अफगानिस्तान 7वीं सदी तक अखंड भारत का एक हिस्सा था। यह पहले एक हिंदू राष्ट्र था। बाद में यह बौद्ध राष्ट्र बना और अब इस्लामिक राष्ट्र है। 17वीं सदी तक अफगानिस्तान नाम का कोई राष्ट्र नहीं था। आज कैसा है यह देश और कैसा जीवन जी रहे हैं यहां के लोग। आइए जानते हैं।
अफगानिस्तान को आर्याना, आर्यानुम्र वीजू, पख्तिया, खुरासान, पश्तूनख्वाह और रोह आदि नामों से पुकारा जाता था, जिसमें गांधार, कम्बोज, कुंभा, वर्णु, सुवास्तु आदि क्षेत्र थे। ईसा पूर्व 700 साल पहले तक इसके उत्तरी क्षेत्र में गांधार महाजनपद था, जिसके बारे में भारतीय स्रोत महाभारत तथा अन्य ग्रंथों में वर्णन मिलता है। धृतराष्ट्र की पत्नी गांधारी, महान संस्कृत व्याकरणाचार्य पाणिनी और गुरु गोरखनाथ यहीं के बाशिंदे थे।
आज भी अफगानिस्तान के गांवों में बच्चों के नाम कनिष्क, आर्यन, वेद आदि रखे जाते हैं। अफगानिस्तान में पहले आर्यों के कबीले आबाद थे और वे सभी वैदिक धर्म का पालन करते थे, फिर बौद्ध धर्म के प्रचार के बाद यह स्थान बौद्धों का गढ़ बन गया।
संयुक्त राष्ट्र की संस्था यूनिसेफ के मुताबिक अफगानिस्तान की 50 फीसदी जनसंख्या का विवाह 15 साल की उम्र में ही हो जाता है। 33 फीसदी आबादी का विवाह 18 साल की उम्र में होता है। अफगानिस्तान में 14 जनजातियां निवास करती है। इस देश में मोबाइल फोन रखना प्रतिष्ठा का प्रतीक माना जाता है।
अफगानिस्तान में नया साल 21 मार्च को मनाया जाता है, जो बसंत का पहला दिन होता है। अफगान लोगों में परिवार का बहुत महत्व है और शादी के बाद सारा परिवार साथ रहता है।
अफगान के हैरत शहर में गुरुवार रात को कविताओं का आयोजन होता है। यहां महिला, पुरुष और बच्चे इकट्ठा होते हैं।
अफगानी लोग मुख्य तौर पर खेती करने अपना जीवनयापन करते हैं। हालांकि अफगानिस्तान में प्राकृतिक गैस और तेल का बड़ा भंडार है।
अफगानी शिष्टाचार में हाथ मिलाना सामान्य बात है। लेकिन महिला-पुरुष का आपस में हाथ मिलाना दुर्लभ है। अफगानिस्तान में महिला और पुरुष की कोशिश होती है कि वे एक-दूसरे से आंख भी नहीं मिलाएं। अरेंज मैरिज का प्रचलन यहां ज्यादा है।
अफगानिस्तान के बामियान, जलालाबाद, बगराम, काबुल, बल्ख आदि स्थानों में अनेक मूर्तियों, स्तूपों, संघारामों, विश्वविद्यालयों और मंदिरों के अवशेष हैं।
महमूद गजनी को सत्ता और लूटपाट के अलावा वह जीते हुए क्षेत्रों के मंदिरों, शिक्षा केंद्रों, मंडियों और भवनों को नष्ट करता जाता था और स्थानीय लोगों का धर्म परिवर्तन कराता था। यह बात अल-बेरूनी, अल-उतबी, अल-मसूदी और अल-मकदीसी जैसे मुस्लिम इतिहासकारों ने भी लिखी हैं।
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