केवल भूमि के किसी टुकदडे को तो राष्ट्र नहीं कहते। एक विचार, एक आचार, एक सभ्यता, एवम एक परम्परा से, जो लोग पुरातन काल से रहते चले आये हैं, उन्हीं लोगों से राष्ट्र बनता है। इस देश को हमारे ही कारण हिन्दुस्थान नाम दिया गया है।
हमलोगों में चाहे जितने ऊपरी मतभेद दिखाई दें परन्तु, हम सारे हिन्दू तत्वतः एक राष्ट्र हैं। हमारी धमनियों में एक - सा रक्त बह रहा है। हमारी पवित्र भाषा एक है। हमारे राजनीतिशास्त्र, समाजरचना और तत्वज्ञान एक है। इस प्रकार हमारे संगठन की नींव शास्त्रशुध्द है।
'समस्त हिन्दू-समाज को अविभाज्य एकात्मता के सूत्र में पिरोकर संगठित करने एवं स्पृश्य-अस्पृश्य की भावना व प्रवृत्ति से प्रेरित विघटन को रोकने के उद्देश्य की प्राप्ति हेतु विश्व भर के हिन्दुओं को अपने पारस्परिक व्यवहार में एकात्मता एवं समानता की भावना को बरकरार रखना चाहिए।''

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