जीवन की अवस्थाओं का ज्ञान करवातें हैं हनुमान जी...


भारतीय संस्कृति में चार की संख्या का बड़ा महत्व है|चार वर्ण,चार युग,और चार अंत:करण को कई बार याद किया जाता है|तुलसीदास जी ने हनुमान चालीसा की चालीस चोपाइयों में भी चार के आंकड़े को एक जगह याद किया जाता है|२९वि चौपाई में वह लिखते हैं-चारो युग प्रताप तुम्हारा,है प्रसिद्ध जगत उजियारा ||अर्थात जगत को प्रकाशित करने वाले आपके नाम का प्रताप चारो युगों में है|(सतयुग,त्रेता,द्वापर और कलियुग)श्रीहनुमान जी पवनसुत हैं और पवन न सिर्फ चारो युग में हैं,बल्कि प्रत्येक स्थान पर है|विदेश में पानी अलग मिल सकता है,धरती अलग मिल सकती है,व भोजन अलग मिल सकता हैहवा सारी दुनिया में एक जैसे ही मिलती है|पानी,अग्नि को रोका जा सकता है लेकिन आप हवा का बटवारा नही कर सकते|
चारो युगों का एक और अर्थ है-हमारे जीवन की भी चार अवस्थाये है-बचपन,जवानी,प्रोद्ता और बुदापा |प्रताप का एक साधारण सा अर्थ होता है,योग्यता|इन चारों उम्र में हनुमान जी योग्यता की तरह हमारे जीवन में आ सकते हैं|बचपनम की सरलता हम हनुमान जी से सीख सकते हैं|जवानी की सक्रियता उनके पराक्रम की ही कहानी है|प्रोद्ता में जो म्संझ होने चाहिए व भी हनुमान जी हमें सिखायेंगे,और बुदापा सफल होता है|

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