छठ पूजा के लाभ ही लाभ...



सूर्य पूजन की परम्परा अति प्राचीन है|'निरोगी काया,दुधारू गायां और घर में माया'के ध्येय से सूर्य की पूजा की जाती है|लोक गीतों में सूर्य को लेकर जो मान्यताएं हैं,उनमें सात घोड़ों के सवार को प्रात:होते ही रोजगार बांटने वाला,पूर्वाह में भोजन देने वाला,अपराह में विश्राम देने वाला कहा गया है|सूर्यपुराण में कहा गया है की अंशुमाली सूर्य भगवान ज्योतिर्मय,वरेण्य,वरदायी,अनंत,अजय,हैं,इसलिए वे प्रणम्य हैं:

नमो नमो वरेण्याय वरदायान्शुमालिने |
ज्योतिर्मय नमस्तुभ्यं अनंतायाजितय ते ||

सूर्य के कई व्रत हैं|वारव्रत के रूप में सुर्यनाक्त व्रत (वीरवार को व्रत),वर्ष व्रत के रूप में सूर्य पूजा प्रशंसा व्रत,यात्रा पर्व के रूप में सूर्य रथयात्रा पर्व ,तिथि व्रत के रूप में सूर्यष्ठी जैसे व्रतों का उलेख पुराणों में मिलता है|इस क्रम में डाला छठ को समस्त मनोकामनाएं पूरी करने वाला व्रत कहा गया है|

व्रत विधान:

सूर्य वह विशवात्मा देवता है जो प्रत्यक्षत: ज्योतिर्मय है|उनकी नियमित पूजा का विधान है|पुरावशेष सिद्ध करते हैं की सभ्यता के आरंभिक काल से ही लोक समुदाय ने सूर्य पूजन का महत्त्व जान लिया था|वैदिक और उपनिषद काल से इनके अनेक प्रमाण मिलतें हैं|

डाला छठ केवल महिलाएं करती हैं,बल्कि बड़ी संख्या में पुरुष भी करते हैं|यह चार दिवसीय पर्व है जिसमे चतुर्थी से व्रत की तेयारियों और संकल्प से लेकर पंचमी को एक समय भोजन और दुर्वचनों का त्याग,जागरण ,षष्ठी को निराहार रहकर अस्त होते हुए और सप्तमी को उदय होते हुए सूर्य को फलों सहित अधर्य देने की परम्परा है :

सूर्य को यह सारे फल बांस की टोकरी में रखकर दिए जाते हैं,इसलिए यह पर्व संभवत:डाला छठ कहा जाता है|

पूर्वांचल की परम्परा:

लोकांचल में सूर्य पूजन से जुड़े पर्वों में डाला छठ का बड़ा महत्त्व है|यह पर्व मूलत: बिहार-भोजपुर क्षेत्र का है,किन्तु वहां के लोगो के देश भर में बसे होने से अब यह पर्व हर जगह मनाया जाता है|जहाँ कहीं भी नदी या सागर का तट होता है,वहां गंगा के भाव को रखकर छठी माता का मिटटी से स्थानक बनाया जाता है और सूर्यास्त के समय उसका पूजन किया जाता है|इसी समय आंकठ पानी में खड़े हो कर ईख से तेयार किये वितान की ओट में डूबते हुए सूर्य को फलों का अधर्य दिया जाता है|वहां घी,अगरु,चन्दन आदि कई प्रकार की धूप दी जाती है|घी में तेयार अच्छे पकवानों का नेवेघ चदाया जाता है और सूर्य की अर्चना की जाती है|

सूर्य आराधना से लाभ:

सूर्य की अर्चना से आराधक को कई लाभ मिलते हैं|नेत्र और चर्मरोग से पीड़ित अनेक लोग सूर्य के पूजन से लाभान्वित हुए हैं|सूर्य के अनेक स्तोत्रों में विभिन व्याधियों के निवारण के लिए प्राथनाएं प्राप्त होती हैं|चाक्षुषोपनिषद से नेत्रज्योति सहित चाक्षुष रोगों का निवारण होता है|

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