क्यों है, एक ओंकार सतनाम ? - ओशो

नानक कहते हैं कि उस एक का जो नाम है, वही ओंकार है। और सब नाम तो आदमी के दिए हुए हैं- राम कहो, कृष्ण कहो, अल्लाह कहो। ये हमने बनाए हैं। लेकिन उसका एक नाम जो हमने नहीं दिया- वह ओंकार है।

क्यों ओंकार उसका नाम है? क्योंकि जब सब शब्द खो जाते हैं और चित्त शून्य हो जाता है, तब ओंकार की धुन सुनाई पड़ती है। वह हमारी बनाई हुई धुन नहीं है। वह अस्तित्व की धुन है। एक ध्वनि है। कोई उसका स्रोत नहीं है। कोई उसे पैदा नहीं करता।

जैसे कि जल प्रपात के पास बैठो तो उसकी एक ध्वनि है। लेकिन वह पानी और चट्टान की टक्कर से पैदा होती है। हवा का झोंका निकलता है, तो जो सरसराहट होती है, वह हवा और वृक्ष की टक्कर से पैदा होती है। संगीतज्ञ गीत गाता है, वीणा का कोई तार छेड़ता है- लेकिन ये सभी ध्वनियां संघर्ष से पैदा होती हैं। संघर्ष के लिए दो जरूरी हैं। तार चाहिए वीणा का और हाथ चाहिए उसे छेड़ने वाला। इस तरह जितनी ध्वनियां द्वैत से पैदा होती हैं, उनमें से कोई भी उसका सच्चा नाम नहीं हो सकता। उसका नाम तो वही है- जब सारा द्वैत खो जाता है, तब जो एक ध्वनि गूंजती रहती है।

नानक कहते हैं, वही एक उसका नाम है- ओंकार। नानक बहुत बार 'नाम' शब्द का प्रयोग करेंगे। कहते हैं, उसके नाम की रटन में जो डूब जाएगा, वह उसे पा लेगा। तो ध्यान रखना, नाम जब भी नानक कहते हैं, तब उनका इशारा ओंकार की तरफ है। क्योंकि वही एक उसका नाम है, जो हमने नहीं दिया।

यह 'सत' शब्द भी समझ लेने जैसा है। संस्कृत में दो शब्द हैं- एक सत और एक सत्य। सत का अर्थ होता है एक्जिस्टेंस, अस्तित्व। और सत्य का अर्थ होता है ट्रुथ। मूल धातु तो एक है, लेकिन कुछ फर्क हैं, जिन्हें समझ लेना जरूरी है। सत्य तो चिंतक की खोज है- वह खोजता है कि दो और दो मिल कर चार होते हैं, पांच नहीं होते, तीन भी नहीं होते। गणित का यह सूत्र सत्य है, लेकिन सत नहीं है। क्योंकि यह मनुष्य का ही हिसाब है।

तुम सपना देखते हो रात को। सपना सत तो है , लेकिन सत्य नहीं है। सपना है तो ! नहीं होता तो देखते कैसे ?लेकिन तुम यह नहीं कह सकते कि सत्य है। क्योंकि सुबह पाते हो कि वह न होने के बराबर है। लेकिन वह हुआजरूर था ! एक सपना घटा था। तो दुनिया में ऐसी घटनाएं हैं जो सत्य हैं और सत नहीं। और ऐसी भी घटनाएं हैं, जो सत हैं लेकिन सत्य नहीं। गणित सत्य है , सत नहीं। और सपना सत है , सत्य नहीं।

परमात्मा दोनों है - सत भी , सत्य भी। और इसलिए न तो उसे गणित से पाया जा सकता , न विज्ञान से। विज्ञानखोजता है सत्य को और कला खोजती है सत को। इसलिए न तो कला उसे पूरा खोज सकती है और न विज्ञान।दोनों अधूरे हैं। तो जब नानक कहते हैं , एक ओंकार सतिनाम - तो इस सत में दोनों हैं - सत्य और सत। उस परमअस्तित्व का नाम , जो गणित की तरह सच है और जो काव्य की तरह भी सत है। जो स्वप्न की तरह मधुर है औरगणित की तरह सही है। जो हृदय की भावना की तरह भी है और मस्तिष्क की प्रतीति की भांति भी है।

जहां मस्तिष्क और हृदय मिलते हैं , वहीं धर्म शुरू होता है। अगर मस्तिष्क अकेला रहे या हृदय को दबा दे , तोविज्ञान पैदा होता है। अगर हृदय अकेला रहे या मस्तिष्क को हटा दे , तो कल्पना और कला पैदा होती है। औरअगर मस्तिष्क और हृदय दोनों मिल जाएं , दोनों का संयोग हो जाए , तो हम ओंकार में प्रवेश करते हैं।

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