
अतः इस दिन भगवान धन्वंतरि का पूजन श्रद्धापूर्वक करना चाहिए, जिससे दीर्घ जीवन एवं आरोग्य की प्राप्ति होती है। धनतेरस के दिन अपनी शक्ति अनुसार बर्तन क्रय करके घर लाना चाहिए एवं उसका पूजन करके प्रथम उपयोग भगवान के लिए करने से धन-धान्य की कमी वर्ष पर्यन्त नहीं रहती है।
भगवान धन्वंतरि पूजन इस बार 3 नवंबर 2010, बुधवार को प्रदोष व्यापिनी त्रयोदशी है जो 4.57 मिनट से लगेगी। इस समय प्रदोष काल 5.41 से 8.27 तक रहेगा। शाम 5.42 से 7.11 तक लाभ का चौघड़िया रहेगा फिर अमृत 7.11 से 8.40 तक रहेगा। जो प्रदोषकाल में आता है अतः इस समयावधि में गादी बिछाने एवं भगवान धन्वंतरि का पूजन करना श्रेष्ठ है।
धन्वंतरि देवताओं के वैद्य और चिकित्सा के देवता माने जाते हैं इसलिए चिकित्सकों के लिए धनतेरस का दिन बहुत ही महत्वपूर्ण होता है। धनतेरस के संदर्भ में एक लोककथा प्रचलित है कि एक बार यमराज ने यमदूतों से पूछा कि प्राणियों को मृत्यु की गोद में सुलाते समय तुम्हारे मन में कभी दया का भाव नहीं आता क्या?
दूतों ने यमदेवता के भय से पहले तो कहा कि वह अपना कर्तव्य निभाते है और उनकी आज्ञा का पालन करते हें। परंतु जब यमदेवता ने दूतों के मन का भय दूर कर दिया तो उन्होंने कहा कि एक बार राजा हेम के पुत्र का प्राण लेते समय उसकी नवविवाहिता पत्नी का विलाप सुनकर हमारा हृदय भी पसीज गया लेकिन विधि के विधान के अनुसार हम चाह कर भी कुछ न कर सके।
धनतेरस के दिन चाँदी खरीदने की भी प्रथा है, इसके पीछे यह कारण माना जाता है कि यह चन्द्रमा का प्रतीक है जो शीतलता प्रदान करता है और मन में संतोष रूपी धन का वास होता है। संतोष को सबसे बडा़ धन कहा गया है। जिसके पास संतोष है वह स्वस्थ, सुखी है और वही सबसे बड़ा धनवान है। भगवान धन्वंतरि जो चिकित्सा के देवता भी हैं और उनसे धन व सेहत की कामना जब करें तो याद रखें संतोष ही धन है और संतोष से ही सेहत बनती है।
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