रोगों का निवारण होता है|

भैया दूज की पूजा विधि

भारतीय सामाजिक संरचना में सहयोग और त्याग को विशेष महत्व दिया गया है. पारिवारिक परिवेश का व्रहद रूप सामाजिक मान्यताओं का विकास है अत: संबंधों के प्रति दायित्व भावना का निरूपण हर जगह दिखाई देता है. भाई-बहन के संबंधों पर हमारे समाज नियोजकों ने अनेक व्यवस्थाओं का निर्धारण किया है उनमे भैया दूज भी एक ऐसी ही वयवस्था है जो दोनों के मध्य त्यागमय, स्नेहमय और सहयोगमय संबंधों को प्रतिपादित करती है. दिवाली को पंचांग पर्व भी कहा जाता है. भैया दूज भी उसका ही एक अंग है. लोक परम्पराओं में इसके अलग अलग रूप दिखाई देते हैं लेकिन आशय यही है की भाई बहिन में आत्मिक एवं सहयोगात्मक सम्बन्ध आजीवन बना रहे.

आज के दिन बहिन भाई को अपने हाथ का बना भोजन कराती है और भाई बहिन को उपहार देता है.यदि बहन विओवाहित है तो भाई बहन क घर जाता है और उसे मिष्ठान,वस्त्र या अन्य उपहार देता है.विवाहित बहन घर आये भाई को असं पर बिठाती है और रोली का तिलक लगाकर आरती पर बैठाती है और रोली का तिलक लगाकर आरती उतारती है.भाई बहन को उपहार देता है,इसके पशचात बहन भाई को भोजन करती है.

पूजा विधि:

भाई दूज के दो पक्ष होते हैं,एक बहन को उपहार देना और दूसरा पूजा-अर्चना करना.यह पूजा परिवार में सामूहिक रूप से होती होती है.बहनें भाई की दीर्घ आयु के लिए व्रत रखती हैं,व्रती बहन प्रात: सूर्योदय से पूर्व नित्य क्रियाओं पर स्नान आदि से निवृत होकर पूजा स्थल पर अष्टदल कमल पर गणेश जी की मूर्ती स्थापित करती हैं.साथ ही यम,यमुना.चित्रगुप्त और युम्दुतों के प्रतीकात्मक विग्रह आटे से बनाकर पूजा स्थल पर रखती है,प्रत्येक पार्टिक का सिंगार रोली और पुष्प से किया जाता है,पूजा के समय पूरा परिवार भाग लेता है,लेकिन पूजा स्थल की व्यवस्था बहनें करती हैं,सबसे पहले गणेश जी की पूजा की जाती है,उसके पश्चात यमराज जी की प्राथना की जाती है.

दान का महत्व:

भार्त्रिये संस्कृति में प्रत्येक धार्मिक अनुष्ठान के साथ दान का विशेष महत्व है.दान में केवल मानव ही नही पशु पक्षी भी समिमलित होतें हैं,भाई दूज के दिन किसी निर्धन या विद्वान ब्रह्मिन को भोजन करना चाहिए.साथ ही गाय,कुत्ता व पक्षियों को भिओ यथायोग्य भोजन दिया जाये.परिवार के सभी लोग सूर्य को जल दें.जो बहनें व्रत रखती हैं,वह दोपहर बाद भोजन कर सकती हैं.लेकिन जब तक भाई की आरती कर लें.भाई को चाहिए जी वो सामर्थ्य के अनुसार अपनी बहन को उपहार अवश्य दे.और यदि बहन किसी संकट में है तो उसे दूर करने का प्रयास करे.

कैसे स्थिर होगी महालक्ष्मी ...

