
आज के दिन बहिन भाई को अपने हाथ का बना भोजन कराती है और भाई बहिन को उपहार देता है.यदि बहन विओवाहित है तो भाई बहन क घर जाता है और उसे मिष्ठान,वस्त्र या अन्य उपहार देता है.विवाहित बहन घर आये भाई को असं पर बिठाती है और रोली का तिलक लगाकर आरती पर बैठाती है और रोली का तिलक लगाकर आरती उतारती है.भाई बहन को उपहार देता है,इसके पशचात बहन भाई को भोजन करती है.
पूजा विधि:
भाई दूज के दो पक्ष होते हैं,एक बहन को उपहार देना और दूसरा पूजा-अर्चना करना.यह पूजा परिवार में सामूहिक रूप से होती होती है.बहनें भाई की दीर्घ आयु के लिए व्रत रखती हैं,व्रती बहन प्रात: सूर्योदय से पूर्व नित्य क्रियाओं पर स्नान आदि से निवृत होकर पूजा स्थल पर अष्टदल कमल पर गणेश जी की मूर्ती स्थापित करती हैं.साथ ही यम,यमुना.चित्रगुप्त और युम्दुतों के प्रतीकात्मक विग्रह आटे से बनाकर पूजा स्थल पर रखती है,प्रत्येक पार्टिक का सिंगार रोली और पुष्प से किया जाता है,पूजा के समय पूरा परिवार भाग लेता है,लेकिन पूजा स्थल की व्यवस्था बहनें करती हैं,सबसे पहले गणेश जी की पूजा की जाती है,उसके पश्चात यमराज जी की प्राथना की जाती है.
दान का महत्व:
भार्त्रिये संस्कृति में प्रत्येक धार्मिक अनुष्ठान के साथ दान का विशेष महत्व है.दान में केवल मानव ही नही पशु पक्षी भी समिमलित होतें हैं,भाई दूज के दिन किसी निर्धन या विद्वान ब्रह्मिन को भोजन करना चाहिए.साथ ही गाय,कुत्ता व पक्षियों को भिओ यथायोग्य भोजन दिया जाये.परिवार के सभी लोग सूर्य को जल दें.जो बहनें व्रत रखती हैं,वह दोपहर बाद भोजन कर सकती हैं.लेकिन जब तक भाई की आरती कर लें.भाई को चाहिए जी वो सामर्थ्य के अनुसार अपनी बहन को उपहार अवश्य दे.और यदि बहन किसी संकट में है तो उसे दूर करने का प्रयास करे.
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