
मुगल काल में सिक्ख खत्री गुरूओं के इतिहास की एक अलग ही कहानी है। 1901 की जनगणना के कुल 1030078 खत्रियों की जनसंख्या में 60685 सिख खत्री दर्ज किए गए थे। इस जनगणना में जैन धर्म को माननेवाले 704 और बौद्ध धर्म को माननेवाले 27 खत्री भी दर्ज किए गए थे। आज इन सिक्ख खत्रियों में कुछ अल्ले विशेष रूप से पायी जाती हैं , जैसे अगिया , अरिन , उहिल , एलवी , कालछर , खुमाड , गंगादिल , चारखंडे , चुनाई , छेमदा , जुडे , तिपुरा , तेहर , थागर , पखरा , फलदा , भगादि , भोगर , मालगुरू , बालगौर , वाहगुरू , शोडिल , हेगर , हूगर औ हांडी वगैरह ।
हिन्दू और सिक्ख खत्रियों का संबंध तो पूरी तरह रोटी बेटी का सा एक ही रहा है। दोनो का खान पान , विवाह संस्कार और अन्य प्रथाएं भी एक जैसी रही हैं। एक समय में खत्री परिवार में पैदा होनेवाला पहला बालक संस्कार करके सिख बनाया जाता था। अरदास और भोग हिन्दु खत्रियों में भी समान रूप से प्रचलित था। सिक्ख खत्रियों में गुरू नानक वेदी और अन्य सभी सोढी खत्री थे। सिक्ख खत्री आज भी अपने नाम के साथ खत्री ही लगाते हैं , ताकि उनमें और जाट सिक्खों में अंतर किया जा सके तथा अन्य सिखों में उन्हें आसानी से पहचाना जा सके।
इस तरह हिन्दू और सिख धर्म को जोडनेवाली कडी खत्री ही है। धर्म से उनके बीच कोई फर्क नहीं पडा है तथा दोनो ही धर्म मानने वाले खत्री साथ साथ भोजन तो करते ही हैं , विवाहादि संबंध भी वैसे ही करते हैं , जैसे वैश्य वर्ग के लोग जैनियों से करते हैं। बीच में आतंकवादी गतिविधियों के कारण इसमें कुछ व्यवधान अवश्य आया था , पर समय के साथ पुन: यह प्रभावहीन होता चला गया और पंजाब में हिन्दुओं और सिखों के मध्य विभाजन नहीं हो सका।इस राजनीतिक चाल का असफल हो जाना बहुत अच्छी बात रही। यह सिख हिन्दु मैरिज एक्ट और डाइवोर्स एक्ट के अधीन ही आते हैं। इस तरह शताब्दियों पुरानी खत्री जाति परंपराएं , रीति रिवाज और संबंधों की ही ऐसी कडी बनाता आया हैं , जिन्हें व्यक्तिगत स्वार्थवश नहीं तोडा जा सकता
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यह लेख पहले फेसबुक पर भी पोस्ट किया गया था, परन्तु कुछ सिख भाइयों ने इसे बिना पड़े ही विवाद खड़ा कर दिया, हमारा आग्रह है कि आप पहले इसे पड़ लें और उसके बाद ही कोई टिप्पणी दें .