जो आस्तिकजन लक्ष्मी की स्थिरता चाहते हैं उन्हें सायंकाल :१९ से ०८:१७ के बीच लक्ष्मी का स्थिर लग्न में पूजन करना चाहिए|पूजन में आंवला,साल की धानी व् ईख विशेष रूप से होना चाहिए|लक्ष्मी के पार्टिक चांदी के सिक्कों का पूजन कर हल्दी,कंकू चदा चित्र के दाहिनी और लाल या पीले वस्त्र में स्वास्तिक बना चांदी के सिक्कों को रखें|तथा पूजनोपरांत उन्हें उन्ही वस्त्र में लपेटकर अपनी अलमारी में रखें|लक्ष्मी की स्थिरता बनेगी तथा लम्बे समय तक उसका उपभोग कर सकेंगे|
धन की स्थिरता:-
यदि सचित राशी शीघ्र ही अन्य मदों में खर्च हो जाती है तो उसे आस्तिकजन इस दिन सायंकाल ०७:११ से ०७:२४ के मध्य एक नोट की गड्डी में मोली लपेट मुलठी,आंवला व् कमल गट्टा साथ में ले लें,लाल वस्त्र में लपेटकर सेफ में रखें,लक्ष्मी की स्थिरता बनेगी|
व्यापर में लाभ:-
व्यापार विनिमय में सदैव आर्थिक परेशानी रहती हो,वे पूजन स्थल पर लक्ष्मी जी के चित्र के दाहिनी और रक्त कमल का पुष्प रखें तथा बाई बाजु में गोमती चक्र रखें|पूजा के बाद शुभ महूर्त में चांदी के सिक्कों के साथ लाल कपडे में मुलेट,ईख के खंड व् गोमती चक्र के साथ सेफ में स्थापित करें लाभ होगा|
ऐसे होगी प्रसन्न महालक्ष्मी :-
  • दीपावली के दिन किसी गरीब सुहागिन इस्त्री को सुहाग का सामान दान करें|
  • दीपावली के दिन नये झाड़ू पूजा से पहले उस से थोडा सफाई करें और उसे एक तरफ रख दें|अन्य दिन उसका प्रयोग करें इस दरिद्र दूर होगी घर में लक्ष्मी का आगमन होगा|
  • मध्यरात्रि में लक्ष्मी जी के मन्त्रों का जाप करने से महालक्ष्मी की प्रसंता से धन की प्राप्ति होती है|
  • आर्थिक स्थिति में उनती के लिए दीपावली की रात सिंह लगन में श्रीसूक्त का पाठ करें|
  • दक्षिणावर्ती शंख,मोती शंख,कुबेर पात्र,गोमती चक्र घर में रखें|लक्ष्मी जी की कृपा पात्र होगी|

कैसे करें धनवंतरि की पूजा...


कैसे करें धनवंतरि की पूजा

पूजन सामग्री-
गंध, अबीर, गुलाल पुष्प, रोली, नैवेद्य के लिए चांदी का पात्र, प्रसाद के लिए खीरए पान, लौंग, सुपारी, वस्त्र (मौली) शंखपुष्पी, तुलसी, ब्राह्मी आदि पूजनीय औषधियां।
पूजन विधि
धनतेरस के दिन भगवान धनवंतरि की पूजा इस तरह करें। सबसे पहले नहाकर साफ कपड़े पहनें। भगवान धनवंतरि की मूर्ति या चित्र साफ स्थान पर स्थापित करें तथा पूर्व की ओर मुखकर बैठ जाएं। उसके बाद भगवान धनवंतरि का आह्वान निम्न मंत्र से करें-

सत्यं च येन निरतं रोगं विधूतं,अन्वेषित च सविधिं आरोग्यमस्य।
गूढं निगूढं औषध्यरूपं, धनवंतरिं च सततं प्रणमामि नित्यं।।

इसके बाद पूजन स्थल पर आसन देने की भावना से चावल चढ़ाएं। इसके बाद आचमन के लिए जल छोड़े। भगवान धनवंतरि के चित्र पर गंध, अबीर, गुलाल पुष्प, रोली, आदि चढ़ाएं। चांदी के पात्र में खीर का नैवेद्य लगाएं। (अगर चांदी का पात्र उपलब्ध न हो तो अन्य पात्र में भी नैवेद्य लगा सकते हैं।) पुन: आचमन के लिए जल छोड़े। मुख शुद्धि के लिए पान, लौंग, सुपारी चढ़ाएं। भगवान धन्वन्तरि को वस्त्र (मौली) अर्पण करें। शंखपुष्पी, तुलसी, ब्राह्मी आदि पूजनीय औषधियां भी भगवान धन्वन्तरि को अर्पित करें। रोगनाश की कामना के लिए इस मंत्र का जाप करें-

ऊँ रं रूद्र रोगनाशाय धन्वन्तर्ये फट्।।

इसके बाद भगवान धनवंतरि को श्रीफल व दक्षिणा चढ़ाएं। पूजन के अंत में कर्पूर आरती करें।

क्यों खरीदे जाते हैं बर्तन

धनतेरस पर बर्तन खरीदने का महत्व है। ऐसा माना जाता है कि समुद्र मंथन के समय धनवंतरि हाथ में अमृत का कलश लेकर निकले थे। इस कलश के लिए देवताओं और दानवों में भारी युद्ध भी हुआ था। इस कलश में अमृत था और इसी से देवताओं को अमरत्व प्राप्त हुआ। तभी से धनतेरस पर प्रतीक स्वरूप बर्तन खरीदने की परंपरा है। इस बर्तन की भी पूजा की जाती है और खुद व परिवार की बेहतर सेहत के लिए प्रार्थना की जाती है।


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धनतेरस के शुभ मुहूर्त

पाँच दिवसीय दीपावली पर्व का आरंभ धन त्रयोदशी से होता है। इस दिन सायंकाल घर के मुख्य द्वार पर यमराज के निमित्त एक अन्न से भरे पात्र में दक्षिण मुख करके दीपक रखने एवं उसका पूजन करके प्रज्वलित करने एवं यमराज से प्रार्थना करने पर असामयिक मृत्यु से बचा जा सकता है। धनतेरस के दिन भगवान धन्वंतरि का जन्म हुआ था। समुद्र मंथन के समय इसी दिन धन्वंतरि सभी रोगों के लिए औषधि कलश में लेकर प्रकट हुए थे।

अतः इस दिन भगवान धन्वंतरि का पूजन श्रद्धापूर्वक करना चाहिए, जिससे दीर्घ जीवन एवं आरोग्य की प्राप्ति होती है। धनतेरस के दिन अपनी शक्ति अनुसार बर्तन क्रय करके घर लाना चाहिए एवं उसका पूजन करके प्रथम उपयोग भगवान के लिए करने से धन-धान्य की कमी वर्ष पर्यन्त नहीं रहती है।

भगवान धन्वंतरि पूजन इस बार 3 नवंबर 2010, बुधवार को प्रदोष व्यापिनी त्रयोदशी है जो 4.57 मिनट से लगेगी। इस समय प्रदोष काल 5.41 से 8.27 तक रहेगा। शाम 5.42 से 7.11 तक लाभ का चौघड़‍िया रहेगा फिर अमृत 7.11 से 8.40 तक रहेगा। जो प्रदोषकाल में आता है अतः इस समयावधि में गादी बिछाने एवं भगवान धन्वंतरि का पूजन करना श्रेष्ठ है।

धन्वंतरि देवताओं के वैद्य और चिकित्सा के देवता माने जाते हैं इसलिए चिकित्सकों के लिए धनतेरस का दिन बहुत ही महत्वपूर्ण होता है। धनतेरस के संदर्भ में एक लोककथा प्रचलित है कि एक बार यमराज ने यमदूतों से पूछा कि प्राणियों को मृत्यु की गोद में सुलाते समय तुम्हारे मन में कभी दया का भाव नहीं आता क्या?

दूतों ने यमदेवता के भय से पहले तो कहा कि वह अपना कर्तव्य निभाते है और उनकी आज्ञा का पालन करते हें। परंतु जब यमदेवता ने दूतों के मन का भय दूर कर दिया तो उन्होंने कहा कि एक बार राजा हेम के पुत्र का प्राण लेते समय उसकी नवविवाहिता पत्नी का विलाप सुनकर हमारा हृदय भी पसीज गया लेकिन विधि के विधान के अनुसार हम चाह कर भी कुछ न कर सके।

धनतेरस के दिन चाँदी खरीदने की भी प्रथा है, इसके पीछे यह कारण माना जाता है कि यह चन्द्रमा का प्रतीक है जो शीतलता प्रदान करता है और मन में संतोष रूपी धन का वास होता है। संतोष को सबसे बडा़ धन कहा गया है। जिसके पास संतोष है वह स्वस्थ, सुखी है और वही सबसे बड़ा धनवान है। भगवान धन्वंतरि जो चिकित्सा के देवता भी हैं और उनसे धन व सेहत की कामना जब करें तो याद रखें संतोष ही धन है और संतोष से ही सेहत बनती है।